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नोटबंदी सफल या विफल?... अर्थक्रांति के जनक अनिल बोकिल का ये बयान खोल देगा आपका दिमाग

Demonetisation-2016 successful or failed in India:देश में नोटबंदी हुए आज छह वर्ष पूरे हो गए। 8 नवंबर 2016 को आज ही के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी। रात 8.00 बजे पीएम मोदी ने जब 500 और 1000 रुपये के बड़े नोट बंद करने का ऐलान किया था तो पूरे देश में तहलका मच गया था।

Reported By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Nov 08, 2022 10:56 IST, Updated : Nov 08, 2022 12:49 IST
नोटबंदी (प्रतीकात्मक फोटो)
Image Source : PTI नोटबंदी (प्रतीकात्मक फोटो)

Demonetisation-2016 successful or failed in India:देश में नोटबंदी हुए आज छह वर्ष पूरे हो गए। 8 नवंबर 2016 को आज ही के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी। रात 8.00 बजे पीएम मोदी ने जब 500 और 1000 रुपये के बड़े नोट बंद करने का ऐलान किया था तो पूरे देश में तहलका मच गया था। इसका सबसे बड़ा झटका ब्लैकमनी के सौदागरों और भ्रष्टाचारियों को लगा था। वहीं आमजन पीएम मोदी के इस फैसले से खुश थे। इसीलिए वह पीएम मोदी के आह्वान पर दिन-दिन भर कैश के लिए एटीएम की लाइन में लगने के बावजूद हताश नहीं हुए। हालांकि उसके बाद से विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच पिछले छह वर्षों से नोटबंदी को लेकर बहस चल रही है। जहां भाजपा इसे सफल बताती है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां इसे विफल बताती हैं। मगर इस मसले पर देश के बड़े अर्थशास्त्री और अर्थक्रांति के जनक कहे जाने वाले अनिल बोकिल का क्या कहना है...उनकी नजर में नोटबंदी को सफल माना जाए या विफल?....आइए आपको अनिल बोकिल के तथ्यात्मक विचारों से अवगत कराते हैं।

इंडिया टीवी से बातचीत में अनिल बोकिल ने कहा कि अगर आप युवाओं को कहें कि चलिए हम आपको आठ नवंबर 2016 से पहले वाला दिन वापस देते हैं और फिर उनसे पूछें कि आप कैश  प्रीफर करेंगे या डिजिटल मनी... तो 100 फीसदी युवा कहेंगे कि हमें डिजिटल इकोनॉमी चाहिए। कैश इकोनॉमी को तो बहुत पहले ही कम कर देना चाहिए था। इसलिए अब नोटबंदी सही थी या गलत?...यह मुद्दा ही खत्म हो चुका है। अब यहां सही या गलत की बात ही नहीं रह गई। बस इतना मानिये कि यह होना बहुत जरूरी था। इतना ही नहीं,सोशल ऑडिट में भी नोटबंदी पास है, क्योंकि पीएम मोदी ने उसके बाद के सारे नेशनल इलेक्शन जीते हैं। चुनाव एक तरह का सोशल ऑडिट ही है। फिर नोटबंदी के पास होने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए?...अब हम अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों पर आते हैं।

अगर नोटबंदी नहीं होती तो क्या होता?

अनिल बोकिल कहते हैं कि अगर सरकार ने नोटबंदी का डिसीजन नहीं लिया होता तो आज काम में जो तेजी दिख रही है, वह शायद नहीं होती। देश की इकोनॉमी पूरी तरह तहस-नहस हो गई होती। क्योंकि नोटबंदी के समय 500 और 1000 रुपये के नोट 86 फीसदी तक हो गए थे। फुटकर पैसे केवल 14 फीसदी तक थे। प्रति वर्ष 500 और 1000 रुपये  के ज्यादा नोट छापने पड़ रहे थे। अगर 2016 में नोटबंदी नहीं कर दी गई होती तो उसके दो चार साल में एक ऐसा वक्त आता कि 500 और 1000 रुपये के नोट 90 से 95 फीसदी तक पहुंच जाते। फिर देश की इकोनॉमी पूरी तरह फ्रीज हो जाती। इसके बाद चाह कर भी नोटबंदी नहीं की जा सकती थी। फिर हमारा हाल श्रीलंका और पाकिस्तान से भी बुरा होता।

नोटबंदी के बाद आया यह बड़ा बदलाव
आज जो 5G इतनी जल्दी आया। यह भी डिजिटल इकॉनोमी की वजह से हुआ। अब आप कहेंगे कि यह कैसे?... पहले तो टू जी, 3 जी कब आए पता भी नहीं चला। बाद में 4 जी भी आया और चला गया। 2-जी में बड़े घोटाले की बात सामने आई। अगर उस वक्त स्पेक्ट्रम की नीलामी में डिजिटल मनी होती तो शायद यह नौबत ही नहीं आती। आज 5G  इतना जल्दी आया और पूरी ट्रांसपैरेंसी से आया तो उसका श्रेय नोटबंदी और डिजिटल पेमेंट सिस्टम को ही जाना चाहिए। क्योंकि यहां करप्शन के लिए विकल्प ही नहीं बचा। अन्यथा 5 जी भी लटकता रहता। इस सेवा के आने से अब डिजिटल मनी का फ्लो और तेजी से बढ़ेगा। साथ ही देश के सभी सेक्टरों में काम की रफ्तार कई गुना तेज हो जाएगी। नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट करना सरकार की अब सबसे बड़ी प्राथमिकता हो गई है। यूपीआइ यानि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI)  तो पूरी दुनिया में छा गया। बैंकों में पैसा जमा करने और निकालने के लिए लगने वाली लंबी लाइनें खत्म हो गईं। लोगों के समय की बर्बादी थम गई। लोग अपने इस समय का कहीं और सदुपयोग करने लगे। इसलिए मैं तो कहता हूं कि नोटबंदी बहुत पहले हो जाना चाहिए था।

डिजिटल इकोनॉमी नहीं होती तो कोविड में हो जाते बर्बाद
जब देश और दुनिया में कोरोना की आफत आई तो देश के लोगों तक मदद पहुंचाने में डिजिटल इकोनॉमी ही काम आई। अगर डिजिटिल पेमेंट का विकल्प नहीं होता तो लोग बगैर पैसे के कोविड के लिए इमरजेंसी हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में भी काफी दिक्कतें आतीं। बगैर पैसे के कोई भी सप्लाई चेन काम नहीं करती। हर किसी को पैसा डूबने का डर रहता। बिना पैसा लिए कोई खरीद-फरोख्त नहीं करता। ऐसे में लोग मरने पर मजबूर हो जाते। मगर उसी नोटबंदी की वजह से डिजिटल पेंमेंट सिस्टम ही लोगों के काम आया।

भ्रष्टाचार पर हो रही बड़ी कार्रवाई
अनिल बोकिल का कहना है कि डिजिटल मनी का फ्लो बढ़ने की वजह से ही आज सरकार करप्शन पर सरकार बड़ी कार्रवाई कर रही है। कैश ट्रांजेक्शन काफी कम हो गया है। इससे भ्रष्टाचारियों का दम घुट रहा है। पहले ब्लैकमनी ही चारों तरफ फैली थी। अब इसमें कमी आ रही है। भूमि में भी ब्लैक मनी का फ्लो और करप्शन काफी कम हो गया। इतना ही नहीं धीरे-धीरे अब पॉलिटिक्स भी क्लीन हो रही। क्योंकि उनके पास भी कैश ट्रांजेक्शन में समस्या आ रही। पॉलिटिकल पार्टियों के पास पहले जितना कैश रहता था, अब उनके पास उतना नहीं है। मगर इसके लिए अभी सभी पॉलिटिकल पार्टियों को चाहिए कि वह ब्लैक मनी को कम करें। ह्वाइट मनी को इलेक्शन कमीशन के जरिये ट्रांसफर कराएं।

डिजिटल मनी की वजह से ही भारत की ग्रोथ सबसे ज्यादा
अनिल बोकिल ने कहा कि डिजिटल मनी की वजह से ही आज के समय में भारत की ग्रोथ दुनिया में सबसे ज्यादा है। आज हम दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। हमारी इकोनॉमी तीन ट्रिलियने के करीब पहुंच चुकी है। अब आगे यह 5 ट्रिलियन तक भी जल्द पहुंचेगी। सोचिए कि चीन से भी भारत अधिक ग्रोथ क्यों कर रहा और चीन की ग्रोथ कम हो क्यों हो रही और भारत की बढ़ रही?..इसकी वजह डिजिटल इकोनॉमी है।

नोटबंदी के बाद क्यों बढ़ी बेरोजगारी?

देश के सामने यक्ष प्रश्न यह भी है कि यदि नोटबंदी सफल रही तो बेरोजगारी क्यों बढ़ गई? देश में विपक्ष द्वारा नोटबंदी की वजह से बेरोजगारी बढ़ने पर अक्सर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस सवाल के जवाब में अनिल बोकिल कहते हैं कि "नोटबंदी" देश के लिए बहुत जरूरी थी। यह बात आपको पहले ही तथ्यों के साथ बता चुके हैं। नोटबंदी के बाद बेरोजगारी बढ़ने की बात सही है, लेकिन इसकी वजह "नोटबंदी" नहीं, बल्कि इसकी वजह से मार्केट में ब्लैक मनी पर प्रहार होना है। पहले ज्यादातर सेक्टरों में ब्लैकमनी का ही प्रवाह था। इसलिए नौकरियां भी ज्यादा थीं। व्हाइट मनी पर सर्वाइव करने में ऐसे बहुत से छोटे-बड़े सेक्टरों में दिक्कत हुई। इस वजह से लोगों को नौकरियों से हटाया गया। पहले ज्यादातर मजदूरों को कैश में वेतन दिया जाता था। उसका कोई हिसाब-किताब नहीं होता था। क्योंकि इसमें ज्यादातर ब्लैक मनी ही होती थी। अब ह्वाइट मनी देनी पड़ रही। कम पैसे में लेबर नहीं मिल रहे। इस वजह से रोजगार कम हुए। अब सरकार को इस सेक्टर में व्हाइट मनी का फ्लो बढ़ाना होगा और वह कर भी रही है। मगर इसमें अभी वक्त लगेगा। नोटबंदी के बाद जीएसटी ने अर्थव्यवस्था को और संजीवनी दी। इससे टैक्स पेयर्स का दायरा भी बढ़ा। इसलिए नोटबंदी होना बहुत जरूरी था।

वेनेजुएला और पाकिस्तान नहीं कर पाए नोटबंदी

अनिल बोकिल कहते हैं कि भारत में नोटबंदी के बाद दो और देश अपने यहां ऐसा ही करना चाह रहे थे। इनमें से एक वेनेजुएला और दूसरा पाकिस्तान है। मगर भारत में नोटबंदी के रिएक्शन देखने के बाद उनकी हिम्मत नहीं हुई। आज उन दोनों देशों का हाल देख लीजिए। अगर भारत भी उस वक्त नोटबंदी नहीं कर पाया होता तो आज हमारा हाल भी कुछ वैसा ही होता या उससे भी बुरा होता।

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