श्रीहरिकोटा : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने मिशन ‘चंद्रयान-3’ का प्रक्षेपण आज करेगा। इसके लिए उलटी गिनती जारी है। 30 घंटे की उलटी गिनती बृहस्पतिवार को शुरू हुई। आज दोपहर 2.35 बजे इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाएगा। इसरो का यह मिशन देश के लिए बेहद अहम है। अगर इस मिशन में सफलता मिलती है तो भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ जैसे देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा। इससे पहले चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर को चंद्रमा की सतह पर उतारने में इसरो को नाकामी मिली थी।
अगस्त के आखिरी हफ्ते में चंद्रमा पर लैंडिंग
इसरो की तरफ से बताया गया कि ‘चंद्रयान-3’ कार्यक्रम के तहत इसरो अपने चंद्र मॉड्यूल की मदद से चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ और रोवर के घूमने का प्रदर्शन करके नई सीमाएं पार करने जा रहा है। एलवीएम3एम4 रॉकेट ‘चंद्रयान-3’ को चंद्रमा की यात्रा पर ले जाएगा। इस रॉकेट को पहले जीएसएलवीएमके3 कहा जाता था। भारी उपकरण ले जाने की इसकी क्षमता के कारण अंतरिक्ष वैज्ञानिक इसे 'फैट बॉय' भी कहते हैं। अगस्त के अंत में ‘चंद्रयान-3’ की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की योजना बनाई गई है। उम्मीद है कि यह मिशन भविष्य के अभियानों के लिए सहायक होगा।
लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह का करेंगे अध्ययन
चंद्रयान-3 मिशन में एक स्वदेशी प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है। जिसका उद्देश्य अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए जरूरी नई टेक्लोलॉजी को विकसित करना और प्रदर्शित करना है। किसी मिशन में एलवीएम3 की यह चौथी उड़ान है और इसका उद्देश्य ‘चंद्रयान-3’ को भू-समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करना है। इसरो ने कहा कि एलवीएम3 रॉकेट ने कई उपग्रहों को प्रक्षेपित करने, और कई जटिल अभियानों को पूरा करने करने की अपनी विशिष्टता साबित की है। यह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उपग्रहों को ले जाने वाला सबसे बड़ा और भारी प्रक्षेपण यान भी है।
लॉन्चिंग से पहले के सारे टेस्ट में खरा उतरा यान
चंद्रयान-3 के माध्यम से इसरो के वैज्ञानिकों का लक्ष्य विभिन्न क्षमताओं का प्रदर्शन करना है, जिनमें चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचना, लैंडर का उपयोग करके चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग करना’ और चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने के लिए लैंडर से एक रोवर का निकलना और फिर इसका चंद्र सतह पर घूमना शामिल है। मंगलवार को, लॉन्चिंग की पूरी तैयारी और प्रक्रिया को देखने के लिए श्रीहरिकोटा में 'प्रक्षेपण अभ्यास' हुआ जो 24 घंटे से अधिक समय तक चला। इसके अगले दिन, वैज्ञानिकों ने मिशन तैयारी से संबंधित समीक्षा पूरी की। (इनपुट-एजेंसी)