वायनाड: केरल के वायनाड में भारी बारिश के चलते हुए लैंडस्लाइड से बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान हुआ है। करीब 150 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। मलबे में लोगों की तलाश अभी भी जारी है। लैंडस्लाइड की घटना के बाद एक बार फिर माधव गाडगिल पैनल रिपोर्ट की चर्चा हो रही है। माना जा रहा है कि अगर सरकारों ने गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट को माना होता तो वायनाड में इतने बड़े नुकसान से बचा जा सकता था।
क्या है गाडगिल कमेटी, कब हुआ गठन?
गाडगिल पैनल ने अपनी रिपोर्ट में वेस्टर्न घाट के इलाकों को बेहद संवेदनशील बताते हुए यहां भयानक त्रासदी की आशंका जताई थी। लेकिन सरकारों ने गाडगिल पैनल की रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया। इकोलॉजिस्ट (पारिस्थितिकी) माधव गाडगिल वेस्टर्न घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष थे। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 में एक कार्यकारी आदेश के द्वारा इसका गठन किया गया था। इसे पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) नाम दिया गया। इसे सभी संबंधित पक्षों के साथ परामर्थ करके वेस्टर्न घाट का कायाकल्प, संरक्षण और सुरक्षा कार्य सौंपा गया था। साथ ही पारिस्थितिकी प्राधिकरण के निर्माण के संबंध में तौर-तरीके सुझाने का भी कार्य सौंपा गया था।
गाडगिल कमेटी की सिफारिशें
गाडगिल कमेटी ने वेस्टर्न घाटी की पहाड़ी श्रृंखला को इकोलॉजी के हिसाब से बेहद संवेदनशील इलाका बताया था। कमेटी ने संवेदनशील इलाकों में खनन पर रोक की सिफारिश की थी। पांच वर्षों में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र से खनन को पूरी तरह समाप्त करने की ,आठ वर्षों में सभी रासायनिक कीटनाशकों को समाप्त करना होगा, तथा अगले तीन वर्षों में क्षेत्र से प्लास्टिक की थैलियों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना की सिफारिश की गई थी।
गाडगिल कमेटी ने पश्चिमी घाट की सीमा से लगे 142 तालुकों को श्रेणी 1, 2 और 3 के पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों में विभाजित किया। पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 में बांधों, रेलवे परियोजनाओं, प्रमुख सड़क परियोजनाओं, हिल स्टेशनों या विशेष आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित कोई नया निर्माण नहीं किया जाएगा। पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र 1 और 2 में किसी भी भूमि को वन से गैर-वन उपयोग में तथा सार्वजनिक से निजी स्वामित्व में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी सिफारिश की गई थी कि पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (डब्ल्यूजीईए) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय होगा।
मेप्पाडी को लेकर भी दी थी चेतावनी
इस रिपोर्ट में मेप्पाडी में पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान को लेकर भी चेतावनी दी गई थी। पैनल ने कहा था कि मेप्पाडी में अंधाधुंध खनन और कंस्ट्रक्शन वर्क से कभी भी बड़ा भूस्खलन हो सकता है जिससे कई गांव बर्बाद हो सकते हैं। गाडगिल कमेटी ने कुल 18 पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की थी। इसमें मेप्पाडी भी था। मंगलवार को भूस्खलन में यह पूरा इलाका तबाह हो चुका है। माधव गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट को लागू न करके केंद्र सरकार ने इसे खारिज कर दिया और एक नई कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी ने वेस्टर्न घाट में पारिस्थितिकी संवेदनशील इलाकों की सीमा को करीब 37 प्रतिशत तक कम कर दिया।
दरअसल, इन इलाकों को उपयोग ब्रिटिश काल के दौरान चाय बागानों के लिए किया गया। इसके बाद धीरे-धीरे यहां रिसॉर्ट्स और कृत्रिम झीलों के निर्माण के साथ ही बड़े पैमाने पर विकास हुए। इतना ही नहीं इन इलाकों में खदानों से भी मिट्टी कमजोर हुई।
अरब सागर में तापमान बढ़ने से हुआ भूस्खलन : जलवायु वैज्ञानिक
अरब सागर में तापमान बढ़ने से घने बादल बन रहे हैं, जिसके कारण केरल में कम समय में भारी बारिश हो रही और भूस्खलन होने का खतरा बढ़ रहा है। एक वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक ने यह दावा किया। इस बीच, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भूस्खलन पूर्वानुमान तंत्र और जोखिम का सामना कर रही आबादी के लिए सुरक्षित आवासीय इकाइयों के निर्माण का आह्वान किया। कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीयूएसएटी) में वायुमंडलीय रडार अनुसंधान आधुनिक केंद्र के निदेशक एस.अभिलाष ने कहा कि सक्रिय मानसूनी अपतटीय निम्न दाब क्षेत्र के कारण कासरगोड, कन्नूर, वायनाड, कालीकट और मलप्पुरम जिलों में भारी वर्षा हो रही है, जिसके कारण पिछले दो सप्ताह से पूरा कोंकण क्षेत्र प्रभावित हो रहा है।
वर्षा से मिट्टी भुरभुरी हुई
उन्होंने बताया कि दो सप्ताह की वर्षा के बाद मिट्टी भुरभुरी हो गई। अभिलाष ने कहा कि सोमवार को अरब सागर में तट पर एक गहरी ‘मेसोस्केल’ मेघ प्रणाली का निर्माण हुआ और इसके कारण वायनाड, कालीकट, मलप्पुरम और कन्नूर में अत्यंत भारी बारिश हुई और फिर भूस्खलन हुआ। अभिलाष ने कहा, "बादल बहुत घने थे, ठीक वैसे ही जैसे 2019 में केरल में आई बाढ़ के दौरान नजर आये थे।" उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को दक्षिण-पूर्व अरब सागर के ऊपर बहुत घने बादल बनने की जानकारी मिली है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी ये प्रणालियां स्थल क्षेत्र में प्रवेश कर जाती हैं, जैसे कि 2019 में हुआ था।
जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है वायुमंडलीय अस्थिरता
अभिलाष ने कहा, "हमारे रिसर्च में पता चला कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर में तापमान बढ़ रहा है, जिससे केरल समेत इस क्षेत्र के ऊपर का वायुमंडल ऊष्मगतिकीय (थर्मोडायनेमिकली) रूप से अस्थिर हो गया है।" वैज्ञानिक ने कहा, "घने बादलों के बनने में सहायक यह वायुमंडलीय अस्थिरता जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है। पहले, इस तरह की वर्षा आमतौर पर उत्तरी कोंकण क्षेत्र, उत्तरी मंगलुरु में हुआ करती थी।" वर्ष 2022 में ‘एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित अभिलाष और अन्य वैज्ञानिकों के शोध में कहा गया है कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक ‘‘संवहनीय’’ होती जा रही है। संवहनीय वर्षा तब होती है जब गर्म, नम हवा वायुमंडल में ऊपर उठती है। ऊंचाई बढ़ने पर दबाव कम हो जाता है, जिससे तापमान गिर जाता है। मौसम विभाग के अनुसार, त्रिशूर, पलक्कड़, कोझीकोड, वायनाड, कन्नूर, मलप्पुरम और एर्नाकुलम जिलों में कई स्वचालित मौसम केंद्रों में 19 सेंटीमीटर से 35 सेंटीमीटर के बीच वर्षा दर्ज की गई।
भूस्खलन के पूर्वानुमान के लिए अलग सिस्टम की जरूरत
अभिलाष ने कहा, "क्षेत्र में आईएमडी के अधिकांश स्वचालित मौसम केंद्रों में 24 घंटों में 24 सेंटीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई। किसानों द्वारा स्थापित कुछ वर्षा मापी केंद्रों पर 30 सेंटीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई।" इस बीच, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने मंगलवार को भूस्खलन पूर्वानुमान तंत्र और जोखिम का सामना कर रही आबादी के लिए सुरक्षित आवासीय इकाइयों के निर्माण का आह्वान किया। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने कहा कि मौसम एजेंसियां अत्यधिक भारी वर्षा होने का पूर्वानुमान तो कर सकती हैं, लेकिन भूस्खलन के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। राजीवन ने कहा, ''भारी बारिश से हर बार भूस्खलन नहीं होता है। हमें भूस्खलन का पूर्वानुमान करने के लिए एक अलग सिस्टम की जरूरत है। यह मुश्किल तो है लेकिन संभव है।''
120 मिलीमीटर से अधिक बारिश भूस्खलन के लिए पर्याप्त
उन्होंने कहा, “मिट्टी का स्वरूप, मिट्टी की नमी और ढलान समेत भूस्खलन का कारण बनने वाली स्थितियां ज्ञात हैं और इस सारी जानकारी से एक सिस्टम तैयार करना जरूरी है। दुर्भाग्य से, हमने अब तक ऐसा नहीं किया है।" राजीवन ने कहा, "जब कोई नदी उफान पर होती है, तो हम लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाते हैं। भारी और लगातार बारिश होने पर भी हम यही काम कर सकते हैं। हमारे पास वैज्ञानिक जानकारियां हैं। हमें बस इसे एक सिस्टम में तब्दील करना है।" केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान के आपदा जोखिम प्रबंधन विशेषज्ञ श्रीकुमार ने बताया कि दो से तीन दिन तक 120 मिलीमीटर से अधिक बारिश दक्षिणी तटीय राज्य के पर्वतीय इलाके में भूस्खलन का कारण बनने के लिए पर्याप्त है।
वायनाड में कई भूस्खलन संभावित क्षेत्र
श्रीकुमार ने कहा, "वायनाड में कई भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं। एकमात्र चीज जो हम कर सकते हैं वह है लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाना। अधिकारियों को ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए मानसून से बचाव करने वाले आवास बनाने चाहिए।" भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा कि केरल के लगभग आधे हिस्से में पहाड़ियां और पर्वतीय क्षेत्र हैं जहां ढलान 20 डिग्री से अधिक है, जिससे भारी बारिश होने पर इन स्थानों पर भूस्खलन का खतरा होता है। उन्होंने कहा, "केरल में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया है। खतरनाक क्षेत्रों में स्थित पंचायतों को चिह्नित किया जाना चाहिए और वहां रहने वाले लोगों को जागरुक किया जाना चाहिए। हमें इन क्षेत्रों में बारिश के आंकड़ों की निगरानी करने और खतरनाक क्षेत्रों को ध्यान में रखकर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है।" (इनपुट-भाषा)