Highlights
- 25 जून की आधी रात को देश में लगाई गई थी इमरजेंसी
- 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रही इमरजेंसी
- इस्तीफा देने का मन बनाने के बाद इंदिरा ने बदल लिया फैसला
Emergency in India : आजादी के बाद के दिनों में जिस वक्त को एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है, वो इमरजेंसी (Emergency) का दौर था । आज से ठीक 47 साल पहले 25 जून की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी। इंदिरा गांधी के कहने पर उस समय के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी लगाने के आदेश पर दस्तखत कर दिया था। फिर क्या था लोग अपने मौलिक अधिकारों से भी वंचित हो गए। सत्ता के खिलाफ बोलना अपराध हो गया। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दिया गया। विरोध करनेवाले लोग जेलों में ठूंसे जाने लगे। विपक्ष के तमाम बड़े-बड़े नेताओं को जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया। सत्ता का यह दमनचक्र करीब 21 महीने तक चलता रहा। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी। कुछ लोगों का कहना है कि इंदिरा गांधी ने पीएम पद से इस्तीफा देने का मन बना लिया था लेकिन आखिरी मौके पर उन्होंने चौंकाने वाला फैसला लिया और देश में इमरजेंसी लगा दी।
राजनारायण ने इंदिरा के खिलाफ फूंका था बिगुल
दरअसल 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के खिलाफ समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव लड़ा था । जब चुनाव नतीजे आए तो इंदिरा गांधी जीत गईं और राजनाराण की हार हुई। उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनाव में गड़बड़ी और अनुचित तरीकों के इस्तेमाल का आरोप लगाया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। इस मामले की सुनवाई लंबे समय तक चली। आखिरकार 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने 258 पेज के फैसले में इंदिरा गांधी को दोषी ठहरा दिया। कोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी पर दबाव बढ़ने लगा था। उधर, देशभर में छात्रों का गुस्सा उबाल पर था। सरकार के खिलाफ लगभग हर जगह आंदोलन शुरू हो गया। विपक्ष की ओर से लगातार इंदिरा के इस्तीफे की मांग की जा रही थी।
इमरजेंसी लगाने के पक्ष में नहीं थीं इंदिरा-धवन
इंदिरा गांधी के करीबी लोगों में से एक आरके धवन ने 2015 में अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि कोर्ट का फैसला आने के बाद इंदिरा ने इस्तीफा देने का मन बना लिया था। बकायदा उन्होंने अपना इस्तीफा टाइप भी करवा लिया था। लेकिन 25 जून की आधी रात को सबको चौंकाते हुए उन्होंने अचानक देश में इमरजेंसी लागू कर दिया। धवन का कहना था कि सबसे पहले 8 जनवरी 1975 को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को इमरजेंसी लगाने का सुझाव दिया था। हालांकि उस वक्त तक ऐसा नहीं लग रहा था कि देश में इमरजेंसी लग जाएगी।
'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
जयप्रकाश नारायण सत्ता के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली ने देश के राजनीतिक हालात की पूरी तस्वीर बदलकर रख दी थी। इस रैली में लाखों लोग शामिल हुए। जेपी ने रामलीला मैदान की रैली को संबोधित करते हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता -'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है..' से अपने भाषण की शुरुआत की। इसका जबरदस्त असर हुआ। सत्तासीन लोगों के पांव के नीचे की धरती हिल उठी। उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि रामलीला मैदान में लोगों की इतनी बड़ी भीड़ जमा होगी।
25 जून की आधी रात राष्ट्रपति इमरजेंसी के आदेश पर किया साइन
इंदिरा गांधी अब चारों तरफ से घिर चुकी थीं। इसके बाद उसी दिन यानी 25 जून की आधी रात को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाए जाने के आदेश पर राष्ट्रपति से साइन करवा लिया। रातों रात विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। खबरों के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए 25 जून की रात अखबारों के दफ्तर की बिजली भी काट दी गई। प्रेस पर भी पाबंदियां लागू कर दी गईं। 26 जून की सुबह उन्होंने रेडियो के माध्यम से देशवासियों को इसकी जानकारी दी। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक, करीब 21 महीने तक देश में इमरजेंसी लागू रही। लाखों लोगों को सरकार ने जेल में कैद रखा।
1977 के आम चुनाव में मिली करारी शिकस्त
इमरजेंसी खत्म होने के बाद 1977 में देश में आम चुनाव कराए गए। जनता में तत्कालीन इंदिरा सरकार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था। चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जबरदस्त हार हुई। पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के नए प्रधानमंत्री बने थे। आज इमरजेंसी को देश के इतिहास के काले दौर के रूप में याद किया जाता है। लोकतंत्र में ऐसे फैसले बहुत सोच समझकर लिए जाने चाहिए क्योंकि इन फैसलों नतीजा आखिरकार पूरे देश को ही भुगतना पड़ता है।