भगवद गीता अगर आपने पढ़ी है तो आप यह समझ सकते हैं कि धार्मिक और सात्विक लोग जब अपने समाज का त्याग कर देते हैं तो उनपर अत्याचारी और दुराचारी ही शासन करते हैं। दुराचारी के शासन का नतीजा यह होता है कि जब हस्तिनापुर कुलवधू के वस्त्र उतारे जा रहे थे विद्वान विदुर, महान योद्धा और शास्त्रों के ज्ञाता पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे लोग सिर झुकाए खड़े थे। वहीं अगर राजा का साथ दुर्योधन जैसे दुराचारी के समर्थन में होता है तो उस दुराचारी का हौसला और बढ़ ही जाता है। इससे कुछ-कुछ मिलती जुलती कहानी प्रयागराज में देखने को मिली है। जी हां हम बाहुबली अतीक अहमद के बारे में बात कर रहे हैं। किसी ने यह नहीं सोचा था कि अतीक प्रयागराज व उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में रहने वाले लोगों के नाक में इतना दम कर देगा। अतीक अहमद की शनिवार रात गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसी दौरान अशरफ को भी गोली मारी गई और दोनों की मौके पर मौत हो गई। उसकी क्रूरता की कहानियां भी बहुत चर्चित है। जमीन हड़पना, रंगदारी, किडनैपिंग, वसूली, हत्या समेत कई अपराधों में अतीक संलिप्त था। लेकिन एक दिन यही अपराधी देश की संसद तक पहुंचता है। पढ़ें कहानी एक तांगेवाले के बेटे की जो जरायम (अपराध) की दुनिया का बेताज बादशाह बना।
प्रयागराज के चकिया का रहने वाला अतीक
उमेशपाल हत्याकांड के बाद अतीक का नाम तेजी से ऊपर आया। इस मामले में अतीक के पूरे परिवार को आरोपी बनाया गया। इसी कड़ी में अतीक के बेटे असद की एनकाउंटर में मौत हो गई है। वहीं शनिवार की रात अतीक और अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई। ऐसे में प्रयागराज में एक माफिया साम्राज्य का अंत हो गया। लेकिन कहानी शुरू होती है प्रयागराज के छोटे से इलाके चकिया से। 10 अगस्त 1962 को अतीक का जन्म इलाहाबाद में हुआ। पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकार पूरे परिवार का पेट पालते थे। अतीक 10वीं की परीक्षा में फेल हो गया लेकिन इसी दौरान वह अपने इलाकों के बदमाशों के संपर्क में आया और जल्दी ही उसने अपहरण, लूट, रंगदारी जैसी घटनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया लेकिन अतीक को बचपन से ही पैसे, सत्ता, पावर और बाहुलबल का खुमार था। बस उसकी इसी चाहत ने उसे जरायम की दुनिया में धकेला और देखते ही देखते प्रयागराज समेत कई जिलों में अतीक अहमद की तूती बोलने लगी।
बाहुबली बनने की कहानी
साल था 1979 इस दिन पहली बार अतीक अहमद पर हत्या का आरोप लगा था। इसके बाद चकिया मोहल्ले में अतीक का नाम तेजी से फैला। लोग अतीक के रुतबे तले दबने लगे और उसने लोगों के इसी डर का फायदा उठाते हुए लोगों से उगाही और वसूली करना शुरू कर दिया। एक तरफ जहां अतीक के पास पैसे आने वहीं दूसरी तरफ अतीक का साम्राज्य तेजी से फैलने लगा। पहले पूरे प्रयागराज में फिर धीरें धीरे कई जिलों में। अतीक का बाहुबल समय के साथ तेजी से बड़ा हो रहा है। उसे ना तो सुल्तान मिर्जा की तरह मुंबई और वहां के लोगों से आशिकी थी और ना ही व सुल्तान मिर्जा की तरह मुंबई को प्यार से चलाना चाहता था। वह तो प्रयागराज में दीमक की तरह घुसपैठ कर सबकुछ राख करने के फिराक में था। इसी दौरान इलाहाबाद (प्रयागराज) में एक और दबंग हुआ करता था चांद बाबा। चांद बाबा वो नाम था जिससे पुलिस हो या प्रशासन सभी खौफ खाते थे। चांद बाबा ने अतीक को सपोर्ट किया और फिर क्या था चांद बाबा के कंधे पर पैर रखकर अतीक जुर्म और अपराध की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ने लगा।
छोटी कद काठी का एक आदमी जब प्रयागराज जैसे विद्वान और शक्तिशालियों के जिले पर शासन करने लगता है तो यह सोचने पर लोगों को मजबूर होना पड़ता है कि आखिर यह कैसे संभव हो पाया। यह संभव हो पाया क्योंकि लोगों में उसके खिलाफ बोलने की क्षमता खत्म हो गई थी। समाज में जब लोगों में अपराध और अन्याय के विरुद्ध बोलने की क्षमता खत्म हो जाती है तो दुर्योधन जैसे शासक ही हस्तिनापुर पर शासन करते हैं और अंतत: महाभारत के युद्ध में पुरे कुरु वंश का नाश तय होता है। यह दौर कुछ ऐसा ही था जब अतीक को लोग आंख दिखाने में डरते थे और फिर अतीक एक के बाद एक कई अपराध करने लगा और लगातार उसके नाम पर अलग अलग थानों में केस दर्ज होने लगे।
दिल्ली के फोन से बची अतीक की जान
अतीक की शक्ति का अंदाजा आपको इस एक किस्से से लग जाएगा। बात है साल 1986 की जब यूपी पुलिस अतीक अहमद के पीछे लगी थी और अतीक पुलिस के लिए चुनौती बन चुका ता क्योंकि अतीक का अपराध दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। पुलिस अतीक की तलाश कर रही ती और अंतत: पुलिस ने अतीक को गिरफ्तार किया और एक अज्ञात स्थान पर अतीक को ले गई। सभी को यह लगने लगा का अतीक का खेल इस दिन खत्म हो जाएगा। लेकिन तभी दिल्ली से लखनऊ में एक फोन आता है और फिर लखनऊ से यही फोन प्रयागराज में किया जाता है। इसके बाद अतीक को सही सलामत छोड़ दिया जाता है। इस दौरान केंद्र में राजीव गांधी पावर में थे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे वीर बहादुर सिंह।
चांद बाबा और अतीक आमने सामने
जिस चांद बाबा के दहशत के बारे में हमने आपको बताया था अतीक उसी चांद बाबा से भी ज्यादा शक्तिशाली बनने में लगा था। इसी सत्ता और शक्ति की लड़ाई ने दोनों गैंगों के बीच कई बार गोलीबारी कराई। एक समय आया जब चुनाव में अतीक अहमद और चांद बाबा दोनों आमने सामने थे। इस दौरान अतीक को विधायक चुन लिया गया। साल 1991 से 1993 के बीच अतीक ने कई बार निर्दलीय चुनाव जीता और इसके बाद साल 1996 में वह समाजवादी में समा गया और फिर चौथी बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक बना।
राजू पाल से हार स्वीकार नहीं..
साल 2004 में अतीक समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुना गया और पहुंच गया देश के संसद भवन में। लेकिन इलाहाबाद पश्चिमी सीट खाली होने पर उसने अपने भाई अशरफ को उस सीट से चुनाव लड़ाने की तैयारी की। लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने राजूपाल को टिकट दिया। इस चुनाव में राजू पाल ने अशरफ को हरा दिया। लेकिन बाहुबल की दुनिया में हार कहां स्वीकार होती है। अतीक के बाहुबल को राजू पाल से मिली इस चुनौती का नतीजा था कि राजू पाल की हत्या 25 जनवरी 2005 को करा दी गई। राजू पाल इस दौरान विधायक थे। राजू पाल के पोस्टमॉर्टम में खुलासा हुआ कि उन्हें 19 गोलियां मारी गई थी। इस घटना की खबर जैसे ही फैली कि पूरा उत्तर प्रदेश दहल गया।
अतीक पर मायावती का शिकंजा
बात है साल 2007 की जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। उनका पहला मकसद था माफिया पर कंट्रोल। बस फिर क्या था राजू पाल को मरवाना अतीक के लिए खतरा साबित हुआ और मायावती ने अतीक को मोस्ट वांटेड करारा दिया और अतीक के पूरे गैंग का डिटेल तैयार करवाई। इसके बाद 120 लोगों की लिस्ट तैयार करने के बाद पहली बार अतीक पर 20 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया। लेकिन अतीक इतने से कहां रुकने वाला था। मायावती के शासन के दौरान अतीक कुछ समय के लिए शांत तो हुआ लेकिन खूंखार अपराधी ने सही समय का इंतजार किया और जैसे ही राज्य में सरकार बदली और दोबारा समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल कर सरकार बनाई तो अतीक ने फिर से अपराध का खेल शुरू किया और खूब पैसा बनाया।
अतीक ने की चांद बाबा की हत्या?
वैसे तो जेल में बैठकर किसी की हत्या करवानी हो या किसी को उठवाकर जेल में बुलवाना। मारपीट कर फिरौती मांगना। अतीक के नाम कई मामले दर्ज हैं। लेकिन कुछ केस ऐसे हैं जिस कारण अतीक के सामने सिर उठाने से हर कोई डरता था। अतीक पर 1989 में चांद बाब की हत्या का आरोप लगा। इसके बाद 2002 में नस्सन की हत्या। 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी भाजपा नेती की हत्या और साल 2005 में राजूपाल की हत्या का आरोप अतीक पर लगा। एक और चर्चित केस है जिसमें साल 2018 में अतीक के गुंडे एक व्यापारी को अगवा किया और उसे देवरिया जेल में ले गया। इसी जेल में अतीक कैद था। जेल में अतीक के गुंडो ने पूरी घटना का वीडियो बनाया और सेयर किया। अतीक ने जेल में बैठे बैठे यह कांड इसलिए कराया ताकि लोग उसके बाहुबल को खुलेआम देख सकें और लोगों में उसके नाम का दहशत बना रहे।
गाड़ियों का काफिला
दिन बीतता गया और अतीक का साम्राज्य खूब फलता फूलता रहा। साल 2016 में समाजवादी पार्टी में बवाल मचा हुआ था। राजनीति खींचतान के बीच अतीक अपने 60 से ज्यादा समर्थकों के साथ एक कॉ़लेज में जाकर मारपीट करता है और धमकी देता है। इसका एक वीडियो भी सामने आया था। इसके बाद वह करीब 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा था ताकि वह अपने बाहुबल को दिखा सके। बाहुबल की सनक इस वक्त तक अतीक के सिर चढ़कर बोल रहा था। लेकिन जब अतीक अहमद को लेकर अखिलेश यादव से सवाल किया गया तो इस दौरान अखिलेश यादव ने साफ कह दिया कि अतीक जैसे लोगों के लिए समाजवादी पार्टी में कोई जगह नहीं है। इसके बाद अतीक को समाजवादी पार्टी से चुनावी टिकट नहीं मिला। बाहुबली ने अब अखिलेश यादव को ही चुनौती देते हुए यहां तक कह दिया कि टिकट कटता है तो कट जाए, पहले भी मैं जीता हूं, अपना टिकट मैं खुद बना लूंगा।
अतीक के खिलाफ खड़ा होने की हिम्मत किसी की नहीं
अतीक आतंक का पर्याय बन चुका था। लोगों में इतनी दहशत थी कि लोग उसके खिलाफ राजनीति करने से डरते थे। यही कारण था कि इलाहाबाद की पश्चिमी विधानसभा सीट से कोई भी अतीक अहमद के खिलाफ चुनाव लड़ने से डरता था। मायावती का गेस्ट हाउस कांड तो लगभग आप जानते ही होंगे। इस गेस्ट हाउस कांड ने देश की राजनीति में खलबली मचा दी थी। दरअसल साल 1995 में मुलायम सिंह यादव की सपा और कांशीराम की बसपा गठबंधन सरकार यूपी में सत्ता में थी। लेकिन गठबंधन कुछ ठीक से नहीं चल रहा था। लेकिन 23 मई 1995 को मुलायम सिंह यादव कांशीराम से बात करना चाहते थे लेकिन कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव से बात करने से मना कर दिया। इसी रात कांशीराम ने भाजपा नेता लालजी टंडन को फोन किया और भाजपा बसपा गठबंधन को लेकर बात हुई।
गेस्ट हाउस कांड में शामिल था अतीक
इस समय कांशीराम अस्पताल में खराब तबियत के कारण भर्ती थी। इस दौरान उनके साथ मायावती भी मौजूद थी। तब कांशीराम ने मायावादी को सीएम बनाया। 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्टहाउस में विधायकों संग मीटिंग कर रही थीं। इसी दौरान समर्थन वापसी से मुलायम सिंह गुस्से में थे। उन्होंने अपने समर्थकों को गेस्ट हाउस भेज दिया। इस दौरान मुलायम सिंह ने अपने समर्थकों और विधायकों को एक काम दिया कि वो किसी भी तरह कुछ विधायकों को समझाकर धमकाकर अपनी तरफ करें। इस समर्थकों की भीड़ में एक शख्स अतीक अहमद भी था। बाहुबलियों की इस फौज ने चार बजे गेस्ट हाउस के बाहर हिंसा शुरू कर दी और दो घंटे तक करीब यह नाटक चलता था। इसके बाद जब मामला शांत हुआ तब मायावती ने आरोप लगाया था कि उनके कुछ विधायकों का अपहरण करने का प्रयास किया गया है और मायावती के साथ भी अभद्रता की गई है। वहीं उन्हें जातिसूचक गालियां दी गई है। इस घटना के मुख्य आरोपियों में अतीक अहमद का भी नाम शामिल था।
अतीक के साम्राज्य का अंत
साल 2017 में योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्यमंत्री चुनकर आते हैं। योगी आदित्यनाथ का सीधा मकसद था राज्य में बढ़ चुके अपराध को घुटने पर लाना और उन्हें सत्ताविहीन करना। योगी का एक्शन माफियाओं के खिलाफ चलने लगा। अतीक को कोर्ट के आदेश के बाद साल 2019 में गुजरात के साबरमती जेल में शिफ्ट किया गया। इसके बाद योगी सरकार द्वारा अतीक अहमद की कमर तोड़ी जाने लगी और उसकी संपत्तियों की कुर्की होने लगी और अतीक के गुर्गों को जेल में ठूंसा जाने लगा। राजू पाल हत्याकांड में उमेश पाल की 24 फरवीर 2023 को धूमनगंज में हत्या करवा दी गई। उमेश पाल राजू पाल हत्याकांड के इकलौते गवाह थे। उनकी गवाही से कुछ दिन पहले ही उनकी हत्या ने अतीक की ताबूत में कील का काम किया। इस मामले में अतीक के पूरे परिवार को आरोपी बनाया गया और अतीक के तीसरे नंबर के बेटे असद को भी आरोपी बनाया गया और बताया गया कि असद ने इस हत्याकांड की प्लानिंग की और अंजाम दिया। असद को पुलिस ने झांसी में हुए एनकाउंटर में मार गिराया। शनिवार की रात जब अतीक और अशरफ को मेडिकल चेकअप के लिए लेकर जाया जा रहा था तभी 3 बदमाशों ने अतीक को प्वाइंट ब्लैंक रेंज से सिर में गोली मार दी। इस दौरान अशरफ और अतीक को कई गोलियां मारी गई और दोनों भाईयों की मौके पर ही मौत हो गई। इसी के साथ प्रयागराज के सबसे बड़े माफिया का पूरा साम्राज्य ध्वस्त हो गया।
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