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गौतम गंभीर को दिल्ली हाईकोर्ट की दो टूक, कहा- अखबार को आपकी स्टोरी छापने से नहीं रोक सकते

पूर्व क्रिकेटर और बीजेपी सांसद गौतम गंभीर ने हिंदी अखबार पंजाब केसरी के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में 2 करोड़ का मानहानि का मुकदमा दायर किया था। अब इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अखबार द्वारा गंभीर पर रिपोर्टिंग में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द ठीक नहीं थे।

Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published : May 17, 2023 15:08 IST, Updated : May 17, 2023 15:08 IST
Delhi High Court
Image Source : FILE दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली: पूर्व क्रिकेटर और बीजेपी सांसद गौतम गंभीर ने हिंदी अखबार पंजाब केसरी के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में 2 करोड़ का मानहानि का मुकदमा दायर किया था। अब इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अखबार द्वारा गंभीर पर रिपोर्टिंग में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द ठीक नहीं थे लेकिन एक सार्वजनिक व्यक्ति को मोटी चमड़ी का होना चाहिए। जज ने कहा कि पंजाब केसरी को आप पर खबर छापने से नहीं रोक सकते। दरअसल गंभीर चाहते थे कि उनसे पूछे बिना उनके खिलाफ कोई भी खबर प्रकाशित नहीं की जाए।

जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने आज अखबार के खिलाफ कोई निषेधाज्ञा आदेश पारित नहीं किया लेकिन गौतम गंभीर के मानहानि के मुकदमे और अंतरिम राहत के लिए उनकी याचिका पर अखबार के खिलाफ नोटिस जारी किया है। इसके अलावा पीठ ने गंभीर की उस मांग को भी स्वीकार नहीं किया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर अछूत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाली एक न्यूज रिपोर्ट को हटाने की बात कही थी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा?

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, 'किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति को मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए। इसके अलावा सभी जजों को भी मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए।' हालांकि, पीठ ने ये भी टिप्पणी की है कि गंभीर ने जिन न्यूज स्टोरियों के बारे में बताया है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि अखबार का रिपोर्टर गंभीर के पीछे था और इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द या वाक्य अखबार के लिए उचित नहीं हो सकते हैं।

जज ने कहा, 'अगर आप सभी लेख पढ़ते हैं, तो मेरी पहली राय ये है कि ये रिपोर्टर इस शख्स (गंभीर) के पीछे है। उसने जिन शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल किया है, उनमें से कुछ अखबार के लिए उचित नहीं हैं।' अब इस मामले पर अक्टूबर में विचार किया जाएगा।

गंभीर के एडवोकेट ने कोर्ट में क्या कहा?

गंभीर की ओर से एडवोकेट जय अनंत देहाद्राई पेश हुए थे और उन्होंने ये तर्क दिया था कि क्रिकेटर को मेंशन करते हुए लिखे गए आर्टिकल निष्पक्ष और ऑब्जेक्टिव रिपोर्टिंग के दायरे से बाहर थे।

उन्होंने कहा, 'ये दो रिपोर्टर, शायद किसी और के इशारे पर मुझे निशाना बना रहे हैं। मैंने कई मौकों पर उन्हें नजरअंदाज किया लेकिन यह एक कैंपेन की तरह लग रहा है। वे मुझे ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखा रहे हैं जो मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की सेवा करने में दिलचस्पी नहीं रखता है और आईपीएल में व्यस्त है। एक लेख में कहा गया है कि मैं छुआछूत का पालन करता हूं।'

इस पर जस्टिस सिंह ने कहा, 'अगर रिपोर्टर क्षेत्र में गया है और इस तरह की टिप्पणियां कर रहा है तो आप जनता के एक सेवक हैं, एक निर्वाचित व्यक्ति हैं, आपको इतना सेंसटिव होने की जरूरत नहीं है।'

गंभीर के एडवोकेट जय अनंत देहाद्राई ने कहा कि वह एक निषेधाज्ञा और निर्देश मांग रहे हैं कि रिपोर्टर को समाचार प्रकाशित करते समय गंभीर का वर्जन भी लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह पत्रकारिता की सामान्य प्रथा है।

हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि वह ऐसा कोई व्यापक आदेश पारित नहीं करेगी। जस्टिस सिंह ने कहा, 'एकमुश्त आदेश नहीं हो सकता। कौन सा लेख मानहानि वाला है और नहीं....मेरे अनुसार, पहला लेख मानहानि वाला नहीं है। कोई भी व्यापक आदेश नहीं हो सकता है।'

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