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बॉम्बे हाईकोर्ट ने ED को सुनाई खरी-खरी, बोली- नींद इंसान की बुनियादी जरूरत है, इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए'

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले को लेकर ईडी को नसीहत दी है कि वो किसी भी इंसान की बुनियादी जरूरत (नींद) का उल्लंघन न करें।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: April 16, 2024 11:00 IST
Bombay High Court- India TV Hindi
Image Source : PTI बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने ईडी को एक मामले में खरी-खरी सुना दी है। हाईकोर्ट ने एक मामले के सुनवाई के दौरान कहा कि नींद का अधिकार एक बुनियादी मानवीय जरूरत है और इसे न देना किसी भी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को ये निर्देश दिया कि जब एजेंसी किसी को भी प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत समन जारी किया जाए तो बयान दर्ज करने के लिए "सांसारिक समय" बनाए रखने के निर्देश जारी किए जाएं।

कोर्ट ने की याचिका पर सुनवाई

हाईकोर्ट 64 वर्षीय गांधीधाम निवासी राम कोटुमल इसरानी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उनकी गिरफ्तारी को अवैध घोषित करने की मांग की गई थी। एडवोकेट विजय अग्रवाल, आयुष जिंदल और यश वर्धन तिवारी ने कोर्ट को बताया कि 7 अगस्त, 2023 को, इस्सरानी दिल्ली में सुबह 10.30 बजे जांच में शामिल हुए और उनकी पर्सनल लिबर्टी से समझौता किया गया, उनका मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया, और उन्हें ईडी अधिकारियों ने घेर लिया और उनका वॉशरूम तक पीछा किया।

अग्रवाल ने कोर्ट से आगे कहा, इस्सरानी से पूरी रात पूछताछ की गई, जिससे उनके 'नींद के अधिकार' का उल्लंघन हुआ, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त उनके जीवन के अधिकार का हिस्सा है। ईडी ने इसरानी का बयान रात 10.30 बजे से सुबह 3 बजे तक दर्ज किया, जिससे वे सोने के अधिकार से वंचित हुए। अग्रवाल ने कहा कि इसरानी को मेडिकल प्रॉब्लम्स थीं और ऐसे में ईडी को आधी रात के बाद उनका बयान दर्ज करने की कोई जल्दी नहीं करनी चाहिए थी और उन्हें अगली तारीख या उसके कुछ दिनों बाद भी बुलाया जा सकता था। इसरानी को ईडी ने औपचारिक रूप से 8 अगस्त, 2023 को सुबह 5.30 बजे गिरफ्तार दिखाया था।

'नींद की कमी इंसान के हेल्थ को प्रभावित करती है'

एजेंसी की ओर से पेश एडवोकेट हितेन वेनेगांवकर और आयुष केडिया ने कहा कि इस्सरानी को उनके बयान को देर से दर्ज करने पर कोई आपत्ति नहीं थी और इसलिए, इसे दर्ज किया गया। बेंच ने कहा, "सांसारिक समय पर बयान दर्ज करने से निश्चित रूप से किसी व्यक्ति की नींद, जो कि एक इंसान का बुनियादी मानवाधिकार है, से वंचित हो जाती है। हम इस प्रैक्टिस को एक्सेप्ट नहीं कर सकते हैं।" नींद की कमी इंसान के हेल्थ को प्रभावित करती है, उसकी मेंटल स्टेटस, काम करने की स्किल आदि को बिगाड़ सकती है।

सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता

हाईकोर्ट ने कहा, "राम कोटुमल इसरानी, को उचित समय से परे एजेंसी द्वारा उसके बुनियादी मानव अधिकार, यानी सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। बयान जरूरत के हिसाब से सही टाइम पर दर्ज किए जाने चाहिए, न कि रात में जब व्यक्ति की काम करने की स्किल बिगड़ने लगे।" कोर्ट ने एडवोकेट अग्रवाल के उस तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें वो इसरानी की गिरफ्तारी अवैध बता रहे थे।

'अगले दिन भी बुलाया जा सकता था'

कोर्ट ने कहा कि जब किसी व्यक्ति को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है, तो जांच एजेंसी तब तक उस फैसले पर नहीं पहुंच पाती है कि उक्त व्यक्ति किसी अपराध का दोषी है या नहीं। याचिकाकर्ता, की उम्र 64 वर्ष है और वह पहले भी अपना बयान दर्ज कराने के लिए एजेंसी के सामने पेश हुआ था। कोर्ट ने कहा कि इस्सरानी को उनकी कथित सहमति के बावजूद आधी रात के बाद इंतजार कराने के बजाय किसी और दिन या अगले दिन भी बुलाया जा सकता था। बेंच ने मामले के अनुपालन के लिए 9 सितंबर की तारीख तय की है।

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