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LGBTQIA+ समुदाय के मुद्दों के लिए केंद्र सरकार बनाएगी समिति, केंद्रीय कैबिनेट सचिव करेंगे अध्यक्षता

केंद्र सरकार ने LGBTQIA+ समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों पर गौर करने के लिए केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का फैसला किया है।

Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Updated on: May 03, 2023 13:23 IST
LGBTQIA+ समुदाय के मुद्दों पर गौर करने के लिए केंद्र बनाएगा समिति- India TV Hindi
Image Source : PTI LGBTQIA+ समुदाय के मुद्दों पर गौर करने के लिए केंद्र बनाएगा समिति

केंद्र सरकार ने LGBTQIA+ समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों पर गौर करने के लिए केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने के लिए सहमत जताई है। समलैंगिक विवाह से जुड़ी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज सुनवाई की है। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC को अवगत कराया कि समलैंगिक जोड़े के सामने आने वाले मुद्दों को देखने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा। मेहता का कहना है कि याचिकाकर्ता सुझाव दे सकते हैं ताकि समिति इस पर काम कर सके।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा?

बता दें कि प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पांच सदस्यीय संविधान पीठ उन याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है, जिनमें समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान करने का अनुरोध किया गया है। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा, जो समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे को छुए बिना, ऐसे जोड़ों की कुछ चिंताओं को दूर करने के प्रशासनिक उपाय तलाशेगी। केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि सरकार इस संबंध में प्रशासनिक उपाय तलाशने को लेकर सकारात्मक है। 

याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर अपने सुझाव दें
केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल ने पीठ से कहा कि प्रशासनिक उपाय तलाशने के लिए एक से ज्यादा मंत्रालयों के बीच समन्वय की जरूरत पड़ेगी। मामले में सातवें दिन की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर अपने सुझाव दे सकते हैं कि समलैंगिक जोड़ों की कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए क्या प्रशासनिक उपाय किए जा सकते हैं। शीर्ष अदालत ने 27 अप्रैल को मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र से पूछा था कि क्या समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता दिए बिना ऐसे जोड़ों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है। न्यायालय ने यह कहते हुए यह सवाल किया था कि केंद्र द्वारा समलैंगिक यौन साझेदारों के सहवास के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार करने से उस पर इसके सामाजिक परिणामों को पहचानने का ‘संबंधित दायित्व’ बनता है। 

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