Highlights
- जलवायु परिवर्तन: सदी के अंत तक देश 5 करोड़ लोग जोखिम में होंगे
- विकास की अंधी दौड़ में 21वीं सदी तक बेहिसाब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन
- उत्तराखंड, हिमाचल में चौंकाता है मार्च में सामान्य से 8 डिग्री अधिक तापमान
Climate Change: मार्च माह में ही जिस तरह से देश में प्रचंड गर्मी का आगाज हुआ, उससे हर कोई डर रहा है कि अभी पूरा गर्मी का मौसम बाकी है, तो आगे क्या होगा। दुनिया की कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि हर नए साल के साथ दुनिया का तापमान बढ़ रहा है। दुनिया की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 का फरवरी माह दुनिया का अब तक का पांचवा सबसे गर्म फरवरी का महीना रहा। वहीं कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के अनुसार 2021 रिकॉर्ड 5वां सबसे गर्म वर्ष था। पढ़िए बढ़ते तापमान और उससे उपजने वाली चुनौतियों पर एक्सक्लूसिव रिपोर्ट।
आमतौर पर तापमान होली के बाद से धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार हालात बदले हुए नजर आए। मार्च का महीने में हीट वेव यानी लू चलने की भविष्यवाणी तो पहले ही की जा चुकी थी। दरअसल, पिछले पांच सालों से ग्लोबल वार्मिंग के चलते गर्म होती धरती का तापमान बढ़ता ही जा रहा है, जिसका एक और सबूत एक बार फिर इस साल की शुरुआत में ही फिर से सामने आया है।
नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) ने मार्च में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया कि फरवरी 2022 का महीना इतिहास का पांचवा सबसे गर्म फरवरी का महीना था। इस वर्ष फरवरी 2022 का औसत तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.81 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था, जबकि फरवरी 2016 में तापमान 1.26 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।
10 सबसे गर्म फरवरी माह में 8 तो पिछले एक दशक में ही सामने आए
यदि इतिहास के 10 सबसे गर्म फरवरी के महीनों को देखें तो उनमें से आठ तो पिछले दशक में ही सामने आए हैं। इससे पहले फरवरी 2020 में तापमान 1.16 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था, जबकि फरवरी 2017 में 1.02, फरवरी 2015 में 0.87, फरवरी 1998 में 0.87 और फरवरी 2019 में 0.85 डिग्री सामान्य से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया था।
उत्तराखंड और हिमाचल में मार्च में सामान्य से 7 से 8 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया है। 20 मार्च के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, विदर्भ और तेलंगाना में 39-41 डिग्री तक तापमान रिकॉर्ड किया गया।
2021 रहा अब तक का 5वां सबसे गर्म वर्ष
पर्यावरणविद डॉ. सीमा जावेद बताती हैं कि गर्मी और उमस मानव सहनशीलता की सीमा के पार हो गई है। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2021 पांचवा सबसे गर्म साल रहा, मगर यह 2015 और 2018 के मुकाबले कुछ ही ज्यादा गर्म था, लेकिन इस साल 2022 इसको मात कर देगा और यह अनुमान है कि गर्मी सहनशीलता की हद पार कर जायेगी। दिल्ली , बिहार- पटना, लखनऊ , हैदराबाद में जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मी में असहनीय तपिश, जानलेवा गर्मी जैसी चरम मौसमी स्थितियां बन चुकी हैं।
जलवायु परिवर्तन: सदी के अंत तक देश 5 करोड़ लोग जोखिम में होंगे
जलवायु परिवर्तन पर पर संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में खासकर भारत के लिए कई चिंताएं सामने आई हैं। रिपोर्ट की मानें तो भारत एक ऐसा देश है जो आर्थिक रूप से जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित है। भारत को सदी के अंत तक 45-50 मिलियन लोग जोखिम में होंगे। रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि भारत उन स्थानों में से है जहां आने वाले निकट भविष्य में गर्मी और उमस मानव सहनशीलता की सीमा को पार कर जाएगी। और वह तपिश की असहनीय परिस्थितियों का अनुभव करेगा।
आखिर क्यों बढ़ रहा है धरती का तापमान? 4 कारणों से समझिए
1. औद्योगिक क्रांति के बाद से विकास की अंधी दौड़ में सवार होकर दुनिया में इक्कीसवीं सदी तक बेहिसाब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन किया गया। नतीजतन पृथ्वी की सतह के तापमान को बढ़ाते हुए ग्लोबल वार्मिंग को जन्म दिया।
2. औद्योगिक क्रांति के पहले का तापमान प्री इंडस्ट्रियल स्तर (1850-1900) औसत वैश्विक तापमान को दर्शाता है। 1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
3. पिछले 30 वर्षों (1991 से 2020) के दौरान दर्ज तापमान प्री इंडस्ट्रियल स्तर से करीब 0.9 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
4. लैंसेट काउंटडाउन 2021 की रिपोर्ट के अनुसार कि इस सदी के अंत तक दुनिया में तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2.7-3.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने के रास्ते पर है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के एक विश्लेषण के मुताबिक साल 2021 में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कार्बन इमीशन 6% बढ़ गया। इससे भी तापमान में बढ़ोतरी हुई।
कई पर्यावरणविदों की राय है कि यदि समय रहते धरती के बढ़ते तापमान पर काबू नहीं पाया, तो तापमान बढ़ने से ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगेगी। इसका नतीजा यह होगा कि दुनिया के कई तटीय शहर और तटीय देशों के बहुत बड़े इलाके जलमग्न हो जाएंगे।