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चंद्रयान की सफल लैंडिंग ने झुठला दी "चंदा मामा दूर के" गाई जाने वाली लोरियां, चांद पर बढ़ी जीवन की संभावना

भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी पोल पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग कराते ही इतिहास रच दिया है। अब तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कोई भी देश पहुंच नहीं पाया है। भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। यह दिन भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के इतिहास में दर्ज हो गया है। मानवता के लिए आज बड़ा दिन है।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published on: August 23, 2023 21:21 IST
चांद की सतह पर उतरा भारत का चंद्रयान-3- India TV Hindi
Image Source : ISRO चांद की सतह पर उतरा भारत का चंद्रयान-3

भारत ने आज बुधवार को शाम करीब 6.04 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग कराकर पूरी दुनिया को चौंका दिया है। अब हिंदुस्तान चंद्रमा के दक्षिणी पोल पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। अब तक कोई भी देश चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंच सका था। इसके साथ ही चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश भी बन चुका है। भारत से पहले पूर्ववर्ती सोवियत संघ (रूस), अमेरिका और चीन ही ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए हैं। अपनी इस ऐतिहासिक उपलब्धि के साथ भारत ने सैकड़ों वर्षों से बच्चों को सुनाई जाने वाली उन लोरियों को भी झुठला दिया है, जिसमें "चंदा मामा दूर के" गाकर दादी और नानियां बच्चों के मन को बहलाया करती थीं। यह बात प्रधानमंत्री मोदी ने भी कही कि अब भारत में हम धरती को मां और चांद को मामा कहते हैं। अब तक कहा जाता रहा है कि चंदा मामा दूर के, लेकिन आने वाले समय में कहा जाएगा कि चंदा माम बस अब एक टूर के। यानि धरती और चांद की दूरियों को भारत ने समेट दिया है। अब वह दिन दूर नहीं, जब इंसान चांद पर उतरेगा।

भारत का चंद्रयान-3 से चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा लैंडर और रोवर चंद्रमा पर जीवन की संभावनाएं तलाशेगा। अब चांद पर इंसानों के बसने की एक नई उम्मीद भी जाग उठी है। अब तक चांद पर पानी होने और अन्य तरह के अंदाज लगाए जाते रहे हैं। भारत ने जब चांद पर चंद्रयान-2 भेजा था तो उसका ऑर्बिटर सफल रहा था, लेकिन लैंडर 2.1 किलोमीटर पहले क्रैश हो गया था। इसके बावजूद आर्बिटर से भारत को चांद पर पानी की मौजूदगी का संकेत भी मिला। अब चांद पर पानी होने या न होनी की पुष्टि समेत अन्य रहस्य भी खुलेंगे। आखिर चांद पर मौसम कैसे होता है। वहां के वायुमंडल में किन-किन गैसौं की मौजूदगी है। चांद पर क्या जीवन संभव है या नहीं, इत्यादि रहस्यों से पर्दा उठने की उम्मीद है।  

भारत से पहले रूस ने लूना-25 को उतारने का किया था प्रयास

भारत ने अपना चंद्रयान मिशन 14 जुलाई 2023 को लांच किया था। मगर इसके बाद रूस ने बीते 11 अगस्त को ‘लूना 25’ अंतरिक्ष यान को चांद पर भेज दिया। वह शॉर्ट कट लैंडिंग करना चाह रहा था। रूस भारत से 2 दिन पहले 21 अगस्त को ही चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना चाहता था, मगर उसकी कोशिश उस वक्त नाकामयाब हो गई, जब लूना-25 चांद की सतह पर पहुंचने से पहले ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। चंद्रमा पर भेजे गए सभी मिशन पहले प्रयास में सफल नहीं रहे।  पूर्ववर्ती सोवियत संघ अपनी छठी अंतरिक्ष उड़ान में सफलता प्राप्त कर पाया था। अमेरिका चांद पर ‘क्रैश लैंडिंग’ के 13 असफल प्रयासों के बाद 31 जुलाई 1964 को चंद्र मिशन में सफल हो पाया था। मगर वह भी अब तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंच सका है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ‘रेंजर 7’ चंद्रमा की दौड़ में एक अहम मोड़ साबित हुआ क्योंकि इसने चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले 4,316 तस्वीरें भेजी थीं। इन तस्वीरों ने अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग स्थलों की पहचान करने में मदद की। इसके बाद 1969 में अमेरिका ने चांद पर पहली बार अंतरिक्ष यात्री को भेजने में सफलता पाई थी।

चांद पर चीन के अब तक के प्रयास

चीन की चांग' ई परियोजना चंद्रमा पर ऑर्बिटर मिशन के साथ शुरू हुई, जिसने ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए भविष्य के स्थलों की पहचान करने के लिए चंद्र सतह के विस्तृत नक्शे तैयार किए। दो दिसंबर, 2013 और सात दिसंबर, 2018 को क्रमशः प्रक्षेपित किए गए चांग'ई 3 और 4 मिशन ने चंद्र सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की और चंद्रमा के अन्वेषण के लिए रोवर्स का संचालन किया। चांग'ई 5 मिशन 23 नवंबर, 2020 को प्रक्षेपित किया गया था, जो एक दिसंबर को चंद्रमा पर ‘मॉन्स रुम्कर’ ज्वालामुखीय संरचना के पास उतरा और उसी वर्ष 16 दिसंबर को चंद्रमा की दो किलोग्राम मिट्टी के साथ पृथ्वी पर लौट आया।

भारत ने 2008 में पहली बार शुरू किया मिशन मून

भारत का चंद्र मिशन 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुआ, जिसने अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के चारों ओर 100 किमी गोलाकार कक्षा में स्थापित किया था। अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर 3,400 परिक्रमाएं कीं और चंद्रमा का रासायनिक, खनिज तथा छायाचित्र-भूगर्भिक मानचित्रण तैयार किया। इस ऑर्बिटर मिशन की अवधि दो साल थी, लेकिन 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के संपर्क संचार टूट जाने के बाद इसे समय से पहले ही रद्द कर दिया गया था। इसके एक दशक बाद, चंद्रयान-2 को एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के साथ 22 जुलाई, 2019 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। चंद्रमा पर देश के दूसरे मिशन का उद्देश्य ऑर्बिटर में लगे उपकरणों के जरिए वैज्ञानिक अध्ययन करना, और चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रौद्योगिकी और चंद्र सतह पर रोवर की चहलकदमी के प्रदर्शन का था। हालांकि, सात सितंबर, 2019 को एक सॉफ्टवेयर गड़बड़ी के कारण यह अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल नहीं हो पाया था।

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