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Year Ender 2022: हर साल की तरह 2022 में भी जमकर हुई 'महिला सशक्तिकरण' पर चर्चा, पर क्या देश की राजनीति में बढ़ पाई आधी आबादी की भागीदारी?

कई सियासी पार्टियां महिलाओं को टिकट देने के मामले में कंजूसी करती हैं, क्योंकि महिलाओं को अक्सर जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार नहीं माना जाता है।

Written By: Shashi Rai @km_shashi
Published : Dec 14, 2022 11:23 IST, Updated : Dec 14, 2022 11:23 IST
सांकेतिक तस्वीर
Image Source : INDIA TV सांकेतिक तस्वीर

Year Ender 2022: जब देश पर अंग्रेजों का शासन था। भारत के सभी राजा ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी करने को विवश थे। ऐसे समय में भी झांसी की रानी ने कभी हार नहीं माना। रानी की भारी-भरकम वस्त्र पहनकर, पीठ पर अपने पुत्र को बांधकर, दांत से घोड़े की लगाम खींचे जब उन्होंने अपने नरम और सधे दोनों हाथों से तलवार चलाना शुरू किया तो भारत के सभी वीर क्रांतिकारियों में जोश भर गया। क्रूर और शातिर अंग्रेज अधिकारियों को झांसी की रानी ने बार-बार अपनी राजनीतिक अनुभव और रणनीति से चकमा दिया। रानी के साहस ने ना सिर्फ झांसी बल्कि पूरे भारत का नेतृत्व किया था और आज भी करता है।

राजनीति में महिलाओं की स्थिति असंतोषजनक

ऐसे में अगर कोई कहे कि यह पारंपरिक सोच नहीं है कि महिलाएं नेतृत्व करें या राजनीति के दांव-पेंच में शामिल हों, तो उसे मान लेना उचित नहीं लगता, लेकिन ज्यादातर सोच यही है। मजे की बात यह है कि इस सोच के साथ भी महिला सशक्तिकरण की बातें गांव, शहर, सड़क और संसद तक हर रोज होती है। इसके बावजूद भी भारतीय राजनीति में महिलाओं की स्थिति बेहद असंतोषजनक है। 'ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020' के अनुसार भारत राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 18वें स्थान पर है। 

महिलाओं को जिताऊ उम्मीदवार नहीं माना जाता

कई सियासी पार्टियां महिलाओं को टिकट देने के मामले में कंजूसी करती हैं, क्योंकि महिलाओं को अक्सर जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार नहीं माना जाता है। इसलिए पार्टियां ज्यादा महिलाओं को मैदान में उतारने से परहेज करती हैं। वैसे भले ही राजनीतिक दलों ने महिलाओं के हिस्से में ज्यादा कुछ नहीं दिया, लेकिन बीते कुछ सालों में चुनाव में जीत-हार का निर्णायक फैसला देने की वजह से राजनीतिक दलों का ध्यान महिला वोटरों ने जरूर खींचा है। महिलाएं राजनीतिक रूप से लामबंद हो रही हैं और एक निर्णायक वोट बैंक के रूप में उभर रही हैं। 

राजनीति में महिलाओं की अहमियत

राजनीति में महिलाओं की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन पार्टियों ने महिलाओं को ध्यान में रखकर चुनावी वादे किए और योजनाएं बनाई उन पार्टियों को जीत नसीब हुई है। बीजेपी ने उज्जवला योजना, हर घर शौचालय योजना और तीन तलाक जैसे फैसलों से आधी आबादी को अपनी तरफ आकर्षित जरूर किया है। 

75 सालों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा?

भारत में आजादी के बाद पहली बार बनी जवाहरलाल नेहरू की सरकार में 20 कैबिनेट मंत्रियों में सिर्फ एक महिला 'राजकुमारी अमृत कौर' थीं, जिन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा दिया गया था। आजादी के 75 सालों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कैबिनेट फेरबदल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा। इस बार संसद में भी ज्यादा महिला सांसद चुनकर आईं। 17वीं लोकसभा में कुल 78 महिलाएं चुनी गईं। हालांकि महिला सांसदों की संख्या पिछले कुछ सालों में बढ़ी जरूर है पर कुछ देशों की तुलना में अभी भी कम है। 

कांग्रेस ने 40 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया

इस साल की शुरुआत में हुए यूपी चुनाव में कांग्रेस ने भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास किया। कांग्रेस ने 40 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया था। प्रियंका गांधी ने कहा था कि 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने का मकसद ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को राजनीति में भागीदारी देना है। प्रियंका गांधी का कहना था कि कांग्रेस चाहती है कि यूपी में ऐसी सरकार बने जिसमें महिलाएं बिजली बिल से लेकर बच्चों की फीस तक फैसला करें।  

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