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एलन मस्क की SpaceX ने लॉन्च किया भारत का सैटेलाइट, आखिर इंडिया के लिए क्या काम करेगा यह उपग्रह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की मदद से एक अहम सैटेलाइट को लॉन्च किया है। जिस सैटेलाइट को लॉन्च किया गया है उसे GSAT N-2 के नाम से जाना जाता है।

Edited By: Subhash Kumar @ImSubhashojha
Published : Nov 19, 2024 12:31 IST, Updated : Nov 19, 2024 14:11 IST
सांकेतिक फोटो।
Image Source : AP/SPACEX सांकेतिक फोटो।

दुनिया में दो अंतरिक्ष एजेंसियां बीते कुछ समय से चर्चा के केंद्र में हैं। पहली अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क की स्पेस-एक्स और दूसरी भारत की इसरो। दोनों एजेंसियों ने ही बीते कुछ समय से सफलता के नए आयाम गढ़े हैं। वहीं, अब इसरो और स्पेस-एक्स एक मिशन के लिए साथ आए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने सबसे एडवांस संचार सैटेलाइट को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट की मदद से सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में लॉन्च किया है। आइए जानते हैं इस लॉन्च के बारे में खास बातें।

क्या है सैटेलाइट की खासियत?

स्पेसएक्स ने भारत के जिस सैटेलाइट को लॉन्च किया है उसे GSAT N-2 या फिर GSAT 20 के नाम से भी जाना जाता है। इस कमर्शियल सैटेलाइट का वजन 4,700 किलोग्राम है और इसे दूरदराज के क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाएं, साथ ही यात्री विमानों के लिए उड़ान के दौरान इंटरनेट प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस सैटेलाइट को अमेरिका में फ्लोरिडा के केप कैनावेरल में स्थित लॉन्च कॉम्प्लेक्स से अंतरिक्ष में भेजा गया। केप कैनावेरल को स्पेसएक्स ने यूएस स्पेस फोर्स ले लीज पर लिया है।

क्यों अहम है ये लॉन्च?

SpaceX द्वारा किया गया लॉन्च न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से इसरो और स्पेसएक्स के बीच पहला ऐसा कदम है। साथ ही ये इसरो की ओर से बनाया गया पहला ऐसा सैटेलाइट है जो कि एडवांस KA बैंड फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है। इसकी रेडियो फ्रीक्वेंसी की रेंज 27 और 40 गीगाहर्ट्ज़ (गीगाहर्ट्ज) के बीच है जो कि हाई बैंडविड्थ देती है। GSAT-N2 भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाओं की दक्षता और कवरेज को बढ़ाएगा।

इसरो को क्यों पड़ी स्पेसएक्स की जरूरत?

रिपोर्ट्स की मानें तो वर्तमान में, इसरो के पास 4,700 किलोग्राम तक के पेलोड को लॉन्च करने में सक्षम रॉकेटों की कमी है। भारत के लॉन्चिंग यान एलवीएम-3 की क्षमता 4,000 किलोग्राम तक है। लेकिन इस लॉन्च की आवश्यकताएं इसरो की क्षमताओं से अधिक थीं। इसी कारण इस मिशन के लिए स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट को चुना गया है।

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