Highlights
- लोकसभा में दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पारित
- यह बिल किसी दोष को सिद्ध करने में एजेंसियों की मदद करे- अमित शाह
नई दिल्ली। लोकसभा ने दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पारित कर दिया है। इस विधेयक में अपराधियों की पहचान और आपराधिक मामलों की छानबीन तथा अपराध से जुड़े मामलों के रिकार्ड रखने की व्यवस्था है। इसमें उन व्यक्तियों की पहचान से जुड़े उपयुक्त उपायों को कानूनी स्वीकृति देने की व्यवस्था है, जिनमें अंगुलियों के निशान, हाथ की छाप और पंजों के निशान, फोटो, आंख की पुतली और रेटीना का रिकार्ड और शारीरिक जैविक नमूने तथा उनके विश्लेषण आदि शामिल हैं। इससे अपराधों की छानबीन अधिक कुशलता से और जल्दी की जा सकेगी। वहीं विपक्षी सदस्यों ने विधेयक को संसदीय स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की है।
इस विधेयक में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो को यह रिकॉर्ड एकत्र करने, इन्हें सुरक्षित रखने और इन्हें साझा करने या नष्ट करने का अधिकार दिया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते सोमवार को लोकसभा में दण्ड प्रक्रिया विधेयक 2022 (Criminal Procedure Bill 2022) को पेश करते हुए कहा कि वह सदन में दण्ड प्रक्रिया (शनाख्त) विधेयक 2022 को लेकर आए हैं और यह नया विधेयक 1920 के बंदी शनाख्त कानून की जगह लेगा।
सदन में विधेयक पेश करते हुए अमित शाह ने कहा कि इस विधेयक से सबूत एकत्र करने और छानबीन के काम में काफी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि सरकार ने विधेयक लाने से पहले राज्यों के साथ विस्तार से चर्चा की है। शाह ने सदस्यों से आग्रह किया कि वे इस विधेयक को अलग करके नहीं बल्कि आने वाले जेल अधिनियम नियमावली के संदर्भ में देखें।
अमित शाह ने कहा कि यह बिल किसी दोष को सिद्ध करने में एजेंसियों की मदद करेगा। उन्होंने कहा कि जब तक दोष सिद्ध का प्रमाण नहीं बढ़ता तब तक देश में कानून व्यवस्था और देश की आंतरिक सुरक्षा दोनों को स्थापित करना, मजबूत बनाना और उसे बहाल करना एक संभव नहीं है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस बिल को लेकर आज मैं सदन में आया हूं।
विधेयक पर चर्चा शुरू करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने विधेयक लाने की मंशा पर सवाल उठाते हुए मांग की कि लागू करने से पहले इसे व्यापक विचार-विमर्श के लिए स्थायी समिति को सौंपा जाए। डीएमके सदस्य दयानिधि मारन ने भी कहा कि विधेयक स्थायी समिति को भेजा जाए।
भारतीय जनता पार्टी के विष्णु दयाल राम ने कहा कि इस विधेयक को राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के पारित होने से जांच अधिकारियों को मदद मिलेगी और अपराधियों को दण्डित करने की दर बढ़ेगी।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पाटी की सदस्य सुप्रिया सुले ने कहा कि उनकी पार्टी विधेयक का समर्थन करती है लेकिन इसके कुछ प्रावधानों पर आपत्ति है। बहुजन समाज पार्टी के दानिश अली ने आरोप लगाया कि इस विधेयक में पुलिस को बेहद छूट दी गई है और वह ऐसे व्यक्ति के भी आंकडे एकत्र कर सकती है जिसका अपराध से कोई लेना-देना न हो और फिर उन आंकडों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी की भी नहीं होगी।
विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार ने आश्वासन दिया है कि विधेयक के प्रावधानों का दुरूपयोग नहीं किया जाएगा। भाजपा के डॉक्टर सत्यपाल सिंह ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि देश में केवल 14 प्रतिशत अभियुक्त ही दोषी ठहराए जाते हैं जबकि सबूत के अभाव में कई लोग बरी हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से सबूत एकत्र करने और उनकी वैज्ञानिक पडताल करने में तो मदद मिलेगी ही, मानव अधिकारों की भी रक्षा होगी।
आपको बता दें कि, अमित शाह द्वारा लोकसभा में पेश किया गया बिल दोषियों और आरोपियों की पहचान और जांच के रिकॉर्ड के संरक्षण पर है। इस नए प्रस्तावित कानून के पेश होने के बाद कैदियों की पहचान अधिनियम 1920 को खत्म कर दिया जाएगा।
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक की जरूरी बातें
- आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में दोषी पाया जाता है, उसे गिरफ्तार किया जाता है या फिर हिरासत में लिया जाता है तो उसे पुलिस को व्यवहार संबंधी रिकॉर्ड देना जरूरी होगा। बिल पुलिस और जेल अधिकारियों को कानूनी रूप से दोषी लोगों के रेटिना और आईरिस स्कैन सहित भौतिक व जैविक नमूनों को एकत्र करने, संग्रहीत करने और विश्लेषण करने की अनुमति देता है। बिल के अनुसार, माप का रिकॉर्ड संग्रह की तारीख से 75 साल की अवधि के लिए रखा जाएगा।
- विवादास्पद विधेयक में दोषियों के सीआरपीसी की धारा 53 या धारा 53ए के तहत हस्ताक्षर, लिखावट, या किसी अन्य परीक्षा सहित व्यवहार संबंधी विशेषताओं के कानूनी संग्रह का प्रस्ताव है।
- कानून के अनुसार, यदि दोषियों द्वारा माप लेने के लिए कोई विरोध किया जाता है, तो इसे आईपीसी की धारा 186 (लोक सेवक को बाधित करना) के तहत अपराध के रूप में माना जाएगा, जिसके लिए तीन महीने की जेल या 500 रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन लोगों को महिलाओं या बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए दोषी या गिरफ्तार नहीं किया गया है, या वे लोग जो सात साल से कम समय के लिए दंडनीय अपराध के लिए हिरासत में हैं, वे अपने जैविक नमूने देने से इनकार कर सकते हैं।
- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इन प्रावधानों का इस्तेमाल केवल "जघन्य अपराधों" के मामलों में ही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बिल के नियमों में इसी स्पष्टीकरण का पालन किया जाएगा। उनके अनुसार, कानून का उद्देश्य "देश की कानून-व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना" है।