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Bhagat Singh Jayanti 2023: यूं ही नहीं बनता कोई भगत सिंह, अंग्रेजों ने तय तारीख से एक दिन पहले दी फांसी, पढ़ें उनके विचार

आज भगत सिंह की जयंती है। आज हम आपको उनके बारे में कुछ ऐसी बातें बताने वाले हैं जो आपको चौंका देंगे। जानकारी के लिए बता दें कि भगत सिंह को तय तारीख से पहले ही फांसी दे दी गई थी। इस दौरान अंग्रेजों में डर का माहौल था।

Written By: Avinash Rai @RaisahabUp61
Published : Sep 28, 2023 8:32 IST, Updated : Sep 28, 2023 8:32 IST
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Image Source : FILE PHOTO भगत सिंह

Bhagat Singh Jayanti 2023: देश में जब भी स्वतंत्रता आंदोलन की बात हो या फिर किसी क्रांति की बात होती है तो भगत सिंह का नाम सबसे पहले आता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह का योगतान अतुलनीय रहा है। मात्र 23 वर्ष की आयु में भगत सिंह ने अंग्रेजों की नाक में इतना दम कर दिया कि अंग्रेजों को उन्हें फांसी की सजा देनी पड़ गई। अंग्रेजों को भगत सिंह और उनके चाहने वालों से इतना खौफ था कि तय तारीख से एक दिन पहले ही गुपचुप तरीके से अंग्रेजों से भगत सिंह को फांसी दे दी थी। हालांकि इसकी सूचना जैसे ही लोगों को मिली तो हालात तनावपूर्ण हो गए और कई जगह अशांति फैल गई। अंग्रेजों ने कई प्रयास किए कि भगत सिंह झुक जाएं लेकिन उन्होंने झुकने के बजाय वीरगति को चुना। 

भगत सिंह का जन्म और उनकी फांसी

महान क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था। बता दें कि बंगा वर्तमान में पाकिस्तान पंजाब का भाग है। मात्र 23 वर्ष की आयु में भगत सिंह को फांसी की सजा दे दी गई थी। इस दौरान उनके साथ राजगुरू और सुखदेव को भी फांसी की सजा दी गई थी। बता दें कि एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या के जुर्म में तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। 

भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

- प्रेमी, पागल या कवि हो ये सभी एक ही चीज से बने होते हैं, लोग देशभक्तों को अक्सर पागल ही कहते हैं।

- दूसरे के कंधों पर केवल जनाजे उठते हैं। अपने कंधे पर जीवन जी जाती है।
- लोगों को कुचलकर भी उनके विचारों को नहीं मारा जा सकता है।
- वे मुझे मार सकते हैं लेकिन मेरे विचारों को नहीं, मेरे जज्बे को नहीं।
- अगर बहरों को आवाज सुनानी है तो आवाज जोरदार करना होगा।

फांसी से पहले क्या हुआ?

भगत सिंह को 23 मार्च के दिन फांसी दे दी गई थी। लेकिन 22 मार्च की रात लाहौर में तेज आंधी चल रही है। इस समय तक भगत सिंह की फांसी तय हो चुकी थी। 23 मार्च की सुबह तूफान शांत हुआ। इस दौरान सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक मेजर पीडी चोपड़ा के कमरे में जेल अधिकारियों ने दबी जुबान में बातचीत की। इसके बाद पंजाब सरकार ने सुबह 10 बजे भगत सिंह से आखिरी मुलाकात की अनुमति दी। इस दौरान उनके वकील प्राणनाथ मेहता ने भगत सिंह से मुलाकात की थी। इस दौरान जेल अधीक्षक चोपड़ा और उनके नेतृत्व में कुछ ब्रिटिश अधिकारी भगत सिंह से मुलाकात करने आए। इस दौरान उन्होंने भगत सिंह से मांफी मांगने बात कही, जिसे भगत सिंह ने तिरस्कारपूर्वक अस्वीकार कर दिया था। भगत सिंह अपने अंतिम समय में भी अंग्रेजी सरकार के आगे नहीं झुके।

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