Highlights
- बीते 15 सालों में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले
- 2015 से 2021 के बीच 14 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए
- 2005 से लेकर 2015 तक 27.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले
जिस भारत का नंबर हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान से भी बदतर बताया गया है, उसी भारत को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने एक खुशखबरी वाली बात कही है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि वर्ष 2005-06 से लेकर 2019-21 के बीच भारत में करीब 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं और इस मामले में एक 'ऐतिहासिक परिवर्तन' देखने को मिला है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल (OPHI) की तरफ से सोमवार को जारी नए बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) में भारत के गरीबी उन्मूलन प्रयासों की सराहना की गई। इसके मुताबिक वर्ष 2005-06 से लेकर 2019-21 के दौरान भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी के चंगुल से बाहर निकलने में सफल रहे।
'भारत का मामला अध्ययन करने लायक है'
एमपीआई रिपोर्ट में इस कामयाबी को सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक बेहतर प्रयास बताया गया है। रिपोर्ट कहती है, "यह दर्शाता है कि वर्ष 2030 तक गरीबों की संख्या को आधा करने के सतत विकास लक्ष्यों को बड़े पैमाने पर हासिल कर पाना संभव है।" संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रेस रिलीज में इस रिपोर्ट का विवरण देते हुए कहा कि भारत में इन 15 वर्षों के दौरान करीब 41.5 करोड़ लोगों का बहुआयामी गरीबी के चंगुल से बाहर निकल पाना एक ऐतिहासिक परिवर्तन है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, "सतत विकास लक्ष्यों के नजरिये से भारत का मामला अध्ययन करने लायक है। यह गरीबी को पूरी तरह से खत्म करने और गरीबी में रहने वाले सभी पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों की संख्या को वर्ष 2030 तक आधा करने के बारे में है।" रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2020 में भारत की जनसंख्या के आंकड़ों के हिसाब से 22.89 करोड़ गरीबों की संख्या दुनिया भर में सर्वाधिक है।
भारत में 9.7 करोड़ बच्चे गरीबी के चंगुल में थे
भारत के बाद 9.67 करोड़ गरीबों के साथ नाइजीरिया इस सूची में दूसरे स्थान पर है। इसके मुताबिक, "जबर्दस्त कामयाबी मिलने के बावजूद 2019-21 के इन 22.89 करोड़ गरीबों को गरीबी के दायरे से बाहर निकालना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि आंकड़ा जुटाए जाने के बाद यह संख्या निश्चित रूप से बढ़ी ही है।" गौर करने वाली बात यह है कि 2019-21 में भारत में 9.7 करोड़ बच्चे गरीबी के चंगुल में थे, जो कि किसी भी अन्य देश में मौजूद कुल गरीबों की संख्या से भी अधिक है।
इसके बावजूद बहुआयामी नीतिगत नजरिया यह बताता है कि समेकित हस्तक्षेप से करोड़ों लोगों की जिंदगी बेहतर बनाई जा सकती है। हालांकि, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तमाम प्रयासों के बावजूद भारत की आबादी कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों और खाद्य एवं ईंधन की बढ़ती कीमतों के प्रति कमजोर बनी हुई है। पौष्टिक खानपान और ऊर्जा कीमतों से निपटने के लिए जारी समेकित नीतियों को प्राथमिकता दिए जाने की वकालत भी की गई है। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के गरीबी पर प्रभाव को पूरी तरह से नहीं आंका गया है। इसका कारण जनसंख्या और स्वास्थ्य सर्वे से संबंधित 2019-2021 का 71 प्रतिशत आंकड़े महामारी के पहले के हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 111 देशों में कुल 1.2 अरब लोग यानी आबादी के 19.1 प्रतिशत लोग अलग-अलग आयामों में गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इनमें से भी आधे लोग यानी 59.3 करोड़ की संख्या सिर्फ बच्चों की है।
2015 से 2021 के बीच 14 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए
भारत में गरीबों की संख्या में गिरावट भी दो कालखंड में विभाजित रही है। वर्ष 2005-06 से लेकर 2015-16 के दौरान जहां 27.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले वहीं 2015-16 से लेकर 2019-21 के बीच 14 करोड़ लोग गरीबी के चंगुल से निकलने में सफल रहे। अगर क्षेत्रीय गरीबी की बात करें तो भारत के बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में 2015-16 से लेकर 2019-21 के दौरान विशुद्ध रूप में गरीबों की संख्या में कहीं तेजी से गिरावट आई है। वहीं गरीबों का अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में 21.2 प्रतिशत है, जबकि शहरी इलाकों में यह अनुपात 5.5 प्रतिशत है। कुल गरीब लोगों में करीब 90 प्रतिशत हिस्सेदारी ग्रामीण क्षेत्र की है।