देश में इन दिनों बारिश का कहर जारी है। राजधानी दिल्ली से लेकर हिमाचल और गुजरात तक बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं। इससे पहले केरल, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और राजस्थान में भी बाढ़ जैसे हालात बन चुके हैं। इससे लोगों को काफी परेशानी हुई और जान-माल का भी काफी नुकसान हुआ है, लेकिन इसी बारिश की वजह से देश के लोगों की उम्र लगभग एक साल बढ़ गई है। शिकागो विश्वविद्यालय के (ईपीआईसी) ऊर्जा नीति संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 की तुलना में 2022 में देश में पीएम प्रदूषण में 19.3 फीसदी की गिरावट हुई। इससे देश के लोगों की जिंदगी औसतन एक साल बढ़ गई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर 2024 में भी हवा में सुधार जारी रहा तो उत्तर भारत में रहने वाले लोगों की उम्र 1.2 साल तक बढ़ जाएगी। वहीं, डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार प्रदूषण में कमी नहीं आने पर औसतम उम्र 3.6 साल कम भी हो सकती है।
बारिश से कम हुआ प्रदूषण
रिपोर्ट के अनुसार 2022 में भारत समेत दक्षिण एशिया के कई देशों में अच्छी बारिश हुई थी। इस वजह से यहां हवा की गुणवत्ता बेहतर हुई है। भारत में पीएम 2.5 (हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास के कण) सांद्रता 2021 की तुलना में नौ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (19.3 फीसदी) कम हुई। उत्तरी मैदानी क्षेत्र में यह कमी 17.2 फीसदी थी। सबसे ज्यादा सुधार पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हुआ। यहां पीएम सांद्रता में 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई। झारखंड के धनबाद, पूर्व और पश्चिमी सिंहभूमि, पश्चिमी मेदनीपुर और बोकारो की हवा में भी खासा सुधार देखने को मिला। पीएम 2.5 श्वसन प्रणाली में गहराई तक प्रवेश कर सकता है और श्वसन संबंधी समस्याओं को जन्म देता है। भारत में वार्षिक पीएम 2.5 मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित है, फिर भी 40 प्रतिशत से अधिक आबादी उस हवा में सांस ले रही है जो इस सीमा अधिक है।
सरकार की पहल का दिखा असर
भारत सरकार ने वायु प्रदूषण में कमी लाने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया था। जिन शहरों में यह पहल शुरू की गई। वहां, पीएम 2.5 सांद्रता में औसतन 19 फीसदी की कमी आई। वहीं, जिन शहरों में यह योजना नहीं लागू की गई। वहां, पीएम 2.5 सांद्रता में औसतन कमी 16 फीसदी रही। 2019 में गुजरात ने वायु प्रदूषण के लिए दुनिया का पहला व्यापार कार्यक्रम शुरू किया था। इसकी वजह से सूरत के वायु प्रदूषण में 20-30 फीसदी तक की कमी आई थी।
12 साल बढ़ सकती है दिल्ली के लोगों की उम्र
उत्तर भारत में सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक दिल्ली में रहने वाले 1.8 करोड़ लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित मानदंड की तुलना में औसतन 11.9 वर्ष जीवन प्रत्याशा खोने की राह पर हैं। यहां तक कि भारत के अपने राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, यदि प्रदूषण का मौजूदा स्तर बना रहता है, तो निवासियों की जीवन प्रत्याशा 8.5 वर्ष कम हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की राजधानी और देश में सबसे अधिक आबादी वाला शहर दिल्ली, विश्व में सबसे प्रदूषित शहर भी है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि भारत अपने पीएम 2.5 (से जुड़े राष्ट्रीय मानदंड को पूरा करता है, तो दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा 8.5 वर्ष बढ़ सकती है। साथ ही, यदि यह डब्ल्यूएचओ के मानकों को पूरा करता है तो दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा लगभग 12 वर्ष बढ़ सकती है।
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