AIIMS Cyber Attack: एम्स का सर्वर हैक होना कोई सामान्य घटना नहीं है, बल्कि इसमें किसी दुश्मन देश का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। जिस तरह से एम्स पर यह घातक साइबर अटैक हुआ है, उसके तरीके की प्रारंभिक जांच और पड़ताल के बाद साइबर सुरक्षा एजेंसियों के भी होश उड़ गए हैं। भारत सरकार ने स्वयं इस साइबर अटैक को लेकर किसी दुश्मन देश का हाथ होने की आशंका जाहिर की है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने शुक्रवार को कहा कि देश के शीर्ष अस्पतालों में शुमार अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पर हुआ साइबर हमला कोई सामान्य घटना नहीं हैं, बल्कि एक षडयंत्र है, जिसमें किसी देश की सरकार भी शामिल हो सकती है।
चंद्रशेखर ने इलेक्टॉनिक निकेतन स्थित अपने कार्यालय में पत्रकारों से चर्चा के दौरान यह बात कही। एम्स पर हुए साइबर हमले से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘यह कोई सामान्य घटना नहीं है। मैंने इस बारे में ज्यादा पड़ताल नहीं की है। भारतीय कम्प्यूटर आपात प्रतिक्रिया दल (सर्ट-इन) और पुलिस इस मामले की तहकीकात कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन रैंसमवेयर हमले काफी अत्याधुनिक हमले हैं। इसके पीछे स्टेट एक्टर भी हो सकते हैं या बड़े संगठित गिरोह भी हो सकते हैं। इसे सामान्य घटना नहीं समझा जाना चाहिए। निश्चित तौर पर यह एक षडयंत्र है। इसके पीछे जरूर कोई ताकत है।
इन देशों का हो सकता है हाथ
देश की सुरक्षा एजेंसियों ने पाया है कि गत एक वर्ष में भारत में 19 लाख से अधिक साइबर हमले हुए हैं। इनमें कहीं न कहीं पाकिस्तान, चीन और वियतनाम का हाथ सामने आया है। ऐसे में आशंका है कि एम्स साइबर अटैक में भी इन्हीं देशों का हाथ हो सकता है। फिलहाल एजेंसियां इसकी गहनता से पड़ताल कर रही हैं। मगर हमले की प्रवृत्ति को देखकर यह अंदाजा लगाया जा चुका है कि इसमें किसी न किसी अन्य देश की सरकार का हाथ है। सुरक्षा विशषेज्ञ इसमें चीन और पाकिस्तान का हाथ होने की प्रबल आशंका जाहिर कर रहे हैं।
डेटा दुरुपयोग का खतरा बढ़ा
ज्ञात हो कि साइबर हमले के बाद से एम्स का सर्वर प्रभावित है। इस वजह से वहां बाह्य रोगी, भर्ती रोगी और प्रयोगशाला सहित सभी अस्पताल सेवाओं को कागजी रूप से प्रदान किया जा रहा है। रैंसमवेयर हमले के कारण कंप्यूटर तक पहुंच बाधित हो जाती है। डिजिटल इकोसिस्टम में निजी डेटा के दुरुपयोग को सबसे बड़ा खतरा बताते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार प्रस्तावित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) विधेयक-2022 के जरिए इस पर लगाम कसने की तैयारी कर रही है। उन्होंने बताया कि इस प्रस्तावित कानून को लेकर सभी हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि डेटा उल्लंघन से जुड़े मामलों में आरोप साबित होने पर दोषियों पर 500 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जुर्माने की राशि के बारे में फैसला प्रस्तावित डेटा संरक्षण बोर्ड करेगा। यह पूछे जाने पर कि डेटा की निजता के उल्लंघन के मामलों में क्या यह जुर्माना सरकारी एजेंसियों पर लागू होगा, चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘निजी डेटा का दुरुपयोग आज के दिन डिजिटल इकोसिस्टम में सबसे बड़ा खतरा है। इसमें बड़ी प्रौद्योगिकी और निजी कंपनियां शामिल हैं।
सरकार अब आगामी सत्र में लाएगा डेटा दुरुपयोग के खिलाफ कानून
जो लोग डेटा लेते हैं और उसे बेचकर गड़बड़ी करने की भी कोशिश करते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर सरकार के पास डेटा है, सरकार भी नागरिकों की निजता का उल्लंघन नहीं कर सकेगी। अगर करेगी तो उसके खिलाफ भी डेटा संरक्षण बोर्ड जाया जा सकता है। इस विधेयक का प्रभाव उन निजी प्लेयर्स पर होगा जो डेटा के दुरुपयोग में शामिल हैं। यह इस विधेयक का मूल उद्देश्य है।’’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि सरकार आगामी बजट सत्र में संसद में यह विधेयक लेकर आए। चंद्रशेखर ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रस्तावित डेटा संरक्षण बोर्ड स्वतंत्र होगा और इसमें कोई सरकारी अधिकारी शामिल नहीं होगा।