Highlights
- एक टी-शर्ट को बनाने में तकरीबन 2,700 लीटर पानी लगता है
- कपड़ो का रंगाई करना भी एक जटिल समस्या है
- हर साल उत्पादित 100 अरब कपड़ों में से 92 मिलियन टन कचरों में फेंक दिया जाता है
Water Crisis: पूरी दुनिया तेजी से बदला रहा है इस बदलते हुए जमान में सभी लोग खुद को बदलते देखना चाहते हैं। खासतौर पर युवा अपने खुद से अलग दिखानें के कोशिश में लगे हैं। इसमें बॉलीबुड का भी बड़ा योगदान है। हम बात कर रहे हैं बदलते जमाने के साथ बदलते इस फैशन के दौर का, जो आज हर कोई इसका शिकार है। दुसरों से अलग दिखने की चाह में अलग-अलग तरह के पोशाक पहन रहे हैं लेकिन इस वजह से एक बड़ा नुकासन होता जा रहा है वो हमारा पर्यावरण है। अब ये सुनकर आप हैरान होंगे कि फैशन का संबंध ये पर्यावरण से कैसे हो गया ये कोई मजाक है क्या? हम मजाक नहीं कर रहे हैं, फैशन कैसे पर्यावरण को बर्बाद कर रहा है हम विस्तार से इस पर चर्चा करेंगे।
कैसे हो रहा पर्यावरण बर्बाद?
आपको बता दें कि एक टी-शर्ट को बनाने में तकरीबन 2,700 लीटर पानी लगता है, जिसे हम कुछ महीने पहले के बाद कचरे में डाल देते हैं। हर साल उत्पादित 100 अरब कपड़ों में से 92 मिलियन टन कचरों में फेंक दिया जाता है। यानी कपड़ों से भरा एक कचरा ट्रक हर सेकेंड कचरों का पहाड़ बनाने के लिए तैयार होता है। अगर यही स्थिति निरंतर जारी रही तो हर साल कचरे का अंबार बढ़कर 134 मिलियन टन हो सकता है। इस दशक के अंत तक उद्योग का वैश्विक उत्सर्जन दोगुना हो जाएगा। तेजी से बढ़ते फैशन की बर्बादी को कम करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। हमारे समाज से फेंकने की पंरपरा काफी बढ़ी है इसमें कोई शक नहीं है। आज हम कोई भी कपड़ा पसंद नहीं आता है तो हम तुरंत कपड़ो को फेंक देते हैं। इन कपड़ो का रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है।
एक टी-शर्ट को बनाने में 2,700 लीटर पानी बर्बाद
वहीं हमने आपको जैसा बताया कि एक टी-शर्ट को बनाने में 2,700 लीटर पानी लगता है जो एक व्यक्ति के लिए 900 दिनों के लिए काफी होता हैं। साथ ही साथ एक बार धोने में 50 से 60 लीटर पानी बर्बाद होता है। कपड़ो को बनाते समय ऐसी कई प्रक्रिया है जो पानी को बर्बाद और खराब करता है। कपड़ा माइक्रोप्लास्टिक का एक बड़ा स्रोत है क्योंकि कपड़े अब नायलॉन या पॉलिस्टर से बनाए जाते हैं ताकि कपड़े टिकाऊ और सस्ते रहे हैं। इन कपड़ो को धोने और सुखाने के प्रक्रिया में जितने पानी बर्बाद होते हैं वो सभी नदियों में मिल जाते हैं। अनुमात 50 अरब से अधिक बोतलों के प्लास्टिक प्रदुषण के बराबर होता है।
कपड़ों की रंगाई से 20 प्रतिशत जल प्रदुषण
कपड़ो का रंगाई करना भी एक जटिल समस्या है। कपड़ो को रगाई करने के लिए जिन केमिल का प्रयोग किया जाता है वो पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक होता है। इस रसायन प्रक्रिया के कारण वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लिए 3 प्रतिशत के साथ-साथ पानी को बर्बाद करता है। इस प्रक्रिया से लगभग 20 प्रतिशत जल प्रदुषण होता है। इस समय पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से जुझ रहा है ऐसे में इस तरह के कार्यो से और पर्यावरण को छति पहुंच रही है। हमारा प्रयास होना चाहिए हम ऐसा काम करें ताकि आने वाले समय में सब ठीक रहे।