Highlights
- शादी की बात सामने आई तो घर से भागे
- जॉन सॉन्डर्स के मारी थी गोली
- दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में फेंके थे बम
Bhagat Singh Jayanti 2022: शहीद ए आजम भगत सिंह की जयंती को आज (28 सितंबर) पूरा देश मना रहा है। 23 साल की उम्र में देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवाने के लिए वह फांसी के फंदे पर हंसते हुए चढ़ गए थे। भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु की शहादत ने पूरे देश में आजादी पाने की अलख जगा दी थी। ये वो दौर था, जब भगत सिंह महात्मा गांधी की तरह बेहद लोकप्रिय थे। आज भी देश के युवाओं के लिए भगत सिंह हीरो हैं और हमेशा रहेंगे।
शादी की बात सामने आई तो घर से भागे
भगत सिंह (Bhagat Singh) की देशभक्ति की प्रबल भावना को इस बात से भी समझा जा सकता है कि जब उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की थी तो वह अपने घर से भाग गए थे। उन्होंने कहा था कि अगर गुलाम भारत में शादी की, तो उनकी दुल्हन केवल मौत होगी।
जॉन सॉन्डर्स के गोली मारी
भगत सिंह (Bhagat Singh) ने लाला लाजपत राय पर हुए हमले के बदले की योजना बनाई थी और इसके लिए लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने का प्लान था। हालांकि वो स्कॉट को पहचान ना सके और उन्होंने असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स के गोली मार दी थी।
दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके
8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह (Bhagat Singh) और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। इस दौरान कई पर्चे भी फेंके गए थे, जिसमें लिखा था कि 'बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत पड़ती है।' हालांकि भगत सिंह ने पहले ही इस बात को सुनिश्चित कर लिया था कि उनके फेंके गए बमों से किसी का नुकसान न हो। बम फेंकने के बाद उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया था।
23 मार्च को दी गई फांसी
भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथियों को 7 अक्टूबर 1930 को मौत की सजा सुनाई गई थी। 24 मार्च 1931 का दिन फांसी के लिए तय हुआ था लेकिन एक दिन पहले ही यानी 23 मार्च को उन्हें फांसी दे दी गई।
सोचेगा मौत पास देख डर गया!
वो 23 मार्च 1931 का दिन था, जब भगत (Bhagat Singh) को बताया गया कि उनकी फांसी होने वाली है। भगत सिंह इस दौरान मेहता की लाई हुई एक किताब को पढ़ रहे थे। भगत ने पूछा कि क्या एक चैप्टर पढ़ने का समय है? फिर भगत को कोठरी से निकाला गया और आखिरी बार नहाने के लिए कहा गया। वहां का वार्डन चरन सिंह भगत से प्रभावित था। वार्डन ने भगत सिंह से कहा कि आखिरी बार वाहे गुरू का नाम ले लो। इस पर भगत सिंह ने हंसते हुए कहा था, 'मैंने तो उसको कभी याद नहीं किया लेकिन अब करूंगा तो कहेगा कि मैं कितना डरपोक हूं और मौत को पास देखकर याद कर रहा हूं।'