बिलकिस बानो केस के 3 दोषियों ने सरेंडर करने के लिए कोर्ट से समय की मांग की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत अर्जी दाखिल की है। बता दें कि 2 दोषियों में से एक ने 6 सप्ताह और एक ने 4 सप्ताह का वक्त मांगा है। बता दें कि उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। इस मामले की सुनवाई 19 जनवरी को होगी। वहीं दोषियों को 21 जनवरी तक सरेंडर करना होगा। बता दें कि इससे पूर्व 8 जनवरी को इस मामले के 11 दोषियों को सजा में छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था और दो सप्ताह के अंदर ही दोषियों को जेल भेजने का निर्देश दिया था।
दोषियों पर सुनवाई के लिए SC तैयार
बता दें कि साल 2002 में हुए दंगों के दौरान बिलकिस बाने को साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया गया था। साथ ही उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या भी की गई थी। इसी मामले में 11 दोषियों की सजा में राज्य सरकार ने कटौती की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए नया आदेश जारी किया था। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया और पूछा कि क्या ‘‘महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट की अनुमति है’’, चाहे वह महिला किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो।
गुजरात दंगों के वक्त हुआ था रेप
बता दें कि घटना के वक्त बिलकिस बानो की आयु 21 वर्ष थी। उस दौरान बिलकिस 5 महीने की गर्भवती भी थीं। लेकिन गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद गुजरात में दंगे भड़क गए। इस दौरान बिलकिस बाने के साथ दुष्कर्म किया गया। इस मामले में गुजरात सरकार ने सभी दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया गया था। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम गुजरात सरकार द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग करने के आधार पर सजा में छूट के आदेश को रद्द करते हैं।’’ पीठ ने 100 पन्नों से अधिक का फैसला सुनाते हुए कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है।
शीर्ष अदालत का आदेश
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि जिस राज्य में किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, उसे ही दोषियों की सजा में छूट संबंधी याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था। पीठ ने कहा, ‘हमें अन्य मुद्दों को देखने की जरूरत नहीं है। कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया, जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। उस आधार पर भी सजा में छूट के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।’’ शीर्ष अदालत ने सजा में छूट संबंधी दोषियों में से एक की याचिका पर गुजरात सरकार को विचार करने का निर्देश देने वाली अपनी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को ‘अमान्य’ माना और कहा कि यह ‘अदालत से धोखाधड़ी’ करके और ‘तथ्यों को छिपाकर’ हासिल किया गया।