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AFSPA: केंद्र ने पूर्वोत्तर में घटाया अफस्पा, जानिए क्या हैं इसके नियम, सेना को क्या मिलते हैं अतिरिक्त अधिकार?

 केंद्र की मोदी सरकार ने दशकों बाद पूर्वोत्तर राज्यों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) के तहत आने वाले अशांत इलाकों को घटा दिया है। इनमें असम के 23 जिले ऐसे हैं, जहां अफस्पा हटा दिया गया है। जानिए अफस्पा के नियम क्या हैं, असम में कैसे हुई शुरुआत, सेना को क्या-क्या मिलते हैं अतिरिक्त अधिकार।

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: April 01, 2022 10:15 IST
AFSPA- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO AFSPA

AFSPA: केंद्र की मोदी सरकार ने दशकों बाद पूर्वोत्तर राज्यों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) के तहत आने वाले अशांत इलाकों को घटा दिया है। इनमें असम के 23 जिले ऐसे हैं, जहां अफस्पा हटा दिया गया है। जानिए अफस्पा के नियम क्या हैं, असम में कैसे हुई शुरुआत, सेना को क्या-क्या मिलते हैं अतिरिक्त अधिकार।

केंद्र सरकार ने दशकों बाद पूर्वोत्तर के असम, नागालैंड, और मणिपुर राज्यों में अफस्पा घटा दिया है। इस बात की जानकारी कल गुरुवार को स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर दी। उन्होंने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका श्रेय दिया। दरअसल, ये कदम पूर्वोत्तर में सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर होती स्थिति और तेजी से विकास का नतीजा है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी उनके राज्य के 23 जिलों से पूर्ण रूप से और एक जिले से आंशिक रूप से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) को हटाने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया।

जानिए क्या है AFSPA का चर्चित इतिहास?

पूर्वोत्तर में इस कानून का विरोध होता रहा है। साल 2000 में का उदाहरण हमारे सामने हैं। तब सेना के लोगों द्वारा मणिपुर के मलोम में एक बस स्टैंड पर खड़े 10 लोगों की गोली मारकर हत्या के बाद मणिपुर में सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने भूख हड़ताल शुरू की थी। ये हड़ताल 16 साल तक चली। इस विवादास्पाद कानून के दुरुपयोग के खिलाफ बीते खासकर दो दशकों के दौरान तमाम राज्यों में विरोध की आवाजें उठती रहीं। केंद्र व राज्य की सत्ता में आने वाली सरकारें इसे खत्म करने के वादे के बावजूद इसकी मियाद बढ़ाती रही हैं। मणिपुर की महिलाओं ने इसी कानून के विरोध में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया था।

असम में 1991 में लागू हुआ था यह कानून

गुरुवार को पूर्वोत्तर के कई राज्यों में अफस्पा कानून को घटाया है। इससे पहले 2018 में मेघालय के अलावा अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों से इस कानून को वापस लेने के बाद स्थानीय लोगों ने राहत की सांस ली थी। मेघालय में यह कानून असम सीमा से लगे 20 वर्ग किलोमीटर इलाके में लागू था। असम की बात करें तो यहां के उग्रवादी संगठनों की बढ़ती गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए 27 साल पहले वर्ष 1991 में इसे लागू किया गया था, लेकिन तब के मुकाबले उग्रवादजनित हिंसा में 85 फीसदी कमी आने की वजह से ही सरकार ने मेघालय से यह कानून खत्म करने का फैसला किया था। इससे पहले वर्ष 2015 में 18 साल बाद त्रिपुरा से इसे खत्म किया गया था।

जानिए सेना को मिले अफस्पा से जुड़े अधिकार के बारे में 5 खास बातें

1. अफस्पा लागू होने की स्थिति में सेना कहीं भी पांच या पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा सकती है।

2. सेना के पास बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार होता है।

3. साथ ही चेतावनी का उल्लंघन करने पर गोली मारने तक का अधिकार सेना के पास होता है।

4. सेना किसी के भी घर में बिना वारंट तलाशी ले सकती है। हालांकि अफस्पा के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सेना को नजदीकी पुलिस स्टेशन को सौंपना जरूरी होता है।

5. किसी की भी यदि गिरफ्तारी होती है तो कारण बताने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट भी देनी होती है।

अशांत घोषित करने के क्या हैं नियम

अशांत क्षेत्र घोषित करने का अधिकार भी अफस्पा कानून के तहत ही आता है। यह अधिकार केंद्र सरकार, राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल के पास होता है। वो किसी इलाके, किसी जिले या पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं। इसके लिए भारत के राजपत्र पर एक अधिसूचना निकालनी होती है। यह अधिसूचना अफस्पा कानून की धारा 3 के तहत होती है। इस धारा में कहा गया है कि नागरिक प्रशासन के सहयोग के लिए सशस्त्र बलों की आवश्यकता होने पर किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।

जानिए नगालैंड में क्यों लगा था अफस्पा, क्या रहे 3 खास कारण?

नगालैंड भी उन राज्यों में शामिल है, जहां गुरुवार को अफस्पा घटा दिया गया है। हालांकि यह राज्य शुरू से ही अशांत रहा है और उग्रवादी गतिविधियों का यहां लंबा इतिहास रहा है। नगालैंड 1 दिसंबर, 1963 को भारत का 16 वां राज्य बना था। इसकी सीमा पूर्व में म्यांमार से, पश्चिम में असम से, उत्तर में अरुणाचल प्रदेश से और दक्षिण में मणिपुर से मिलती है। यह पूर्वोत्तर राज्य देश की आजादी के बाद से ही उग्रवादी आंदोलनों के लिए कुख्यात रहा है। राज्य के नगा गुटों ने खुद को कभी भारत का हिस्सा समझा ही नहीं। दशकों लंबे चले उग्रवाद के बाद केंद्र सरकार ने 1997 के आखिर में इस समस्या को खत्म कर इलाके में शांति की बहाली के लिए नागा संगठनों के साथ शांति प्रक्रिया शुरू की थी। नगालैंड की यही मांग देश के लिए खतरनाक रही है।

1. दरअसल नगालैंड के विद्रोही संगठन भी राज्य के लिए अलग झंडे या संविधान की अनुमति चाहते हैं। इसे केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया। इसके बाद यहां फिर अशांति की स्थिति पैदा हो गई। अलग झंडा और अलग संविधान शांति प्रक्रिया में शामिल नगा गुटों की मुख्य मांगें रही हैं। 

2. नगालैंड में लगातार अफस्पा लागू रखने का फैसला इसलिए किया गया था क्योंकि लूट और अपराधों की वारदातें कम होने का नाम नहीं ले रहीं थीं। यहां पर अब भी कई ऐसी आदिवासी जनजातियां रहती है जो खतरनाक हैं। यहां की कुछ जनजाति बहुत ही खतरनाक हैं। इसीलिए यहां के कुछ इलाकों में जाने की अनुमति नहीं दी जाती।

3. नागरिकता कानून को लेकर जब नगालैंड में उग्र विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, इस कारण को भी अफस्पा बढ़ने की वजह मानी गई थी। वहीं भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो पिछले कुछ सालों के दौरान यह क्षेत्र पूर्वोत्तर के बाकी गुटों के लिए सबसे सुरक्षित शरण स्थली बन गया है। इससे यहां की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। हालांकि अब अन्य पूर्वोत्तर राज्येां के साथ नगालैंड में भी अफस्पा घटाना एक नई आशा के संकेत देता है।

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