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Bakrid 2022: आज देशभर में मनाई जा रही बकरीद, दिल्ली के जामा मस्जिद में ईरानी राजदूत सहित काफी संख्या में लोगों ने अदा की नमाज

Bakrid 2022: आज बकरीद के मौके पर देशभर के ईदगाहों और मस्जिदों में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग नमाज (Namaz) अदा करने पहुंच रहे है। ईद-उल फित्र पर जहां खीर बनाने का रिवाज है, वहीं बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है।

Written By: Shashi Rai @km_shashi
Published : Jul 10, 2022 7:52 IST, Updated : Jul 10, 2022 7:53 IST
Offered Namaz at Jama Masjid in Delhi
Image Source : ANI Offered Namaz at Jama Masjid in Delhi

Highlights

  • आज देशभर में मनाई जा रही बकरीद
  • ईदगाहों और मस्जिदों में अदा की जा रही है नमाज
  • दिल्ली के जमा मस्जिद में ईरानी राजदूत ने अदा की नमाज

Bakrid 2022: आज बकरीद के मौके पर देशभर के ईदगाहों और मस्जिदों में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग नमाज अदा करने पहुंच रहे है। बकरीद(Bakrid) के मौके पर दिल्ली के जामा मस्जिद में ईरान के राजदूत डॉ. अली जेगेनी नमाज अदा करने पहुंचे थे। नमाज अदा करने के बाद ईरानी राजदूत ने कहा कि, 'मुझे अपने भाइयों के साथ नमाज अदा करने का अवसर मिला। मैं सभी को सलाह देता हूं की कम से कम एक बार यहां आकर ईद के जश्न का अनुभव करें। कम से कम शुक्रवार को भी।' ईद-उल फित्र पर जहां खीर बनाने का रिवाज है, वहीं बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है। ईद के तीन दिनों तक जारी रहने वाले पैगंबर इब्राहिम की परंपरा का पालन करते हुए मुस्लमान जानवरों की कुर्बानी करते हैं। कुर्बानी का उद्देश्य न केवल परंपरा के अनुसार एक जानवर की बलि देना है। बल्कि अपने आप को दान के कार्यों के लिए समर्पित करना है। बकरीद के पहले इंडियन मुस्लिम फॉर प्रोग्रेस एन्ड रिफॉर्म्स संगठन और अन्य धर्मगुरुओं की ओर से गाइडलाइंस जारी की गई । संगठन के मुताबिक, इस्लाम स्वच्छता और शांति, लोगों की मदद करने और उनकी भावनाओं का सम्मान करने पर बहुत जोर देता है। इसके साथ ही कई सारे बिंदुओं के जरिए लोगों से अपील की गई है कि, कुर्बानी के आयोजन के लिए नियमों का पालन किया जाना चाहिए।

कुर्बानी की शुरुआत ऐसे हुई 

इस्लाम धर्म में मान्यता के हिसाब से आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद हुए। हजरत मोहम्मद के समय में ही इस्लाम ने पूर्ण रूप धारण किया और आज जो भी परंपराएं इस्लाम धर्म को मानने वाले अपनाते हैं वो पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं। लेकिन इनसे पहले भी बड़ी संख्या में पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया। कुल 1 लाख 24 हज़ार पैगंबरों में से एक थे हजरत इब्राहिम। इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ। हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे। उनके बेटे का नाम इस्माइल था। हजरत इब्राहिम अपने बेटे को बहुत प्यार करते थे। एक दिन हजरत इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान कीजिए। इस्लामिक जानकार बताते हैं कि ये अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसाल लिया। उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी। लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आ गया। जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी बटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत खड़े थे।

इनके दौर में नमाज पढ़ने की शुरुआत हुई

बताया जाता है कि ये महज एक इम्तेहान था और हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम के वक्त में कुर्बानी की शुरुआत हुई और ईदगाह पर जाकर नमाज पढ़ने का सिलसिला पैगंबर मोहम्मद के दौर में शुरू हुआ। पैगंबर मोहम्मद के नबी बनने के करीब डेढ़ दशक बाद ये तरीका अपनाया गया। उस वक्त पैगंबर मोहम्मद मदीना आ गए थे।  

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