Saturday, April 05, 2025
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'मैं एक नेता हूं, आतंकवादी नहीं, 7 प्रधानमंत्रियों से हुई थी मेरी बात', SC में यासिन मलिक ने दी सफाई

सुप्रीम कोर्ट में आज यासिन मलिक के एक मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान यासिन मलिक ने कहा कि मैं कोई आतंकवादी नहीं हूं, बल्कि एक राजनीतिक नेता हूं। 7 प्रधानमंत्रियों ने मुझसे बात की थी।

Written By: Avinash Rai @RaisahabUp61
Published : Apr 04, 2025 17:42 IST, Updated : Apr 04, 2025 17:42 IST
I am a leader not a terrorist I have spoken to 7 Prime Ministers Yasik Malik clarified in SC
Image Source : FILE PHOTO यासिन मलिक

जेल में बंद जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक ने शुक्रवार (4 अप्रैल) को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि वह एक 'राजनीतिक नेता' हैं, न कि 'आतंकवादी' और दावा किया कि अतीत में सात प्रधानमंत्रियों ने उससे बातचीत की थी। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ के समक्ष वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए यासीन मलिक ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील का हवाला दिया कि आतंकवादी हाफिज सईद के साथ उनकी तस्वीरें थीं और इसे सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दैनिक समाचार पत्रों और टेलीविजन चैनलों द्वारा कवर किया गया था। मलिक ने कहा, "केंद्र सरकार ने मेरे संगठन को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि 1994 में एकतरफा युद्धविराम के बाद, मुझे न केवल 32 मामलों में जमानत दी गई, बल्कि किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया गया।"

यासिक मलिक बोला- मैं आतंकवादी नहीं

यासिक मलिक ने कहा, "प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह और यहां तक ​​कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले पांच वर्षों में भी सभी ने संघर्ष विराम का पालन किया। अब अचानक, मौजूदा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में मेरे खिलाफ 35 साल पुराने आतंकवादी मामलों की सुनवाई शुरू कर दी है। यह संघर्ष विराम समझौते के खिलाफ है।" मेहता ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में संघर्ष विराम का कोई महत्व नहीं है। पीठ ने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर निर्णय नहीं कर रही है और केवल यह तय कर रही है कि उसे गवाहों से वर्चुअली जिरह करने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। दरअसल सीबीआई ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा था कि यासिन मलिक को जम्मू कोर्ट में शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक खूंखार आतंकवादी था।

क्या है पूरा मामला?

यासिन मलिक ने कहा, "सीबीआई ने आपत्ति जताई है कि मैं सुरक्षा के लिए खतरा हूं। मैं इसका जवाब दे रहा हूं। मैं आतंकवादी नहीं हूं, बल्कि सिर्फ एक राजनीतिक नेता हूं। सात प्रधानमंत्रियों ने मुझसे बात की है। मेरे और मेरे संगठन के खिलाफ किसी भी आतंकवादी को समर्थन देने या किसी भी तरह का ठिकाना मुहैया कराने के लिए एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है। मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं, लेकिन वे सभी मेरे अहिंसक राजनीतिक विरोध से संबंधित हैं।" हालांकि मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने जम्मू में यासिन मलिक के खिलाफ चल रहे कुछ मामलों में शारीरिक रूप से पेश होने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन मलिक को तिहाड़ जेल से ही गवाहों से वर्चुअली जिरह करने को कहा। यह आदेश ऐसे मामले में आया है, जिसमें सीबीआई ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण के 1989 के मामले और 1990 के श्रीनगर गोलीबारी मामले की सुनवाई जम्मू से नई दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की है। सीबीआई ने जम्मू की एक निचली अदालत के 20 सितंबर, 2022 के आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें आजीवन कारावास की सजा काट रहे मलिक को अपहरण मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों से जिरह करने के लिए शारीरिक रूप से पेश होने का निर्देश दिया गया था।

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