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Hindi National Language: हिंदी क्यों नहीं बन पाई राष्ट्रभाषा, क्या है विवाद, 57 साल पहले 'हिंदी' पर क्यों हुई थी हिंसा, जानिए सब कुछ

गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समय आ गया है। अंग्रेजी छोड़ हिंदी में ही बात करने पर उन्होंने जोर दिया। ​इस पर विरोध के स्वर फिर उठने लगे, जिसने इस सवाल को जन्म दिया कि क्या हिंदी राष्ट्रभाषा बन पाएगी? 

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: May 02, 2022 12:34 IST
Hindi National Language- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Hindi National Language

Hindi National Language: हिंदी...दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली यह भाषाओं में से एक है, लेकिन अपने ही देश में यह राष्ट्रभाषा के अस्तित्व के लिए लड़ रही है। ये विडंबना है कि राजभाषा हिंदी को जब भी राष्ट्रभाषा बनाने की बात हुई, इसके विरोध में स्वर उठे। हिंदी भाषा से जुड़े विवाद को गहराई से जानें, इससे ये जान लेते हैं कि इस पर ताजा विवाद क्या है। दरअसल, पिछले दिनों एक दक्षिण भारतीय फिल्म कलाकार ने हिंदी भाषा पर उंगली उठाते हुए कहा कि यह अब राष्ट्रभाषा नहीं रह गई है। उंगली उठी देख अजय देवगन ने इसका करारा जवाब दिया और कहा कि जब हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है तो आप अपनी फिल्मों को हिंदी में 'डब' करके क्यों रिलीज करते हैं। दरअसल, गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समय आ गया है। अंग्रेजी छोड़ हिंदी में ही बात करने पर उन्होंने जोर दिया। ​इस पर विरोध के स्वर फिर उठने लगे, जिसने इस सवाल को जन्म दिया कि क्या हिंदी राष्ट्रभाषा बन पाएगी? जानिए क्या है यह विवाद और उसकी पृष्ठभूमि?

1918 में राष्ट्रपिता ने की थी हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की वकालत

हिंदी से जुड़ा का विवाद आज का नहीं है, बल्कि आजादी से भी पहले का है। महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए और तीन साल बाद यानी साल 1918 में उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी। गांधीजी के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी। लेकिन विरोध के स्वर तब भी उठे थे। फिर अंग्रेजों की विदाई के बाद जब देश आजाद हुआ, तो आजादी के दो साल बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला था लेकिन राष्ट्रभाषा को लेकर लंबी बहसें चली और नतीजा कुछ नहीं निकला।

संविधान बनाते समय भी खड़ा हुआ विवाद

1946-1949 तक संविधान को बनाने की तैयारियां शुरू कर दी गई। संविधान में हर पहलू को लंबी बहस से होकर गुजरना पड़ा, ताकि समाज के किसी भी तबके को ये ना लगे कि संविधान में उसकी बात नहीं कही गई है। लेकिन सबसे ज्यादा विवादित मुद्दा रहा कि संविधान को किस भाषा में लिखा जाना है, किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना है, इसे लेकर सभा में एक मत पर आना थोड़ा मुश्किल लग रहा था। क्योंकि दक्षिण के प्रतिनिधि इस पर अपनी विरोध प्रकट कर रहे थे। 

1965 तक अंग्रेजी में कामकाज पर बनी थी सहमति

इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में एक जगह उल्लेखित है कि मद्रास के प्रतिनिधित्व कर रहे टीटी कृष्णामचारी ने कहा कि अगर यूपी के दोस्त हिंदी साम्राज्यवाद की बात करें, तो हमारी यानी दक्षिण भारतीयों की समस्या और ना बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि यूपी के मेरे दोस्त पहले यह तय कर लें कि उन्हें अखंड भारत चाहिए या हिंदी भारत। लंबी बहस के बाद सभा इस फैसले पर पहुंची कि भारत की राजभाषा हिंदी (देवनागिरी लिपि) होगी, लेकिन संविधान लागू होने के 15 साल बाद यानि 1965 तक सभी राजकाज के काम अंग्रेजी भाषा में किए जाएंगे। 

57 साल पहले हुई थी हिंदी को लेकर हिंसा, जानिए क्या हुआ था

फिर आया 1965 का साल। उस समय लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे और व्यक्तिगत रूप से हिंदी के हिमायती थे। उन्होंने हिंदी को देश की भाषा बनाने का निर्णय ले लिया था। हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की कोशिश की गई, तो दक्षिण भारतीय राज्यों में असंतोष बढ़ गया। यह असंतोष और तीव्र हुआ। इसके चलते हिंसक झड़पें होने लगीं। इसमें दो लोगों की मौत भी हो गई थी। 

दरअसल, तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही रहा, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था। लेकिन 1965 में जब शास्त्रीजी ने इस पर फैसला किया तो हिंसक प्रदर्शन हुए। इसे देखते हुए कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने लचीला रूख दिखाया और ऐलान किया गया कि राज्य अपने यहां होने वाले सरकारी कामकाज के लिए कोई भी भाषा चुन सकता है। फैसले में कहा गया कि केंद्रीय स्तर पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का इस्तेमाल किया जाएगा और इस तरह हिंदी कड़े विरोध के बाद देश की सिर्फ राजभाषा बनकर ही रह गई, राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई।

दक्षिण भारतीय क्यों करते हैं हिंदी का विरोध?

विशेषज्ञों का कहना है कि विरोध प्रदर्शन इसलिए किया जाता रहा है कि यह इसके बिना हिंदी को संरक्षण देने वाले लोग मज़बूत हो जाते। दरअसल, तमिल अपनी भाषाई पहचान को अन्य लोगों की तुलना में अधिक गंभीरता से लेते हैं। ​तमिल भाषा और संस्कृति से प्यार करने वाले ये लोग थोपी गई भाषा पर मुखर हो उठते हैं। 

जानिए हिंदी से जुड़ी 5 खास बातें

  • संविधान के अनुच्छेद 343 के खंड (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी संघ की राजभाषा है। संघ के शासकीय कामों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।
  • विश्व का पहला हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया और इसी दिन को विश्व हिंदी दिवस के रूप में चुना गया।
  • भारत के अलावा सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो और नेपाल मॉरीशस, फिजी, गुयाना, अमेरिका जैसे देशों में भी हिंदी खासतौर पर बोली जाती है।
  • दुनिया में सिर्फ सात ऐसी भाषाएं हैं, जिनका उपयोग वेब एड्रेस (URL) बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, और हिंदी भाषा उन सात भाषाओं में से एक है।
  • हिंदी का इतिहास बहुत पुराना है। 5 हजार साल से भी कहीं अधिक पहले से बोली जाने वाली संस्कृत भाषा जिसे आर्य भाषा या देवों की भाषा कहते हैं, इससे हिंदी भाषा का जन्म हुआ। 

सिर्फ बातें होती है, कंक्रीट काम नहीं होता, जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

वरिष्ठ कवि, स्तंभकार और हिंदी के प्रोफेसर सरोज कुमार ने हिंदी के राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर बेबाक कहा कि जो लोग हिंदी के पक्षधर हैं, वो निकम्मे हैं। वे सिर्फ बातें करते रहते हैं, लेकिन हिंदी के उत्थान और उसके प्रसार पर काम नहीं करते हैं। यही नहीं, हमारे देश की बड़ी-बड़ी संस्थाएं, बड़े प्रतिष्ठित लोग व राजनीतिज्ञ हिंदी की आवाज उठाते हैं, लेकिन क्या इतने वर्षों में साइंस की किताबें और साइंटिफिक रिसर्च हिंदी में हुईं? न्यायालय के निर्णय क्या हिंदी में हो गए हैं? जब तक ठोस तरीके से हिंदी के प्रसार और उसके कार्यान्वयन पर जोर नहीं दिया जाएगा, तब तक सिर्फ हिंदी का झंडाबरदार बनना बेमानी है। इस पर प्रैक्टिकली काम किया जाना चाहिए। हां, ये जरूर है कि हिंदी राष्ट्रभाषा थी और रहेगी, क्योंकि यह बहती हुई दरिया की तरह है। कारण यह है कि इसमें दूसरी भाषाओं के शब्दों का समावेश होता आया है। 

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