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ब्लॉग: ‘कर्मयोगी’ मोदी कर्तव्य पथ पर

पीएम हाथ जोड़े और आंसूओं को रोके एकटक अपनी उस मां को निहारते रहे, जिन्होंने न सिर्फ़ उन्हें जन्म दिया था बल्कि उच्च मानवीय और नैतिक मूल्यों से उनके व्यक्तित्व को गढ़ा भी था।

Written By: Devendra Parashar @DParashar17
Published : Dec 30, 2022 19:18 IST, Updated : Dec 30, 2022 19:18 IST
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Image Source : PTI मां हीराबेन की अर्थी को कंधा देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सादगी और कर्मयोगी प्रवृत्ति एक बार फिर हैरान कर गयी। सुबह के तकरीबन 6 बजे थे। पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीरा बा का 100 साल की आयु में निधन हो गया। जो लोग पीएम की सोच को ठीक तरीके से नहीं समझते, उन्हें स्वाभाविक और सहज तौर पर ऐसा लगा होगा कि देश के प्रधानमंत्री की मां हैं तो फिर जबरदस्त अंतिम दर्शन यात्रा निकाली जाएगी, उनको सलामी दी जाएगी और फिर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। राजनेताओं की अमूमन प्रवृत्ति तो ऐसी ही होती है। सत्ताधीश और प्रभावी लोग परिवार और नाते रिश्तेदारों के लिए न जाने क्या-क्या दिखावा करते हैं, यहां तो मसला दुनिया के सबसे लोकप्रिय पीएम की मां का था।

पर ये सामान्य बातें पीएम नरेंद्र मोदी के मामले में बिल्कुल फिट नहीं बैठतीं। थोड़ी देर में जानकारी मिली कि पीएम मोदी अपनी मां के अंतिम दर्शन के लिए निकल चुके हैं। प्रधानमंत्री की मां, जिनका ट्रीटमेंट अहमदाबाद के एक सरकारी अस्पताल में चल रहा था। जी हां, अहमदाबाद के एक सरकारी अस्पताल में। अहमदाबाद पहुंचने के बाद पीएम अपने छोटे भाई के सामान्य से फ्लैट में पहुंचे, मां का दर्शन किया और उसके बाद मां की अंतिम यात्रा के लिए निकल पड़े। पीएम और अन्य भाइयों ने पार्थिव शरीर को कंधा दिया और सरकारी शव वाहिनी में मां हीरा बा के पार्थिव शरीर को लेकर श्मशान घाट रवाना हो गए।

पीएम हाथ जोड़े और आंसूओं को रोके एकटक अपनी उस मां को निहारते रहे, जिन्होंने न सिर्फ़ उन्हें जन्म दिया था बल्कि उच्च मानवीय और नैतिक मूल्यों से उनके व्यक्तित्व को गढ़ा भी था। निष्प्राण मां के चेहरे पर भी ये संतुष्टि भाव दिख रहा था कि जिन संस्कारों और मूल्यों से गढ़कर अपने जिगर के टुकड़े को देश के लिए सौंपा था, वो देश-दुनिया की नज़र में वैसा ही सौ फीसदी खरा निकला। मां की संघर्ष गाथा की हर तस्वीर ने बचपन से नरेंद्र मोदी के दिलो-दिमाग पर ऐसा असर डाला, जो गरीबों के लिए जनकल्याणकारी योजनाओं में परिवर्तित होती रहीं हैं।

ये शव यात्रा वैसी ही थी जो किसी भी बेहद सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार के यहां होती है। राजकीय प्रभाव का दूर दूर तक कोई इस्तेमाल नहीं हुआ। प्रशासन को सख्त निर्देश था कि किसी प्रकार की असुविधा सामान्य नागरिकों को न हो। पीएम से मिलने के जाने के लिए बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और तमाम बड़े केंद्रीय मंत्रियों ने ईच्छा जताई। प्रधानमंत्री ने सभी को यही कहा कि अन्य दिनों की तरह अपने दायित्वों का निर्वाह करें, आने की जरूरत नहीं, संवेदना स्वीकार लिया। कोई वीआईपी विजिट नहीं हुआ, न उसका अवसर दिया गया।

9:30 AM पर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हुई और 10:30 AM बजे तक संपन्न हो गई। वहां से निकलकर पीएम राजभवन पहुंचे, स्नान किया और बिना कुछ खाए पीए पूर्व निर्धारित सरकारी कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के मार्फत जुड़ गए। व्यक्तिगत पीड़ा पीएम के चेहरे पर साफ दिख रही थी लेकिन जिम्मेदारियों के निर्वाह का भाव उसे छुपा रहा था। मातृशोक के बावजूद पीएम ने सरकारी कार्यक्रम को पूर्व निर्धारित ही रखा लेकिन दूसरी तरफ बंगाल की मुख्यमंत्री इसलिए मंच पर नहीं गयीं क्योंकि उनके कानों में ‘जय श्री राम’ का नारा चुभ गया। तस्वीरों में साफ दिखा कि कैसे राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री ममता से मनुहार करते रहे लेकिन ममता टस से मस नहीं हुईं।

आमतौर पर सत्ताधीशों के अहंकार ऐसे ही होते हैं जिससे पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद को न जाने कैसे अछूत रखा। दुनिया के इतिहास को पलटकर खंगालने पर भी ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा कि किसी प्रधानमंत्री ने मातृशोक के बावजूद अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के निर्वाह और कर्म में तनिक भी बदलाव नहीं किया। पीएम ने आज भी सहज भाव से बैठक की और उस मिशन को जारी रखा जो घर-परिवार छोड़ने के वक्त उन्होंने ठाना था। पीएम के चेहरे का भाव इस संकल्प को साफ बता रहा था कि मां की अंतिम यात्रा तो पूरी हो गयी लेकिन उस मां के दिए संस्कार और मूल्यों की यात्रा तो अनवरत जारी रहेगी और राष्ट्र की सेवा में वैसे ही दिखती रहेगी।

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