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1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के हीरो थे गुमनाम 'थापा', शहादत को 60 साल भी नहीं मिला सम्मान, अकेले मार गिराए थे 79 चीनी सैनिक

India China War Thapa: भारतीय सेना के नायक थापा ने अकेले ही चीनी सैनिकों को धूल चटा दी थी। उन्होंने 79 चीनी सैनिकों को मारा और कई को घायल किया था। उनकी बहादुरी के लिए वो आज भी याद किए जाते हैं।

Written By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Published : Nov 13, 2022 15:56 IST, Updated : Nov 13, 2022 23:27 IST
भारतीय सेना के हवलदार शेरे थापा की शहादत को सम्मान का इंतजार
Image Source : FILE PHOTO (REPRESENTATIVE PICTURE) भारतीय सेना के हवलदार शेरे थापा की शहादत को सम्मान का इंतजार

जब-जब भारत के चीन या पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध की बात होती है, तब-तब उन नायकों की बात होती है, जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। ऐसे ही एक नायक थे थापा। जिनकी शहादज को आज भी सम्मान का इंतजार है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस साल की शुरुआत में ट्वीट किया था, “हम भारतीय सेना के हवलदार शेरे थापा के बारे में बहुत कम जानते हैं, जिन्होंने 1962 के युद्ध के दौरान ऊपरी सुबनसिरी सेक्टर में अकेले चीनी सेना के ताबड़तोड़ हमलों का जवाब दिया था।”

मुख्यमंत्री खांडू ने गुमनाम नायक थापा की एक प्रतिमा का अनावरण करने के बाद यह ट्वीट किया था। युद्ध के 60 साल बाद भी थापा की शहादत को केंद्र सरकार की तरफ से पहचान नहीं मिली है। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, भारतीय सेना की जम्मू-कश्मीर राइफल्स की दूसरी बटालियन के थापा ने नवंबर, 1962 में अरुणाचल प्रदेश के सुबनसिरी सेक्टर में हुई लड़ाई में अकेले 79 चीनी सैनिकों को मार गिराया था और कई अन्य को घायल कर दिया था। कर्नल के रूप में सेवानिवृत्त हुए थापा के कमांडिंग ऑफिसर-सेकेंड लेफ्टिनेंट अमर पाटिल ने कहा कि इतिहास के पन्नों में खोए इस शहीद को साठ बरस बाद भी पहचान नहीं मिली है।

वीरता पुरस्कार प्रदान करने की मांग

अरुणाचल-पूर्व संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद तपीर गाओ ने पिछले साल सितंबर में नई दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी और एक पत्र सौंपकर थापा को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार प्रदान करने का अनुरोध किया था। साल 1928 में नेपाल में जन्मे थापा ने 27 दिसंबर, 1945 से 31 दिसंबर, 1956 तक जेके रेजीमेंट स्पेशल फोर्स में सेवाएं दी थीं और 1 जनवरी, 1957 को भारतीय सेना का हिस्सा बने थे। बाद में सूबेदार शेर बहादुर के मातहत उन्हें पलटन हवलदार नियुक्त किया गया।

सेवानिवृत्त कर्नल पाटिल ने कहा, “थापा को चीन-भारत सीमा से आने वाले रास्तों को कवर करने के लिए ऊपरी सुबनसिरी जिले में रियो ब्रिज के पास तमा चुंग चुंग रिज पर सुरक्षात्मक गश्त में तैनात किया गया था।” पाटिल ने से कहा, “18 नवंबर, 1962 को पीएलए (चीनी सेना) के लगभग 200 सैनिकों ने तमा चुंग चुंग रिज के रास्ते घुसपैठ की और 2-जेएके आरआईएफ के सुरक्षात्मक गश्ती दल पर हमला कर दिया। हवलदार थापा पहाड़ों पर सीमा की निगरानी कर रहे थे। उन्होंने जवाबी हमला किया, जिसमें देखते ही देखते कई चीनी सैनिक ढेर हो गए। वह बिना कुछ खाए लगातार गोलीबारी करते रहे। तीन दिन तक उनका पार्थिव शरीर वहीं पड़ा रहा।”

चीन के सैनिकों के शवों का अंबार लगाया

पाटिल ने कहा कि लड़ाई के दौरान चीनी सैनिकों के शवों का अंबार लग गया था। सेवानिवृत्त कर्नल पाटिल ने कहा, “जब चीन की ओर से गोलीबारी बंद हो गई, तो थापा अपने बंकर से बाहर निकले। लेकिन मौत उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। एक घायल चीनी सैनिक ने गोली चलाई, जिसमें थापा शहीद हो गए।” उन्होंने कहा कि थापा की वीरतापूर्ण कार्रवाई ने 72 घंटे तक चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोके रखा। पाटिल ने कहा, “लड़ाई में, एक वरिष्ठ अधिकारी सहित 70 से अधिक चीनी सैनिकों के मारे जाने की बात कही गई है।” सेवानिवृत कर्नल ने कहा कि थापा को भले ही कोई पुरस्कार नहीं मिला हो, लेकिन उनकी बहादुरी को स्थानीय लोग याद करते हैं और उन्हें बहुत सम्मान देते हैं।

पाटिल ने कहा कि हवलदार के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं, लेकिन वह कहां रहते हैं, इसके बारे में बहुत कम लोगों की जानकारी है। भारतीय सेना ने बाद में बहादुर सैनिक को श्रद्धांजलि के रूप में रियो ब्रिज के पास एक स्मारक का निर्माण किया था। खांडू ने जनवरी में लाइमकिंग और नाचो के बीच रियो ब्रिज के पास थापा के स्मारक के निकट उनकी प्रतिमा का अनावरण किया था। लेकिन केंद्र सरकार की तरफ उनकी शहादत को अभी मान्यता नहीं मिल पाई है।

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