सरोगेसी का चलन दुनियाभर में तेजी से फैल रहा है। इस मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक जोड़े की सरोगेसी की प्रक्रिया मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरोगेसी को विनियमित करने वाला कानून शोषण को रोकने और भारत को किराए का कोख देने वाले देश बनने से रोकने के लिए बनाया गया है। यह कानून लाभकारी है। इसी के तहत कोर्ट ने जोड़े को सरोगेसी की प्रक्रिया की अनुमति देने से इनकार कर दिया। दरअसल अदालत ने यह टिप्पणी कनाडा में रहने वाले एक भारतीय मूल के जोड़े की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी नियम, 2022 के नियम 7 के तहत फॉर्म 2 में बदलाव करके दाता सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने केलिए सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम में संसोधन करने के लिए केद्र द्वारा जारी 14 मार्च की अधिसूचना की चुनौती दी गई थी।
सरोगेसी पर दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने इस बाबत कहा कि इस प्रजनन आउटसोर्सिंग पर विधायिका द्वारा अंकुश लगाया जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के कहने पर और हम इससे आगे नहीं जा सकते हैं। मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने इसे लाभकारी कार्य बताया और कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य सरोगेट्स के शोषण पर अंकुश लगाना है। उन्होंने कहा कि भारत एक विकासशील देश है। यह अबतक विकसित देश नहीं बना है। आर्थिक कारणों से कई लोग इस ओर आकर्षित हो सकते हैं। एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि भारतीय उद्योग परिसंघ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत में एक समय सरोगेसी 2.3 अरब डॉलर का व्यापार था।
'हम इस उद्योग को बढ़ावा नहीं देना चाहते'
इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता भारतीय नागरिक हैं और केवल काम के कारण वो कनाडा में रह रहे हैं। इसका जवाब देते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता उसी देश में सरोगेसी की सुविधा ले सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि वे एक खास कारण से भारत आ रहे हैं, क्योंकि यहां आर्थिक असमानता है। यहां लोग कोख किराए पर ले सकते हैं। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई नहीं चाहता कि यह देश कोख किराए पर देने का उद्योग बन जाए। विधायिका ने इसपर निर्णय लिया है और यह वह उद्योग नहीं है जिसे हम बढ़ावा देना चाहते हैं।
कोर्ट ने कहा- बच्चे गोद लेने का है विकल्प
कोर्ट ने इस दौरान कहा कि लोगों के पास बच्चे को गोद लेने का भी विकल्प उपलब्ध है। अगर कुछ अच्छे जोड़े हैं जो उन बच्चों को गोद लेने के इच्छुक हैं तो उनका जीवन बदल जाएगा। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट की इस बात से वकील भी सहमत नजर आए और उन्होंने भी बच्चे गोद लेने को प्रोत्साहन की बात कही।