Sunday, November 24, 2024
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लिव इन में रह रहे कपल की जानकारी उनके माता-पिता को दी जाएगी! जानें यूसीसी समिति की रिपोर्ट की खास बातें

यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति की चार खंडों में रिपोर्ट को शुक्रवार को वेबसाइट पर ‘अपलोड’ कर दिया गया ताकि लोग इसे देख सकें।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published on: July 12, 2024 23:34 IST
Uttarakhand, UCC- India TV Hindi
Image Source : FILE उत्तराखंड यूसीसी

देहरादून: उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) समिति की रिपोर्ट अब सार्वजनिक कर दी गई है।  यूसीसी नियमावली तथा क्रियान्वयन समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह ने शुक्रवार को कहा कि समिति यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि लिव-इन में रह रहे द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली जानकारी पूरी तरह से गोपनीय रहे लेकिन उसका मानना है कि 18-21 साल के सहजीवन युगलों की जानकारी उनके माता-पिता को दी जानी चाहिए। इस वर्ष फरवरी में पारित हुए यूसीसी अधिनियम में विवाह और लिव इन संबंधों के पंजीकरण को अनिवार्य किया गया है। यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति की चार खंडों में रिपोर्ट को शुक्रवार को वेबसाइट ‘डब्लूडब्लूडब्लू डॉट यूसीसी डॉट यूके डॉट जीओवी डॉट इन’ पर ‘अपलोड’ कर दिया गया ताकि लोग इसे देख सकें। 

27 मई 2022 को विशेषज्ञ समिति का गठन

लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आयी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 27 मई 2022 को इस पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति ने लोगों से सीधे तथा अन्य माध्यमों से 43 संवाद कार्यक्रमों के जरिए 2.33 लाख लोगों के सुझाव लिए और इस वर्ष दो फरवरी को अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी । विशेषज्ञ समिति का भी हिस्सा रहे सिंह ने कहा कि आचार संहिता लागू होने के कारण यह रिपोर्ट पहले सार्वजनिक नहीं की गयी। यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यूसीसी के क्रियान्वयन लिए नियम बनाने वाली नियमावली तथा क्रियान्वयन समिति यह सुनिश्चित करेगी कि विवाह और लिव इन संबंधों के पंजीकरण के समय लोगों द्वारा प्रदान की गयी जानकारी की गोपनीयता किसी भी परिस्थिति में भंग न हो । 

माता-पिता को भी विश्वास में रखा जाना चाहिए

यह पूछे जाने पर कि लिव इन संबंधों में रह रहे 18 से 21 साल उम्र के युगल के माता-पिता को अनिवार्य रूप से सूचित किया जाना क्या उनकी निजता पर हमला नहीं है, सिंह ने कहा कि यह बहस का विषय है। उन्होंने कहा, ‘‘लिव इन संबंध में रहने वाले 21 साल से अधिक उम्र के युगलों का डेटा पूरी तरह से संरक्षित रहेगा। लेकिन 18 से 21 साल की उम्र के बीच के युगलों के लिए (उन्हें मतदान का अधिकार होने के बावजूद) समिति का मानना है कि यह उम्र नाजुक है और युगलों की सुरक्षा के लिए उनके माता-पिता को भी विश्वास में रखा जाना चाहिए ।’’ 

UCC कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य 

इस वर्ष फरवरी में बुलाए गए उत्तराखंड विधानसभा के एक विशेष सत्र में दो दिनों तक चली लंबी चर्चा के बाद यूसीसी विधेयक पारित हुआ था। राज्य के राज्यपाल के बाद मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी उसे मंजूरी दे दी थी। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा कानून बनाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है। इस अधिनियम में राज्य में रहने वाले सभी धर्म-समुदायों के नागरिकों के लिए विवाह, संपत्ति, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक समान कानून का प्रावधान है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इस विधेयक की परिधि से बाहर रखा गया है। इसमें महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए बाल विवाह, बहु विवाह, हलाला, इद्दत जैसी सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक लगाने का प्रावधान है। इसके तहत विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है और ऐसा नहीं करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान है।

दूसरा विवाह पूर्णतः प्रतिबंधित

पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है जबकि सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गयी है। वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने एवं गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा। पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की अभिरक्षा उसकी माता के पास ही रहेगी। सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार होगा। बेटा और बेटी का पैतृक संपत्ति में समान अधिकार होगा। संपत्ति में अधिकार के लिए वैवाहिक और सहजीवन में से पैदा बच्चों में भेदभाव को समाप्त करते हुए हर बच्चे को ‘वैध’ बच्चा माना जाएगा। 

यूसीसी किसी वर्ग की धार्मिक आजादी पर हमला नहीं

एक अन्य सवाल के जवाब में सिंह ने कहा कि यूसीसी का मसौदा तैयार करते समय लोगों से सुझाव लेने के दौरान करीब आठ से 10 फीसदी लोगों ने कहा था कि इसमें जनसंख्या नियंत्रण के मसले को भी शामिल किया जाना चाहिए। हांलांकि, उन्होंने कहा कि इस मसले को समिति ने शामिल नहीं किया क्योंकि यह उसके दायरे में नहीं था। राज्य के पूर्व मुख्य सचिव सिंह ने कहा कि समिति ने इस बात की भी जांच की थी कि क्या यूसीसी को लाना राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है। उन्होंने कहा कि समिति ने पाया कि ऐसा करने में कोई संवैधानिक अड़चन नहीं है। उन्होंने कहा कि समिति ने यह भी पाया कि यूसीसी किसी वर्ग की धार्मिक आजादी पर हमला नहीं है । सिंह ने कहा, ‘‘ यूसीसी के क्रियान्वयन के लिए नियमों को बनाने का काम जोर-शोर से चल रहा है और इसके जल्द पूरा होने की संभावना है ।’’ यूसीसी को अक्टूबर से लागू करने संबंधी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हाल में बयान के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा कि समिति यह सुनिश्चित करने का पूरा प्रयास कर रही है कि यह उसी समयसीमा में लागू हो जाए। (भाषा)

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