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सरना धर्म संहिता की मांग को लेकर आदिवासियों ने दिया धरना, केंद्र सरकार को अल्टिमेटम

ASA ने कहा कि आदिवासी हिंदू, मुस्लिम या ईसाई नहीं हैं और सरना धर्म संहिता प्रकृति की पूजा करने वाले आदिवासियों की पुरानी मांग है।

Edited By: Vineet Kumar Singh @JournoVineet
Published : Oct 18, 2022 23:35 IST, Updated : Oct 18, 2022 23:35 IST
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Image Source : PTI आदिवासियों ने सरना धर्म संहिता की मांग को लेकर रांची में धरना दिया।

Highlights

  • सलखान मुर्मू ने कहा कि संहिता प्रकृति पूजक आदिवासियों की पुरानी मांग है।
  • सभी आदिवासी गांवों में जो पूजा स्थल होता है, उसे सरना स्थल कहते हैं।
  • हम सरना धर्म के नाम पर प्रकृति की पूजा में लगे हुए हैं: सलखान मुर्मू

Sarna Dharam Code: जनजातीय संगठन ‘आदिवासी सेंगेल अभियान’ (ASA) ने सरना धर्म संहिता की मांग और जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म खंड (कॉलम) की मांग को लेकर धरना दिया। ASA के अध्यक्ष सलखान मुर्मू ने कहा कि संहिता आदिवासियों की पुरानी मांग है जो प्रकृति पूजक हैं। उन्होंने कहा कि वे हिंदू, मुस्लिम या ईसाई नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जनगणना प्रपत्र में एक अलग सरना संहिता शामिल करने से आदिवासियों को सरना धर्म के अनुयायियों के रूप में पहचानने में मदद मिलेगी।

मोराबादी मैदान के पास हुआ धरना

बता दें कि सभी आदिवासी गांवों में जो पूजा स्थल होता है, उसे सरना स्थल कहते हैं। वहां मुख्यत: सखुआ पेड़ की या फिर अन्य किसी पेड़ की पूजा की जाती है। झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल के पांच राज्यों के आदिवासी समुदाय के लोगों ने रांची के मोराबादी मैदान के पास धरने में हिस्सा लिया। ASA ने दावा किया कि दोपहर 12 बजे से दोपहर बाद 3.30 बजे तक लगभग 10,000 लोग धरने के लिए एकत्रित हुए थे।

‘हम प्रकृति की पूजा में लगे हुए हैं’
मुर्मू ने कहा, ‘हम आदिवासियों के लिए एक अलग सरना धार्मिक संहिता की मांग कर रहे हैं और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। हम सरना धर्म के नाम पर प्रकृति की पूजा में लगे हुए हैं। प्रकृति हमारी पालनकर्ता है, हमारा भगवान है। हमारी उपासना, सोच, अनुष्ठान, त्यौहार और महोत्सव प्रकृति से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं। हम मूर्तिपूजक नहीं हैं। हमारे पास वर्ण व्यवस्था, स्वर्ग-नर्क आदि की अवधारणा भी नहीं है। यह हमारे अस्तित्व और पहचान का भी मामला है।’

केंद्र सरकार को ASA का अल्टिमेटम
ASA ने मांग की कि जनगणना के रूप में उनकी पहचान सरना धर्म संहिता के अनुयायियों के रूप में की जाए। बीजेपी के पूर्व सांसद मुर्मू ने कहा कि यदि केंद्र सरकार 20 नवंबर तक सरना संहिता को मान्यता देने से इनकार करने का कारण बताने में विफल रहती है तो ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के 50 जिलों के 250 ब्लॉकों में आदिवासियों को 30 नवंबर से 'चक्का जाम' का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘आदिवासी लंबे समय से सरना संहिता की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी मांगों की अनदेखी की गई है।’

‘आदिवासियों की आबादी बौद्धों से ज्यादा’
मुर्मू ने दावा किया कि देश में आदिवासियों की आबादी बौद्धों से ज्यादा है लेकिन उनके धर्म को मान्यता नहीं है। ASA की झारखंड इकाई के अध्यक्ष देवनारायण मुर्मू ने आरोप लगाया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने आदिवासी आबादी के बड़े समर्थन के साथ सरकार बनाई, लेकिन उनके कल्याण के लिए काम करने में विफल रहा।

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