1990, ये साल कश्मीरियों के विस्थापन का सबसे बड़ा गवाह रहा है। साल 1990 में कश्मीर में आतंकवाद के दौरान करीब दो लाख कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर चले गए थे। 21 अगस्त 1989 को भारत समर्थक मुस्लिम राजनेता मुहम्मद यूसुफ हलवाई की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। आतंकवादियों की ओर से की गई यह पहली हत्या थी। इसके बाद 14 सितंबर 1989 को कश्मीरी पंडित और बीजेपी के स्थानीय नेता टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई। 4 नवंबर 1989 को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी JKLF के आतंकवादियों ने एक रिटायर्ड जज नीलकांत गंजू की हत्या कर दी। इन हत्याओं ने कश्मीरी पंडितों में भय पैदा कर दिया।
इधर, रूबिया सईद के अपहरण के बाद हालात गंभीर हो रहे थे। 8 दिसंबर, 1989 को रुबैया सईद का अपहरण हुआ था। इस घटना से कुछ दिन पहले ही उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री बने थे। रूबिया सईद को छुड़ाने के लिए मिलिटेंट्स को छोड़ना पड़ा था, इससे चरमपंथियों का मनोबल बढ़ गया।
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया
सख़्ती के लिए जाने जाने वाले जगमोहन को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा। राज्य के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया और इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 18 जनवरी को उनके राज्यपाल चुने जाने की घोषणा हुई और 19 जनवरी को उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया। इसी दिन अर्धसैनिक बलों ने घर-घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी। सीआरपीएफ के महानिदेशक जोगिंदर सिंह ने उसी दिन रात में श्रीनगर के डाउनटाउन से लगभग 300 युवाओं को गिरफ्तार कर लिया।
20 जनवरी की रात बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए
20 जनवरी की रात को बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और ये वही दौर था जब पड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का पलायन कश्मीर से हुआ, जो अगले कुछ सालों तक चलता रहा। 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों ने वहां से पलायन करना शुरू कर दिया और भारत के अलग-अलग हिस्सों में अपनी सहूलियत के हिसाब से चले गए। कश्मीरी पंडित इस दिन को 'पलायन दिवस' के रूप में मनाते हैं। मार्च 2010 में जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार ने विधानसभा में बताया था कि 1989 से लेकर 2004 के बीच 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई है।