द केरल स्टोरी के बाद अब अजमेर-92 को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने ‘अजमेर 92’ के नाम से रिलीज होने वाली फिल्म को समाज में दरार पैदा करने का एक प्रयास बताया । इसके बाद अजमेर दरगाह अंजुमन कमेटी के सचिव सर्वर चिश्ती -द केरल के बाद अजमेर 92 को लेकर विरोध जताया और कहा कि ये चुनाव से पहले की एक साज़िश है जो ख़ादिमों और मुस्लिमों को बदनाम करने के लिये है।
गौरतलब है कि साल 1992 में अजमेर में ये घटना हुई थी जिससे पूरा देश हिल गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक अजमेर में लगभग 300 लड़कियों के साथ न्यूड फोटो की आड़ में ब्लैकमेल करके उनका रेप किया गया था। बताया जाता है कि इस घटना को शहर के एक बड़े परिवार और उनके करीबियों के द्वारा अंजाम दिया गया था।
चिश्ती ने दिया विवादास्पद बयान
चिश्ती ने कहा कि अजमेर में जो बलात्कार हुआ था, लो हिंदुओ ने भी किया उसमें सिर्फ मुसलमान ही नहीं थे, दोनो ने मिलकर बलात्कार किया था। उन्होंने कहा कि यदि भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा तो तबाह हो जायेगा। अजमेर ९२ की कहानी मनगढ़ंत है। कितने बलात्कर हुए कितनों ने किए, जितने रेपिस्ट हैं बीजेपी या RSS के लोग है उस पर फिल्म क्यूं नही बनती ?
हम अजमेर ९२ और ७२ हूर को बैन की मांग करते है, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर पर केस होना चाइए । उन्हें जेल में डालना चाहिए। चिश्ती ने कहा है कि उन्नाव और कानपुर पर क्यूं नही बनती। मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश है, अजमेर का दरगाह ८०० साल पुराना है, हम वहां मोहब्बत बांटते है। ऐसी कोई फिल्म नहीं बननी चाहिए जो दो धर्मों में नफरत फैलाए। फिल्म का मकसद है नफरत फैलाना है, केरला स्टोरी के दो पहलू है उसको नही दिखाते है। मोदी जी का नारा बेटी बचाव नारा का उल्टा है अब हिंदुस्तान में ।
ऑब्जेक्शन के मुद्दे को हटा देना चाहिए
रामदास आठवले ने कहा कि फिल्म अजमेर 92 जैसी फिल्म जब बनती है तो वह अलग अलग एंगल से बनती है। हर आदमी का विचार पटता है ऐसा नहीं है। अजमेर 92 के बारे में मुझे पता नहीं है, अगर यह फिल्म आ रही है तो उसके संबंध में क्या कहूं। क्या है उसमें, मुसलमान के लिए क्या है ? अपमान हुआ है ? मुझे उसके बारे में जानकारी नहीं है। अभी फिल्म आई नहीं है, जो लोग की डिमांड है उसे बदल किया जा सकता है। सेंसर बोर्ड ने इस पर ध्यान देना चाहिए, उस फिल्म में ऑब्जेक्शन जो मुद्दे होंगे उसको हटाने के लिए सेंसर बोर्ड ने निर्देश देना चाहिए ।
बढ़ता जा रहा है फिल्म को लेकर विवाद
ऐसी फ़िल्में बनाकर समाज में आग लगाने की कोशिश की जा रही है, नफ़रत फैलाई जा रही है।
-अजमेर 92 फ़िल्म में अजमेर दरगाह को बदनाम करने की कोशिश की गई है। फ़िल्म के डायरेक्टर ख़ुद सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाली बातें कर रहे हैं।
-पिछले कुछ वक़्त से ऐसी फ़िल्में बनाई जा रही है जिसके ज़रिये मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है।
-हिंदुओं के मंदिर में भी रेप की घटनाएं होती हैं, हिंदुओं के संत-बाबा का भी नाम ऐसी घटनाओं में आता है लेकिन उन पर कोई ऐसी फ़िल्में नहीं बनाता।
-महिलाओं के ख़िलाफ़ रेप, यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई जानी चाहिए।