नई दिल्ली: भारत के मिशन चंद्रयान-3 के लिए आज यानि 17 अगस्त का दिन बेहद ही महत्वपूर्ण था। आज विक्रम लैंडर प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होना था और चांद तक का बचा हुआ सफ़र अकेले ही तय करने के लिए आगे बढ़ना था। दोपहर एक बजे के बाद भारतीय स्पेस एजेंसी ने बताया कि लैंडर प्रोपल्शन मॉड्यूल से सफलता पूर्वक अलग हो गया। अब यह कहा जा सकता है कि आत्मनिर्भरता की राह में आगे बढ़ रहा भारत की तरह अब विक्रम लैंडर भी आत्मनिर्भर हो गया।
14 जुलाई को शुरू हुआ था मिशन
अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि यह प्रोपल्शन मॉड्यूल क्या है और यह अब किस तरह से काम करेगा? लैंडर के अलग हो जाने के बाद अब यह किस तरह से काम करेगा। इस लेख में हम आपको यह सब जानकारी देने वाले हैं। बता दें कि भारत ने 14 जुलाई को दोपहर 2.45 बजे LVM3 रॉकेट से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया था। इसके बाद यह सफ़र तय करते हुए अब चांद की कक्षा के नजदीक पहुंच गया है। यहां से अब चांद तक पहुंचने का सफ़र बेहद ही नाजुक है।
आज चांद की ऑर्बिट में प्रवेश करेगा 'विक्रम'
इस दौरान चंद्रयान-3 मिशन में अहम किरदार निभा रहे ISRO के एक वैज्ञानिक से इंडिया टीवी ने बातचीत की। उन्होंने बताया कि इस समय स्पेस में प्रोपल्शन मॉड्यूल के साथ विक्रम लैंडर है। यह दोनों चंद्रमा की कक्षा के नजदीक हैं और आज दोपहर मॉड्यूल लैंडर को अलग करके चांद के ऑर्बिट में भेज देगा। यहां से लैंडर खुद ही चांद की सतह तक का सफ़र तय करेगा और अगर सब कुछ ठीक रहा तो 23 अगस्त को दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। इस दौरान प्रोपल्शन मॉड्यूल वहीं चक्कर लगाता रहेगा, जहां से उसने लैंडर को अलग किया था।
लैंडर पर लगे हैं सात पे लोड्स
इसके बाद लैंडर जब चांद पर अपना काम शुरू कर देगा तब यही मॉड्यूल एक रिले सैटेलाइट का रूप ले लेगा और चंद्रयान-3 मिशन के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। बता दें कि विक्रम लैंडर पर सात पे लोड्स लगे हुए हैं, जिनका अलग-अलग काम है। यह पे लोड्स जो भी सिग्नल भेजेंगे वह इसी रिले सेटेलाइट को रिसीव होंगे। यह रिले सैटेलाइट उन सिग्नल्स को डिकोड करके नीचे धरती पर इसरो के कंट्रोल रूम में भेजेगा। अगर आसान शब्दों में कहें तो आज से प्रोपल्शन मॉड्यूल विक्रम लैंडर और धरती के रूप में संदेशों के बीच में ब्रिज का काम करेगा। इस लिहाज से प्रोपल्शन मॉड्यूल की भूमिका अब और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी।
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