सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के भीतर कोटा लागू करने के फैसले के खिलाफ बुधवार को 14 घंटे के लिए भारत बंद का आह्वान किया गया है। नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशंस नामक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दलित और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ बताया है और केंद्र सरकार से इसे रद्द करने की मांग की है और इसी मुद्दे को लेकर भारत बंद का ऐलान किया गया है।
आज क्यों बुलाया गया है भारत बंद
आज भारत बंद बुलाने का मुख्य उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देना और इसे वापस लेने की मांग करना और सरकार पर दबाव डालना है। संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट कोटे में कोटा वाले फैसले को वापस ले या पुनर्विचार करे। बंद में शामिल होने वाले NACDAOR ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी से बुधवार को शांतिपूर्ण आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील की है। आज के भारत बंद में शामिल संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।
जानिए क्या मांगें रखी गईं हैं
NACDAOR संगठन ने सरकारी नौकरी कर रहे सभी एससी, एसटी और ओबीसी कर्मचारियों का जातिगत आंकड़ा जारी करने और भारतीय न्यायिक सेवा के जरिए न्यायिक अधिकारी और जज नियुक्त करने की मांग रखी है। इसके साथ ही संगठन का कहना है कि सरकारी सेवाओं में SC/ST/OBC कर्मचारियों के जाति आधारित डाटा तत्काल जारी किया जाए ताकि उनका सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। समाज के सभी वर्गों से न्यायिक अधिकारियों और जजों की भर्ती के लिए एक भारतीय न्यायिक सेवा आयोग की भी स्थापना की जाए ताकि हायर ज्यूडिशियरी में SC, ST और OBC श्रेणियों से 50 फीसदी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।
भारत बंद में कौन-कौन से संगठन और दल शामिल हैं
आज के भारत बंद का दलित और आदिवासी संगठन के अलावा कई राज्यों की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी समर्थन कर रहीं हैं। इनमें प्रमुख रूप से समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी (काशीराम) भारत आदिवासी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, एलजेपी (R) समेत अन्य संगठनों का नाम शामिल है. कांग्रेस ने भी बंद का समर्थन किया है।
सुप्रीम कोर्ट के किस फैसले का हो रहा विरोध
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के अंदर कोटा से जुड़े मामले में कुछ ही दिनों पहले अपना फैसला सुनाया, जिसमें संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है। इसका मतलब ये है कि इस फैसले के बाद राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं, ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने ही पुराने फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने यह साफ कहा था कि SC के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दिया जा सकता है और SC में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने ये बड़ा फैसला सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध हो रहा है। कई संगठनों ने इसे आरक्षण नीति के खिलाफ बताया है और कहा है कि इससे आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था पर निगेटिव प्रभाव पड़ेगा और सामाजिक न्याय की धारणा कमजोर हो जाएगी। विरोध करने वालों का ये भी कहना है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए है।