उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों ने आतंक फैला रखा है। जुलाई महीने से लेकर बीते सोमवार तक भेड़ियों ने सात बच्चों सहित कुल आठ लोगों की जान ले ली है। भेड़िये अपनी मां के साथ सो रहे बच्चों को भी उठा कर ले गए और उन्हें खा गए। भेड़ियों के हमले में अब तक महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित करीब 36 लोग घायल भी हुए हैं। इस बीच विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि कहीं ये भेड़िये बदला लेने के मकसद से तो बहराइच में हमला नहीं कर रहे हैं।
बदला लेने वाले होते हैं भेड़िये
यूपी के बहराइच में भेड़ियों के बढ़ते हमले के बीच प्रभावित इलाकों में शूटर तैनात कर दिए गए हैं। इस बीच एक्सपर्ट्स ने बड़ी आशंका जाहिर की है। विशेषज्ञों का कहना है कि भेड़िये बदला लेने वाले जानवर होते हैं और संभवत: पूर्व में इंसानों द्वारा उनके बच्चों को नुकसान पहुंचाए जाने के बदले के रूप में भेड़ियों की ओर से ये हमले किए जा रहे हैं। भारतीय वन सेवा (आईएफएस) से रिटायर और बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वन अधिकारी रह चुके ज्ञान प्रकाश सिंह ने ये बात कही है।
जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में हुई थी ऐसी ही घटना
ज्ञान प्रकाश सिंह ने बहराइच जैसी ही एक पुरानी घटना का भी जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि 20-25 साल पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में सई नदी के कछार में भेड़ियों के हमलों में 50 से अधिक इंसानी बच्चों की मौत हुई थी। पड़ताल करने पर पता चला था कि कुछ बच्चों ने भेड़ियों की एक मांद में घुसकर उनके दो बच्चों को मार डाला था। भेड़िया बदला लेता है और इसीलिए उनके हमले में इंसानों के 50 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। बहराइच में भी कुछ ऐसा ही मामला लगता है।
मार दिए गए थे आदमखोर भेड़िये
ज्ञान प्रकाश सिंह ने आगे बताया कि जब जौनपुर और प्रतापगढ़ में भेड़ियों के हमले की गहराई से पड़ताल की गई तो मालूम पड़ा कि अपने बच्चे की मौत के बाद भेड़िये काफी उग्र हो गए थे। वन विभाग के अभियान के दौरान कुछ भेड़िये पकड़े भी गए थे, लेकिन आदमखोर जोड़ा बचता रहा और बदला लेने के मिशन में कामयाब भी होता गया। हालांकि, अंतत: आदमखोर भेड़िये चिह्नित हुए और दोनों को गोली मार दी गई, जिसके बाद भेड़ियों के हमले की घटनाएं बंद हो गईं।
हाल ही में भेड़िये के दो बच्चों की मौत
ज्ञान प्रकाश सिंह ने बताया है कि इसी साल जनवरी-फरवरी महीने में बहराइच में भेड़ियों के दो बच्चे किसी ट्रैक्टर से कुचलकर मर गए थे। भेड़ियों ने हमले शुरू किए तो हमलावर भेड़ियों को पकड़कर 40-50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया। संभवतः यहीं थोड़ी गलती हुई। उन्होंने बताया कि चकिया जंगल में भेड़ियों के लिए प्राकृतिक वास नहीं है। ज्यादा संभावना यही है कि यही भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी के किनारे अपनी मांद के पास लौट आए हों और बदला लेने के लिए हमलों को अंजाम दे रहे हों। (इनपुट: भाषा)
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