बेंगलुरू: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज शुक्रवार को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से मुलाकात की। इस मुलाकात ने एक बार फिर ये संकेत दिया है कि कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा को नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए आत्मघाती हो सकता है। अमित शाह सुबह 9:30 बजे बीजेपी के कद्दावर नेता येदियुरप्पा के आधिकारिक आवास कावेरी पहुंचे। उनके साथ मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी थे। शाह ने लगभग आधे घंटे का वक्त बिताया और येदियुरप्पा सहित तमाम लीडर्स के साथ बैठकर ब्रेकफास्ट किया।
विपक्ष के विधायकों को तोड़कर सत्ता में आई बीजेपी
बैठक में इस बात पर फोकस था कि कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा नहीं होनी चाहिए। बीजेपी की बहुमत की सरकार बने, इस दिशा में काम होना चाहिए। 2008 और 2018 के चुनावों में बीजेपी नंबर-1 पार्टी तो रही, लेकिन 113 सीटों के बहुमत के आंकड़े को नहीं छू पाई। इसी वजह से दोनों ही बार विपक्ष के विधायकों को तोड़कर बीजेपी कर्नाटक में अपनी सत्ता स्थापित कर पाई।
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येदियुरप्पा के बेटे से गर्म जोशी से मिले अमित शाह
आज की मीटिंग की एक और खास बात रही कि बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्रा से भी अमित शाह गर्म जोशी से मिले, जब गेट पर येदियुरप्पा उनके स्वागत में गुलदस्ता लेकर पहुंचे, तो अमित शाह ने येदियुरप्पा से पहले विजयेंद्रा से गुलदस्ता लिया। कर्नाटक में येदियुरप्पा बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता हैं, उम्र हो जाने की वजह से येदियुरप्पा ने इस बार चुनावों में हिस्सा नहीं लेने का फैसला करते हुए अपने बेटे विजयेंद्रा के लिए टिकट मांगा है। विजयेंद्रा अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र शिकारीपुरा में काफी सक्रिय होकर काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें टिकट देने को लेकर पार्टी में अभी भी असमंजस है।
बीजेपी को लिंगायत वोट बैंक का समर्थन
असमंजस की वजह ये है कि येदियुरप्पा जिस लिंगायत समुदाय से आते हैं उस समुदाय का समर्थन विजयेंद्रा को भी हासिल है। लिंगायत समुदाय के एक मुश्त समर्थन की वजह से ही बीजेपी कर्नाटक को दक्षिण का द्वार बना पाई है। ऐसे में पार्टी के दूसरे नेताओं को लगता है कि अगर येदियुरप्पा की जगह विजयेंद्रा ने ले ली, तो पार्टी में वे कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। हालांकि, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस बात का एहसास है कि कम से कम इन चुनावों में येदियुरप्पा को नजरअंदाज करना लिंगायत वोट बैंक से हाथ धो बैठने जैसा होगा।
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येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं
कर्नाटक में 17 फीसदी लिंगायत आबादी है और 224 में से तकरीबन 100 सीटों पर जीत-हार का फैसला ये समुदाय करता है। लिंगायत समुदाय येदियुरप्पा की वजह से अब तक एकजुट होकर बीजेपी के साथ खड़ा रहा है। अब चूंकि येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं, ऐसे में बीजेपी को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं लिंगायत वोट पार्टी से दूर ना चला जाए। हालांकि, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी लिंगायत ही हैं, लेकिन वो जन नेता नहीं हैं और जमीन पर ये साफ दिखाई दे रहा है कि येदियुरप्पा के बाद लिंगायत समुदाय का झुकाव उनके बेटे विजयेंद्रा की ओर ज्यादा है। येदियुरप्पा को नजरअंदाज करने और विजयेंद्रा को टिकट नहीं दिए जाने की अटकलों ने इस समाज को अहसज कर दिया है। यही वजह है कि बीजेपी के चुनाव रणनीतिकार अमित शाह खुद ही इस नुकसान की भरपाई में लगे हुए हैं।