नई दिल्ली: चाइल्ड पॉर्न देखना अपराध है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड पॉर्न से जुड़ी सामग्री का भंडारण मात्र यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना POCSO एक्ट और IT कानून के तहत अपराध है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने संसद को POCSO अधिनियम में संशोधन के लिए एक कानून लाने का सुझाव दिया है, जिसमें 'child pornography' शब्द को "Child Sexual Exploitative and Abusive Material" से बदलने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संशोधन लागू होने तक केंद्र सरकार इस आशय का अध्यादेश ला सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे 'चाइल्ड पॉर्नोग्राफ़ी' शब्द का इस्तेमाल न करें।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में मद्रास हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया है। हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज केस यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि उसने चाइल्ड पॉर्न सिर्फ अपने पास रखा। उसे आगे नहीं भेजा। बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने इस आदेश के खिलाफ SC का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को चाइल्ड पॉर्नोग्राफ़ी शब्द का इस्तेमाल न करने का निर्देश भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि बच्चों के साथ यौन अपराध से जुड़े वीडियो को सिर्फ डाउनलोड करना, देखना या उसे अपने पास इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में रखना भी अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15 (1) के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि भले ही किसी शख्स का मकसद ऐसे वीडियो को पब्लिश करना या फिर किसी दूसरे भेजने का न हो, फिर भी ये पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध माना जाएगा।