संसद की एक समिति ने मनरेगा को बेरोजगार वर्ग के लिए संकट काल में आशा की किरण बताते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में वर्ष 2023-24 में मनरेगा के बजट अनुमान में 29,400 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। लोकसभा में बुधवार को पेश, द्रमुक सांसद कनिमोई करूणानिधि की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई। इसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार पर हमला बोला है।
'क्या इसके बाद इनकी मजदूरी नहीं मिलेगी?'
मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्वीट किया, "14.98 करोड़ मनरेगा मजदूरों का बैंक अकाउंट अभी भी आधार से लिंक नहीं हुआ है। मोदी सरकार ने आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम को अनिवार्य किया है। इन मजदूरों को केवल 31 मार्च 2023 तक ही मोहलत दी है। क्या इसके बाद इनकी मजदूरी नहीं मिलेगी? मजदूरों को मजबूर मत समझिए, मोदी जी।"
वंचित वर्ग को काम करने का अधिकार
बता दें कि मनरेगा अधिनियम में काम करने के इच्छुक ग्रामीण जनसंख्या के वंचित वर्ग को काम करने का अधिकार दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा की भूमिका और महत्ता कोरोना काल में स्पष्ट दिखाई दी जब यह जरुरतमंद लोगों के लिए संकट काल में आशा की किरण बनी। इस योजना की महत्ता वर्ष 2020-21 और 2021-22 में संशोधित अनुमान स्तर पर क्रमश: 61,500 करोड़ रुपये से 1,11,500 करोड़ रुपये और 73,000 करोड़ रुपये से 99,117 करोड़ रुपये की भारी बढ़ोतरी से स्पष्ट होती है।
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चालू वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भी मनरेगा के लिए राशि को 73,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़ाकर संशोधित अनुमान के स्तर पर 89,400 करोड़ रुपये कर दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आरंभिक स्तर पर ही ग्रामीण विकास विभाग द्वारा मनरेगा के लिए 98,000 करोड़ रुपये की प्रस्तावित मांग की तुलना में 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।