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Explainer : भारत में दंगों का रहा है पुराना इतिहास, जोधपुर में आज भी कर्फ्यू जारी

आजादी के वक्त जब देश का विभाजन हुआ उस समय भी देश दंगों की आग में जला था। हजारों मासूमों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

Edited by: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published on: May 04, 2022 15:43 IST
Delhi Riots, 2020- India TV Hindi
Image Source : PTI/FILE PHOTO Delhi Riots, 2020

Highlights

  • जोधपुर में ईद के दिन झड़प के बाद लगाया गया कर्फ्यू
  • मामूली विवाद भी सांप्रदायिक तनाव का ले लेता है रूप
  • 80 के दशक में सांप्रदायिक दंगे ज्यादा हुए

Explainer : दंगों के संदर्भ में अगर इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो यह पता चलता है कि अक्सर मामूली सी बात सांप्रदायिक दंगों में बदल जाती है और निर्दोष एवं मासूम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। जोधपुर में भी कुछ ऐसा ही करने की साजिश का शक जताया जा रहा है। यहां ईद के मौके पर दो गुटों के बीच हुए पथराव में कई लोग घायल हो गए। हालांकि उपद्रव के बाद अब धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं। शहर के 10 थाना क्षेत्रों में आज लगातार दूसरे दिन कर्फ्यू जारी रहा और मोबाइल इंटरनेट सर्विस भी बंद है। उपद्रव के सिलसिले में अब तक करीब 100 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस का कहना है कि शहर में हालात नियंत्रण में हैं। इस विवाद की शुरुआत जालौरी चौहारे पर धार्मिक झंडा लगाने को लेकर हुई। धीरे-धीरे विवाद ने हिंसक रूप ले लिया और पथराव में कई लोग घायल हो गए। घायलों में पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। हालांकि प्रशासन की ओर ये उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही शहर में हालात सामान्य हो जाएंगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सक्षी पक्षों से शांति बरतने की अपील की है। 

जोधपुर में उपद्रव से पहले जिस घटना की सबसे ज्यादा चर्चा हुई वह हनुमान जयंती के दिन दिल्ली में हुई घटना थी। दिल्ली के जहांगीर पुरी में हनुमान जयंती की शोभा यात्रा पर पथराव के बाद माहौल बिगड़ गया। आगजनी की घटनाओं में संपत्ति का नुकसान हुआ। पथराव में पुलिसकर्मियों समेत कई लोग जख्मी भी हुए। समय-समय पर दो गुटों के बीच तनाव की खबरें आती रहती हैं। हालांकि समाज के प्रबुद्ध तबके की ओर से अक्सर सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील की जाती रही है लेकिन कभी-कभी मामला नियंत्रण से बाहर चला जाता है। जोधपुर और दिल्ली की जहांगीर पुरी की घटना का उल्लेख इसलिए जरूरी था कि ये हाल की घटना है और अभी लोगों की याद में बनी हुई है। 

यूं तो देश में सांप्रदायिक दंगों का इतिहास बेहद पुराना रहा है। आजादी के पहले से समय-समय पर देश में बड़े दंगे हुए। आजादी के वक्त जब देश का विभाजन हुआ उस समय भी देश दंगों की आग में जला था। हजारों मासूमों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आज हम इस लेख में आजादी के बाद देश में हुए कुछ बड़े और चर्चित सांप्रदायिक दंगों के बारे में जानेंगे। 

1984 का सिख दंगा

देश की आजादी के बाद सबसे बड़ा दंगा 1984 में हुआ। इस दंगे में सिखों को निशाना बनाया गया था। 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इस दंगे की शुरुआत हुई थी। दरअसल, इंदिरा गांधी की हत्याउनके दो बॉडीगार्ड ने कर दी थी। दोनों सिख थे। इसके बाद अगले दिन से दंगा शुरू हो गया था। देश की राजधानी दिल्ली सांप्रदायिक आग में जल उठी थी। इस दंगे में करीब एक हजार लोगों की मौत हुई थी। 

1987 मेरठ दंगा

वर्ष 1987 में अप्रैल से जून के बीच उत्तर प्रदेश के दौरान मेरठ में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। अयोध्या विवाद के बाद यह पहला सबसे बड़ा दंगा माना जाता है। दरअसल, 1986 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राम जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश दिया था। इसके बाद देश के कई शहरों में उपद्रव हुआ। मेरठ दंगे के दौरान कई जगह दुकानों-घरों में आगजनी की गई। मेरठ में माहौल धीरे-धीरे सामान्य होने लगा था लेकिन 19 मई को शहर में हालात बिगड़ गए। हिंसक झड़ंपों में 10 लोगों की मौत हो गई जिसके बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा था। सेना, पुलिस और पीएसी ने कार्रवाई करते हुए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया गया और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1989 का भागलपुर दंगा 

देश के बड़े दंगों में इसे गिना जाता है। साल 1989 के अक्टूबर-नवंबर महीने में भागलपुर में हुए दंगे में एक हजार से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। भागलपुर शहर और उसके आसपास करीब 250 गांव दंगे में झुलसते रहे। सरकारी दस्तावेजों में मरने वालों की संख्या 1,000  बताई जाती है लेकिन अपुष्ट सूत्रों का कहना है कि इस दंगे में एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। 

1992 का मुंबई दंगा 

देश की आर्थिक राजधानी 1992 के दंगों में बुरी तरह झुलस गई थी। इस दंगे की मुख्य वजह बाबरी मस्जिद का विध्वंस था। मुंबई में हिंसा की शुरुआत दिसंबर 1992 में हुई, जो जनवरी 1993 तक चली। मुंबई दंगों पर गठित श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट के दिसंबर,1992 और जनवरी, 1993 के दो महीनों के दौरान हुए हुए दंगों में 900 लोग मारे गए थे। यहां हालात पर काबू पाने के लिए सेना को बुलाना पड़ा था।

2002  का गुजरात दंगा

गुजरात का दंगा देश के सबसे विभत्स दंगों में एक माना जाता है। इस दंगे की शुरुआत गोधरा कांड के बाद हुई थी। वर्ष 2002 में कारसेवक अयोध्या से गुजरात साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन से लौट रहे थे। इसी बीच गोधरा स्टेशन के पास कुछ असामाजिक तत्वों ने साबरमती एक्सप्रेस की कई बोगियों में आग लगा दी। इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना की जबरदस्त प्रतिक्रिया पूरे गुजरात में हुई। पूरा प्रदेश दंगों की आग में जलने लगा था। उस वक्त नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस दंगे में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब एक हजार लोगों की मौत हुई थी।

2012 का असम दंगा 

वर्ष 2012 में असम दंगों की आग में झुलस गया था। यह दंगा असम के कोकराझार में रहनेवाली बोडो जनजाती और बांग्लादेशी घुसपैठियों के बीच हुआ था। इस दंगे में करीब 80 लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए थे।

2013  का मुज़फ्फरनगर दंगा

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में एक बड़ा दंगा हुआ था। इसकी शुरुआत मुज़फ़्फ़रनगर जिले के कवाल गांव में जाट-मुस्लिम हिंसा के साथ हुई। धीरे-धीरे इस दंगे ने व्यापक रूप ले लिया और करीब 62 लोगों की जान चली। दरअसल 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में कथित तौर पर एक जाट समुदाय लड़की के साथ एक मुस्लिम युवक ने छेड़खानी की। जिसके बाद लड़की के भाइयों ने मुस्लिम युवक को पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद जवाब में मुस्लिमों ने लड़की के भाइयों की पीट-पीटकर जान ले ली। इसके बाद यह दंगा आग की तरह पूरे जिले में फैल गया। 

2020 का दिल्ली दंगा 

यूं तो 1984 का दंगा दिल्ली के दामन पर सबसे बड़ा दाग रहा है लेकिन वर्ष 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जानमाल की बड़े पैमाने पर हानि हुई। इस दंगे की शुरुआत उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई थी, जिसमें जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, चांद बाग, शिव विहार, भजनपुरा, यमुना विहार इलाके में काफी नुकसान हुआ था। इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी।

ऊपर के आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि 80 के दशक में दंगे ज्यादा हुए और इन दंगों में जानमाल का भी भारी नुकसान हुआ है। 1984 में दिल्ली का दंगा, 1989 का भागलपुर दंगा, इन दंगों में बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। दिल्ली और भागलपुर के दंगों में मरनेवालों की संख्या एक हजार से ऊपर रही है। 

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