Highlights
- भारत में 1192 में अजमेर में खुला था पहला मदरसा
- मोहम्मद गौरी के शासनकाल के समय हुई थी शुरुआत
- अंग्रेजों ने मदरसों पर बरती थी काफी सख्ती
India Madrasa History: उत्तर प्रदेश में मदरसों का सर्वे शुरू होने के बाद से सियासी बवाल अपने उफान पर है। एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसे लेकर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा है। वहीं बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने बीजेपी पर निजी मदरसों के संचालन में हस्तक्षेप का प्रयास करने और सर्वेक्षण के बहाने मुस्लिम समुदाय को ‘आतंकित’ करने का आरोप लगाया है। उन्होंने इसे लेकर एक ट्वीट किया था। ऐसे में मदरसों को लेकर इन दिनों काफी सवाल उठ रहे हैं। असम में तो हेमंत विस्व शर्मा की सरकार ने बहुत से मदरसों को ढहवा तक दिया है। राज्य सरकार का आरोप है कि कुछ मदरसों में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है। ये आम धारणा बन गई है कि मदरसों में तालीम के बजाय कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जाता है। तो क्या ये बात वाकई में सच है? या फिर इनकी स्थापना किसी और मकसद से की गई थी? तो चलिए इसके बारे में आज विस्तार से बात कर लेते हैं।
क्या है मदरसों का इतिहास?
मदरसों का इतिहास समझने के लिए हमें अतीत में करीब 1000 साल पीछे जाना होगा। इस्लाम के इन स्कूलों का इतिहास कभी वैभवशाली भी रहा था। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि एक वक्त ऐसा भी था, जब भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, समाज सुधारक राजा राम मोहन राय और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने इन्हीं मदरसों से अपनी शुरुआती तालीम हासिल की थी। हालांकि भारत में अगर मदरसों की शुरुआत की बात करें, तो इनकी स्थापना मुगल काल के समय हुई थी। यह मुस्लिम समुदाय की जिंदगी का अहम हिस्सा रहे हैं। मध्यकालीन भारत में तो इनकी भूमिका सरकार को श्रमशक्ति प्रदान करने की रही है।
जानकारी के मुताबिक, भारत के पहले मदरसे की स्थापना मोहम्मद गौरी के शासनकाल के समय हुई थी। पहला मदरसा सन 1192 में अजमेर में खोला गया था। वहीं अकबर ने मदरसों में सभी विषयों को पढ़ाए जाने की शुरुआत की थी। खिलजी, तुगलक वंश के दौरान मदरसों की स्थापना होनी जारी रही। ऐसा कहा जाता है कि जो मुहम्मद बिन तुगलत था, उसका भाई और उत्तराधिकारी फिरोज शाह तुगलक (1308-1388) बकायदा लोगों के बीच जाकर शिक्षा को बढ़ावा देने का काफी इच्छुक था। वो लड़कियों और दासों को भी शिक्षा हासिल कराने की वकालत करता था। उसके काल में लगभग 1 लाख 80 हजार दासों ने विज्ञान, कला और हस्तकला जैसे विषयों में शिक्षा ग्रहण की थी। मोरक्को से आए यात्री इब्न बतुता ने अपने संस्मरण में बताया है कि तब लड़कियों के लिए भारत में 13 मदरसे थे।
मदरसे आखिर होते क्या हैं?
मदरसा शब्द की उत्तपति अरबिक शब्द 'डी-आर-एस' से हुई है। मदरसा शब्द का मतलब होता है, पढ़ाई करने का स्थान। आधुनिक अरब भाषा के अनुसार, मदरसा शब्द का मतलब कई शैक्षिक संस्थानों से भी होता है। जो धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक होते हैं। वहीं दक्षिण एशिया में इस शब्द का मतलब उच्च इस्लामिक शिक्षा का केंद्र होता है। जहां छात्रों को इस्लामिक कानून और तकीनक सिखाई जाती है। मदरसे से जिस ज्ञान को हासिल किया जाता है, उसे जरिया कहते हैं। मदरसों की सबसे अहम बात ये है कि यहां मोहम्मद साहब के जीवन और पवित्र कुरान की सीख को अपनी जिंदगी में उतारने की सीख दी जाती है।
ईरान के बगदाद में अबासिद काल में मदरसों की स्थापना की गई थी, जिनका काम ज्ञान का प्रचार प्रसार करना था। दुनिया के सबसे पुराने मदरसे की स्थापना मोरक्को के फेज में 859 में की गई थी। जो आज भी मौजूद है। इसे यूनिवर्सिटी ऑफ अल कारावियान के साथ जोड़ दिया गया है। भारत की राजधानी दिल्ली में बड़ी तादाद में मदरसे मोहम्म बिन तुगलक (1290-1351) के शासनकाल में बनाए गए थे। जहां शिक्षकों को सरकारी खजाने से तनख्वा मिला करती थी।
मदरसों में कौन सी शिक्षा दी जाती है?
यह एक आम धारणा बन गई है कि मदरसों में कट्टरपंथी शिक्षा दी जाती है। हालांकि पुराने जमाने में इन्हें इस्लामिक ज्ञान का प्रतीक कहा जाता था। जहां लोगों को बड़े पैमाने पर शिक्षा दी जाती है। इन मदरसों को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप माना जाता था, जहां गैर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। 19वीं सदी के आखिर तक इनकी धर्मनिरपेक्षता बरकरार रही थी। लेकिन 1844 से इसमें बदलाव होने लगा। हुआ ये कि मदरसों से पास हुए ग्रेजुएट छात्रों को सरकारी नौकरी दिए जाने पर रोक लग गई। जिससे मुस्लिम समुदाय नाराज हुआ। ये वो समय था जब किसी के लिए भी अंग्रेजी शिक्षा को स्वीकार करना आसान नहीं था। अंग्रेजों ने मुसलमानों की पारंपरिक शिक्षा पर चोट की थी। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को विभाजित कर धार्मिक और गैर धार्मिक श्रेणी में बांट दिया था।
मदरसा व्यवस्था किस तरह चलती है?
मदरसे आम लोगों से मिले दान से चलते हैं, जिसमें सभी छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। यहां गांव से लेकर शहर तक के बच्चे आते हैं। इसमें अमीर और गरीब के बीच भेदभाव नहीं होता। जैसे-जैसे समय बदला कुछ मदरसे सरकार से स्वायत्त ही बने रहे जबकि कुछ के राज्य सरकारों के साथ संबंध हो गए। मदरसों में मुंशी, मौलवी, आलिम, काबिल, कामिल, फैजल और मुमताजुल अफजल नाम के डिप्लोमा और डिग्री प्रदान की जाती हैं।
यहां का सिलेबस कैसा होता है?
मदरसों का सिलेबस वर्तमान और पहले के विद्वान उलेमाओं के सुझावों के हिसाब से तैयार किया गया है। आधुनिक समय में इसमें कंप्यूटर शिक्षा तक शामिल की गई है। इसके अलावा यहां अकीद, दिनायत, कुरान, उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, गणित, भूगोल, विज्ञान, अरबी, पर्शियन, मांटिग, फिलॉसफी, हैत, उरोज, कलाम, मा-अनी-वा-बयान, इतिहास, तफसीर और हदी वा उसूल ए हदीस जैसे विषयों की पढ़ाई होती है। इसके साथ ही मदरसों में विश्वविद्यालयों के द्वारा प्रस्तावित ब्रिज कोर्स भी कराए जाते हैं। इससे मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मुख्य धारा की उच्च शिक्षा मिलती है।
दारुल उलूम देवबंध कब स्थापित हुआ था?
दारुल उलूम देवबंध भारत का मशहूर मदरसा है, जिसकी स्थापना साल 1866 में हुई थी। तब देवबंदी मदरसे पूरे देश में फैलते चले गए थे। इस दौरान मदरसों पर ये आरोप भी लगे कि उनकी तालिबान जैसे कट्टरपथियों के साथ मिलीभगत है। इसके पीछे की कहानी भी तब से शुरू होती है, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। साल 1919 में देवबंदी स्कॉलर के एक बड़े समूह ने राजनीतिक दल की स्थापना की थी। जिसका नाम जमात उलेमा-ए-हिंद था। इस संगठन ने भारत के बंटवारे का विरोध किया था। अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा व्यवस्था की भारत में स्थापना करने के साथ ही मदरसों पर काफी सख्ती बरती, जिससे इन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था। तब मदरसों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता तक रोक दी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि इसी के चलते मदरसों ने पैसों की किल्लत को दूर करने के लिए दूसरे रास्ते तलाशने शुरू कर दिए थे।