Mehbooba Mufti on Gyanvapi Court Order: जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने ज्ञानवापी मामले में वाराणसी जिला अदालत के फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि अदालतें खुद अपने फैसले का सम्मान नहीं कर रही हैं। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, " मेरे विचार में अदालतें खुद अपने ही आदेश की अवहेलना कर रही हैं। अदालतों ने फैसला सुनाया था कि 1947 से पहले के सभी पूजा स्थल यथास्थिति में ही रहेंगे। चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो या फिर किसी और धर्म का पूजा स्थल हो। संसद में इससे संबंधित कानून बना, लेकिन अब अदालत ही इसका पालन नहीं कर रही है।"
उन्होंने कहा, "बीजेपी बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई को खत्म करने में नाकाम रही है, इसलिए वे लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं। कोर्ट का फैसला बीजेपी के इस बयान का समर्थन करता है।" वहीं, उन्होंने ट्वीट किया, "प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के बावजूद ज्ञानवापी पर अदालत के फैसले से दंगे भड़केंगे और सांप्रदायिक माहौल पैदा होगा। विडंबना है कि ये सब बीजेपी के एजेंडे में है। यह दुखद स्थिति है कि अदालतें अपने खुद के फैसलों का पालन नहीं करती हैं।"
इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले को बताया निराशाजनक
वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ज्ञानवापी मामले से जुड़े अदालत के फैसले को निराशाजनक करार देते हुए सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का क्रियान्वयन सुनिश्चित करे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि ज्ञानवापी के संबंध में जिला अदालत का शुरुआती फैसला निराशाजनक और दुखदायी है।
उन्होंने कहा, "1991 में बाबरी मस्जिद विवाद के बीच संसद ने मंजूरी दी थी कि बाबरी मस्जिद को छोड़कर सभी धार्मिक स्थल 1947 में जिस स्थिति में थे, उन्हें यथास्थिति में रखा जाएगा और इसके खिलाफ कोई विवाद मान्य नहीं होगा। फिर बाबरी मस्जिद मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के कानून की पुष्टि की।''
'जिन्हें इस देश की एकता की परवाह नहीं है, उन्होंने मुद्दा उठाया'
रहमानी ने कहा, "इसके बावजूद जो लोग देश में घृणा परोसना चाहते हैं और जिन्हें इस देश की एकता की परवाह नहीं है, उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा उठाया और अफसोस की बात है कि स्थानीय अदालत ने 1991 के कानून की अनदेखी करते हुए याचिका को स्वीकृत कर लिया और एक हिंदू समूह के दावे को स्वीकार किया।"
उन्होंने दावा किया, "यह देश के लिए एक दर्दनाक बात है, इससे देश की एकता प्रभावित होगी, सामुदायिक सद्भाव को क्षति पहुंचेगी, तनाव पैदा होगा।" रहमानी ने कहा, "सरकार को 1991 के कानून को पूरी ताकत से लागू करना चाहिए। सभी पक्षों को इस कानून का पाबंद बनाया जाए और ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने दें कि अल्पसंख्यक न्याय व्यवस्था से निराश हो जाएं और महसूस करें कि उनके लिए न्याय के सभी दरवाजे बंद हैं।"
मामले की सुनवाई जारी रखेगी, 22 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
गौरतलब है कि वाराणसी के जिला जज एके विश्वेश की अदालत ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पोषणीयता (मामला सुनवाई करने योग्य है या नहीं) को चुनौती देने वाले मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि यह मामला प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट और वक्फ अधिनियम के लिहाज से वर्जित नहीं है, लिहाजा वह इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।