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'डॉ. हेडगेवार आने वाली चुनौतियों को समझते थे', RSS के 100 साल पूरे होने पर स्पेशल इंटरव्यू में बोले होसबाले

RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ की शताब्दी पर विक्रमा साप्ताहिक में दिए इंटरव्यू में संघ की स्थापना, शाखा व्यवस्था, डॉ. हेडगेवार की सोच, जाति से जुड़े मुद्दे, और हिंदुत्व पर विस्तृत चर्चा की।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Mar 29, 2025 12:13 IST, Updated : Mar 29, 2025 12:13 IST
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Image Source : PTI FILE RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले।

बेंगलुरु: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी कि RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ के शताब्दी वर्ष के मौके पर कर्नाटक की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका विक्रमा को एक खास इंटरव्यू दिया है। यह इंटरव्यू युगादी के अवसर पर विक्रमा साप्ताहिक के विशेष संस्करण 'संघ शतमान' के लिए लिया गया, जिसमें संघ के 100 साल के सफर को दर्शाया गया है। करीब 2.5 घंटे तक चली इस गहन बातचीत में होसबाले ने विक्रमा के संपादक रमेश डोड्डापुरा से संघ की शुरुआत, समाज में इसके योगदान, मंदिर पुनरुद्धार, जाति जैसे मुद्दों और भविष्य की योजनाओं पर विस्तार से चर्चा की। हम आपको इस इंटरव्यू के कुछ मुख्य अंशों के बारे में बता रहे हैं।

शाखा की सफलता का रहस्य क्या है?

दत्तात्रेय होसबाले ने शाखा को संघ की रीढ़ बताते हुए कहा कि यह व्यवस्था करीब 100 साल पहले व्यक्तित्व निर्माण के लिए शुरू की गई थी। उन्होंने बताया कि अगर किसी गांव या शहर में शाखा है, तो समझ लीजिए कि वहां संघ मौजूद है। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था और अपने अनुभवों से शाखा की नींव रखी। होसबाले ने कहा, 'शाखा पूरी तरह खुली और साधारण गतिविधि है, जो रोजाना एक घंटे सार्वजनिक जगहों पर होती है। इसमें कोई रहस्य नहीं है, लेकिन इसे चलाना आसान नहीं है।' इसके लिए सालों तक रोजाना शामिल होने की लगन, अनुशासन और बिना फल की इच्छा के समर्पण चाहिए। कुछ संगठनों ने शाखा की नकल करने की कोशिश की, लेकिन निस्वार्थ भाव और त्याग के बिना वे सफल नहीं हुए। होसबाले ने एक लोकप्रिय संघ गीत का ज़िक्र करते हुए कहा, 'शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है।' उन्होंने कहा कि यही भावना शाखा को एक सदी तक मजबूत बनाए रखने का कारण है।

प्रचारक व्यवस्था की प्रेरणा और उत्पत्ति

प्रचारक व्यवस्था पर होसबाले ने बताया कि इसके सटीक स्रोत का पता नहीं है, लेकिन यह भारतीय परंपरा से प्रभावित लगती है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में हजारों सालों से साधु-संत और ऋषि-मुनि समाज और धर्म के लिए अपना जीवन समर्पित करते रहे हैं। आजादी के आंदोलन में भी कई युवाओं ने निजी महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। डॉ. हेडगेवार खुद ऐसे माहौल से आए थे। होसबाले ने महाराष्ट्र में समर्थ रामदास द्वारा लाई गई 'महंत' की अवधारणा का ज़िक्र किया, जो प्रचारक जीवन से मिलती-जुलती है। उन्होंने कहा, 'हालांकि डॉ. हेडगेवार ने इसे स्पष्ट रूप से नहीं अपनाया, लेकिन महाराष्ट्र में संघ शुरू करने के कारण इसकी प्रेरणा संभव है।' वे खुद पहले प्रचारक थे, जिन्होंने समाज के लिए जीवन समर्पित करने का उदाहरण दिया। उनकी दूरदर्शिता थी कि भारत के किसी भी कोने में शाखा शुरू हो सकती है और प्रचारक उभर सकते हैं।

डॉ. हेडगेवार का व्यक्तित्व और उनकी सोच

होसबाले ने डॉ. हेडगेवार को एक सच्चा दूरदर्शी बताया, जिन्हें अंग्रेजी में 'सीयर' (Seer) कहा जाता है। उन्होंने कहा, 'वे भविष्य को देख सकते थे और आने वाली चुनौतियों को समझते थे। वे बेहद सादगी पसंद थे और कभी अपनी शोहरत नहीं चाहते थे। चूंकि वे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे, इसलिए अपने काम को लिखने की आदत नहीं रखते थे।' उन्होंने कहा कि एक बार जब एक लेखक उनकी जीवनी लिखना चाहता था, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। होसबाले ने कहा, 'उनके लिए संगठन ही सब कुछ था, और वे अपने योगदान को संघ के मिशन के लिए समर्पित करते थे।' 1989 में उनकी जन्म शताब्दी के दौरान ही देश में अधिकांश लोगों ने पहली बार उनकी तस्वीर देखी, वरना लोग संघ को जानते थे, लेकिन इसके संस्थापक के बारे में बहुत कम जानकारी थी।

संघ की एकता और जाति पर दृष्टिकोण

संघ की एकता पर होसबाले ने कहा कि स्वयंसेवकों के बीच गहरा भाईचारा और आपसी सम्मान इसे कभी टूटने नहीं देता। उन्होंने बताया, 'संघ में सभी चर्चाएं खुली होती हैं, और फैसला होने के बाद सब उसका पालन करते हैं। यहां निजी महत्वाकांक्षा या प्रतिष्ठा की कोई जगह नहीं है। बाहरी ताकतों ने संघ को कमज़ोर करने की कोशिश की, लेकिन यह मज़बूत किला अडिग रहा।' जाति के सवाल पर उन्होंने कहा कि संघ में हर परंपरा, संप्रदाय और जाति के लोग शामिल हैं, लेकिन जाति पर कभी बात नहीं होती। उन्होंने कहा, 'पहली सीख यही है कि हम सब हिंदू हैं। संघ जाति को खत्म करने के लिए टकराव की बजाय हिंदू एकता को बढ़ावा देता है। संघ में एक अनुशासन है कि उसके कार्यकर्ताओं को जाति-आधारित संगठनों में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। नतीजतन, RSS के स्वयंसेवक किसी भी जाति-आधारित समूह में नेतृत्व के पद पर नहीं होते हैं।'

'शताब्दी पर भी उत्सव की कोई योजना नहीं है'

होसबाले ने विशेष साक्षात्कार में एक सवाल के जवाब में बताया कि डॉ. हेडगेवार नहीं चाहते थे कि संघ अपनी सालगिरह मनाए। उन्होंने कहा, 'इसलिए 25, 50 या 75 साल पर कोई उत्सव नहीं हुआ।' शताब्दी पर भी उत्सव की कोई योजना नहीं है। पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने एक बैठक में सुझाव दिया था कि यह आत्मचिंतन का समय है। होसबाले ने कहा, 'हमें सोचना चाहिए कि लक्ष्य अभी पूरा क्यों नहीं हुआ। फिर भी, स्वयंसेवकों के त्याग और समाज के सहयोग से हिंदू समाज में आत्मविश्वास जगा है, जिस पर गर्व है। लेकिन काम अधूरा होने का अफसोस भी है।' इस मौके पर संघ अपने काम को और प्रभावी बनाने की योजना बना रहा है।

अखंड भारत और पंच परिवर्तन की सोच

अखंड भारत पर होसबाले ने कहा कि यह सिर्फ भौगोलिक एकता का सवाल नहीं है। उन्होंने बताया, 'हमारा मानना है कि इस देश के लोग, चाहे उनकी धार्मिक प्रथाएं कुछ भी हों, एक हैं।' अखंड भारत संकल्प दिवस आज भी मनाया जाता है, और इस पर संघ का रुख नहीं बदला। लेकिन अगर हिंदू समाज मजबूत और संगठित नहीं होगा, तो सिर्फ बातों से कुछ नहीं होगा। पंच परिवर्तन को उन्होंने हिंदुत्व का हिस्सा बताया, जो जीवन से जुड़ा है। उन्होंने कहा, 'हिंदुत्व सिर्फ मंदिर, गाय या आर्टिकल 370 नहीं है। यह समय के साथ बदलाव को अपनाने की हिंदू परंपरा को दिखाता है।' बता दें कि RSS ने 5 जन जागरूकता पहलें शुरू की हैं जिन्हें पंच परिवर्तन का नाम दिया गया है, ये हैं: कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी, परिसर संरक्षण, सामाजिक समरस्य, और नागरिक शिष्टाचार।

युवाओं और स्वयंसेवकों के लिए संदेश

बातचीत के अंत में होसबाले ने स्वयंसेवकों और युवाओं से अपील की, 'हम सबको देश की गरिमा बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए। हर नागरिक को सोचना चाहिए कि उनका योगदान क्या होगा। इसके लिए कुछ समय देना आवश्यक है। मजबूत और समृद्ध भारत सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दुनिया के अंधेरे को दूर करने के लिए एक रोशनी बनना चाहिए। स्वयंसेवकों को अपनी ऊर्जा और प्रतिभा से इस आंदोलन को बड़ा करना चाहिए। छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर समाज की अच्छी ताकतों को साथ लाना चाहिए।'

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