Bharat Jodo Yatra: कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा अभियान जारी है। यह तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर से होकर गुज़रेगी। 150 दिनों तक चलने वाली यह यात्रा 3570 किलोमीटर की होगी। वैसे तो राहुल गांधी कहते हैं कि उनके नेतृत्व में यह यात्रा नहीं हो रही है, लेकिन हक़ीक़त क्या है सब जानते हैं। कांग्रेस के इस भारत जोड़ो यात्रा का ज़्यादातर समय दक्षिण भारत में ही बीतेगा। ऐसे में यह बात होना लाज़िमी है कि राहुल गांधी का फ़ोकस दक्षिण भारत की राजनीति पर ज़्यादा है।
ऐसा क्यूं है इसकी कोई एक वजह तो है नहीं। लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में अमेठी से हारने के बाद और इसी चुनाव में अपने दूसरे सीट केरल के वायनाड से चुनाव जीतने के बाद से ही राहुल गांधी की राजनीति का फ़ोकस दक्षिण भारत पर है। उत्तर भारत की राजनीति से कांग्रेस फ़िलहाल ग़ायब है। इन राज्यों में कांग्रेस की खोई हुई ज़मीन को वापस लाने की कोशिश में प्रियंका गांधी लगी हुई हैं, लेकिन सफ़लता नहीं मिल पा रही है। आपको राहुल गांधी का वो बयान याद ही होगा जिसमें राहुल गांधी ने उतर-दक्षिण भारत की राजनीति की तुलना की थी, जिसके बाद बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस पार्टी के ही कई सीनियर नेताओं ने नाराज़गी जताई थी। राहुल गांधी ने खुलकर कहा था कि दक्षिण भारत में मुद्दों की राजनीति होती है।
गांधी परिवार के लिए दक्षिण भारत हमेशा से सेफ रहा है
ऐसा नहीं है कि दक्षिण भारत में कांग्रेस की स्थिति काफ़ी मज़बूत है, लेकिन गांधी परिवार के लिए दक्षिण भारत से सियासत करना उतना भी मुश्किल नहीं है। हाल ही में राहुल गांधी का केरल के वायनाड से चुनाव जीतना इसका उदाहरण है। पहले भी गांधी परिवार के लिए दक्षिण एक सेफ़ प्लेस रहा है। आपातकाल के बाद चुनाव में जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों अपनी सीट हार गए थे और कांग्रेस सिमटकर 153 पर आ गई थी। उस वक्त भी पार्टी को 92 सीट दक्षिण भारत से मिली थी। 1978 के लोकसभा उपचुनाव में इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से जीत हासिल की थी। 1980 के आम चुनाव में वह तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मेडक से चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। साल 1999 में सोनिया गांधी ने कर्नाटक के बेल्लारी सीट से लोकसभा का चुनाव लड़कर भाजपा की सुषमा स्वराज को हराया था।
दक्षिण में भी कांग्रेस के सामने चुनौती है
भारत जोड़ो यात्रा में शामिल तमिलनाडु और केरल, दो ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। 52 सीटों में से 23 सीटें इन्ही दो राज्यों से आए थे। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना की बात करें तो इन राज्यों में अधिकतर सीटों पर ऐसी पार्टियों का क़ब्ज़ा है जो ना तो खुलकर NDA के साथ हैं और ना ही कांग्रेस के साथ हैं। तेलंगाना के सीएम के.चन्द्रशेखर राव तो कांग्रेस के ख़िलाफ़ मोर्चा ही खोले हुए हैं। अगर TRS को छोड़ दें तो इन दो राज्यों में कांग्रेस पार्टी अपने राजनैतिक सहयोग की तलाश करने की कोशिश करेगी।
अब अगर एक साथ तमिलनाडु, केरल, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना को कांग्रेस के नज़रिए से देखें तो तेलंगाना को छोड़कर इन राज्यों में बीजेपी के लिए खाता खोलना भी मुश्किल हो जाता है। कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति मज़बूत है वहां भले ही बीजेपी की सरकार है लेकिन मुख्य विपक्षी के रूप में कांग्रेस ही है। चुनाव से पहले कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को यहां पार्टी में मची कलह को ठीक करने से आने वाले चुनाव में राह आसान हो जाएगा। राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के यह चारों राज्य ऐसे हैं जहां 2014 लोकसभा चुनाव में ख़राब प्रदर्शन के बावजूद भी जनता ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी पर भरोसा जताया था। यह अलग बात है कि एमपी और पंजाब कांग्रेस के हाथ से निकल गए।