Friday, November 22, 2024
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AIMPLB का बड़ा फैसला, गुजारा भत्ता को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को करेगा चैलेंज

गुजारा भत्ता को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को AIMPLB चैलेंज करेगा। यह फैसला आज दिल्ली में हुई बैठक में लिया गया।

Reported By : Shoaib Raza Edited By : Akash Mishra Updated on: July 14, 2024 15:21 IST
गुजारा भत्ता को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चैलेंज करेगा AIMPLB- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV गुजारा भत्ता को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चैलेंज करेगा AIMPLB

गुजारा भत्ता को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को AIMPLB चैलेंज करेगा। यह फैसला आज दिल्ली में हुई बैठक में लिया गया। बोर्ड ने तर्क दिया है कि शरीयत में महिला को इद्दत पूरी होने तक ही गुज़ारा भत्ता देने का हुक्म, उसके बाद महिला आजाद है, वो दूसरी शादी कर सकती है। इसके अलावा अगर बच्चे महिला के साथ रहेंगे तो उसका खर्चा देना पति की जिम्मेदारी, बोर्ड ने यह भी तर्क दिया। 

पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क है कि भारतीय मुसलमान शरीयत के मुताबिक अपनी बेटियों को जायदाद में हिस्सेदारी दें और कानून के मुताबिक जो बात कही गई है कि अगर तलाकशुदा महिला को जिंदगी चलाने में दिक्कत आए तो अलग अलग राज्यों के वक्फ बोर्ड उसकी जिम्मेदारी उठाएं क्यूंकि बोर्ड की प्रॉपर्टी मुसलमानों की है। 

गुजारा भत्ता को लेकर सु्प्रीम कोर्ट ने दिया था ये फैसला

बता दें कि बाते बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एक मुस्लिम महिला आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी का यह “धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ” प्रावधान सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होता है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखती हों। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा-125 सभी महिलाओं के संबंध में लागू होगी।”

पीठ ने कहा था, “यदि मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम कानून के तहत विवाहित हैं और तलाकशुदा हैं, तो CRPC की धारा 125 के साथ-साथ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधान लागू होते हैं। मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के पास ऑप्शन है कि वे दोनों में से किसी एक कानून या दोनों कानूनों के तहत राहत मांगें। ऐसा इसलिए है कि 1986 का अधिनियम CRPC की धारा 125 का उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि उक्त प्रावधान के अतिरिक्त है।”

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