Election Commission: देश का निर्वाचन आयोग देश की चुनावी प्रक्रिया में कई बदलाव करना चाहता है। जिसको लेकर आयोग और केंद्र सरकार के बीच वार्ताओं का दौर चल रहा है। आयोग ने चुनाव सुधारों को लेकर सरकार को प्रस्ताव भेजा है। अगर यह प्रस्ताव पास हो जाते हैं तो एक बड़ा बदलाव चुनावी प्रक्रिया में देखने को मिल सकता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने केंद्र सरकार को चुनावों में ‘एक व्यक्ति-एक सीट’ का नियम लागू करने का प्रस्ताव नए सिरे से भेजा है। इसके पहले 2004 में यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा जा चुका है, लेकिन सरकार ने इसमें कोई रूचि नहीं दिखाई और यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। चुनावों में ‘एक व्यक्ति एक सीट’ नियम लागू करने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट, 1951) में बदलाव करना होगा।
वर्ष 2004 में पहली बार भेजा था यह प्रस्ताव
वर्तमान में जनप्रतिनिधित्व कानून के सेक्शन 33 (7) में मौजूद नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति दो सीटों से चुनाव लड़ सकता है। आयोग ने 2004 में पहली बार केंद्र सरकार को ‘एक व्यक्ति-एक सीट’ का प्रस्ताव भेजते हुए तर्क दिया था कि अगर एक व्यक्ति दो सीटों से चुनाव लड़ता है और दोनों जगह से जीतने के बाद एक सीट खाली करता है तो उपचुनाव कराने में फिर खर्च आता है। आयोग ने इसे देखते हुए सीट छोड़ने वाले निर्वाचित उम्मीदवार को सरकार के अकाउंट में एक निश्चित रकम जमा करने के लिए नियम बनाने की सिफारिश की थी। सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग केंद्रीय कानून मंत्रालय के साथ इस मुद्दे पर काम कर रहा है।
विधि आयोग ने 2015 में दिए थे कई सुझाव
विधि आयोग ने भी किसी व्यक्ति को एक से अधिक सीट पर चुनाव से लड़ने से रोकने की सिफारिश की थी। 1996 से पूर्व कोई प्रत्याशी कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था। बाद में जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कर इसे दो सीटों तक सीमित किया गया। मार्च 2015 में विधि आयोग ने चुनाव सुधारों पर 255वीं रिपोर्ट में अनेक उपाय सुझाए थे। इनमें उम्मीदवारों को एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने से रोकने और निर्दलीय उम्मीदवारों की उम्मीदवारी प्रतिबंधित करना भी शामिल था। मौजूदा व्यवस्था में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार उतरते हैं। इनमें कई तो डमी उम्मीदवार होते हैं तथा कई तो एक ही नाम के होते हैं, जिनका उद्देश्य मतदाताओं में भ्रम फैलाना होता है। अगर सरकार चुनाव आयोग के प्रस्ताव को मान लेती है तो भारतीय राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।