नयी दिल्ली: वैश्विक सामरिक मामलों के विशेषज्ञों ने बृहस्पतिवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख और दक्षिण चीन सागर में चीन के दुस्साहस के पीछे राष्ट्रपति शी चिनफिंग की, आर्थिक नीतियों के खिलाफ असंतोष को थामने, मजबूत दिखने और अंतराष्ट्रीय स्तर पर कद बढ़ाने की लालसा जैसे पहलू हो सकते हैं । विशेषज्ञों ने कहा कि तनाव से अमेरिका, यूरोप और एशिया के विभिन्न हिस्सों में ऐसी आशंका पैदा हुई है कि अपने क्षेत्रीय हितों को लेकर चीन और आक्रामक रूख अख्तियार कर सकता है , जिस पर वैश्विक ताकतों द्वारा गंभीर और एकजुट होकर कदम उठाने की संभावना बन सकती है।
शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर पॉल स्टेनिलैंड ने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर चीन को आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा । अभी हमें जिस सवाल का जवाब नहीं मिला है वह ये कि उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी होगी। साथ ही, क्षेत्र में आक्रामक रूख के लिए चीनी नेतृत्व कितना नुकसान झेलने को तैयार हैं ।’’ पूर्वी लद्दाख में चीन का कदम उसी प्रकार है जिस तरह उसने एशिया के अन्य हिस्सों, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में दिखाया है और क्षेत्रों पर दावा जताया है। फिलीपीन के मामले में अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना की गयी। मुख्य रूप से जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन, ब्रूनेई, कंबोडिया और वियतनाम समेत अन्य देशों से उसका विवाद है ।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर विपिन नारंग ने कहा कि पूर्वी लद्दाख और एशिया में अन्यत्र चीन का अपना प्रभाव बढ़ाने और हठधर्मी रवैया दिखाने के पीछे कई वजहें हो सकती हैं । उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘अवसरवाद से लेकर भारत के डीएस-डीबीओ (दार्बुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी) रोड जैसी आधारभूत संरचना तैयार करने का कारण हो सकता है, जहां शी चिनफिंग को लगता होगा कि वह कमजोर नहीं दिखें।’’ कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के ध्यान बंटे होने का फायदा उठाते हुए चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पश्चिमी सेक्टर में अपने सुरक्षा बलों को गोलबंद किया ।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ओलिन इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज से भी जुड़े नारंग ने कहा, ‘‘चीन ने एक साथ कई बिंदुओं पर अवसरों का द्वार खोलने का प्रयास किया है।’’ काराकोरम दर्रे के पास सामरिक रूप से महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) को लेह से जोड़ने के लिए सीमा सड़क संगठन पिछले दो दशकों से 255 किलोमीटर लंबी डीएस-डीबीओ सड़क बना रहा है । यह सड़क श्योक और तांगत्से नदी के बगल से गुजरती है और इससे भारत की सामरिक रूप से कई महत्वपूर्ण स्थानों पर पहुंच बनती है। सामरिक मामलों के एक और विशेषज्ञ डॉ लक्ष्मण बेहेरा ने कहा कि शी की आर्थिक नीतियों को लेकर चीन में असंतोष है और ध्यान हटाने तथा अपना कद बढ़ाने के लिए सीमा पर आक्रामक रूख अपनाया जा रहा है ।
उन्होंने कहा कि चीन ने इस बारे में कभी पारदर्शिता नहीं दिखायी है कि वह क्या करने वाला है । उन्होंने कहा, ‘‘उनके इरादों को कोई नहीं जानता है । यह बहुत बंद समाज है । ’’ यह इस तथ्य से भी साफ होता है कि 15 जून को गलवान घाटी में हताहत हुए अपने सैनिकों के बारे में चीन ने नहीं बताया जबकि भारत ने बताया कि 20 सैन्यकर्मियों की मौत हुई । एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन के 35 सैनिक हताहत हुए । डॉ बेहेरा ने बताया, ‘‘चीन अपने हताहतों के बारे में कभी परवाह नहीं करता है और वे सारे तथ्यों को छिपाने में माहिर हैं। यह तथ्य है कि उनके पक्ष को काफी नुकसान हुआ । लेकिन उन्होंने अपने देश के लोगों को इस बारे में नहीं बताया । वे ऐसा ही करते रहे हैं।’’
पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सुब्रत साहा ने भी पीटीआई-भाषा को बताया कि चीन ने अपने हताहतों की संख्या के बारे में इसलिए नहीं बताया क्योंकि इससे उसे चीन में रोष पैदा होने की आशंका है । पिछले महीने पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार के दौरान चीनी दूत सुन वीदोंग ने कुछ महत्वपूर्ण सवालों को अनसुना कर दिया था। जैसे कि उनसे सवाल किया गया था कि जब दुनिया कोविड-19 महामारी से निपट रही है तो चीन आक्रामक सैन्य रवैया क्यों अपनाए हुए है । बड़े स्तर पर सैनिकों के जमावड़े के पीछे क्या मंशा है और गलवान घाटी में चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों पर बर्बर हमला क्यों किया ?
चीनी दूत से यह भी सवाल किया गया था कि क्या चीन गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमले में शामिल सैनिकों को दंडित करेगा और चीन के कितने सैनिक हताहत हुए ? हालांकि, सुन ने इन सवालों को अनसुना कर दिया । जनरल साहा ने कहा कि दूत की चुप्पी चीन की निरंकुश व्यवस्था का परिणाम है जिसमें बहुत सख्ती से चीजों को नियंत्रित किया जाता है और पदानुक्रम में नीचे आने वाले लोगों के लिए ऐसे मुद्दे को नजरअंदाज करना आम बात है। जबकि भारत में, जहां लोकतंत्र है, हर अधिकारी को बोलने की अनुमति होती है । बहरहाल, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य तिलक देवेश्वर ने पीटीआई-भाषा से कहा कि पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि को नुकसान पहुंचाया है। साथ ही यह मानने के भी कई कारण हैं कि राष्ट्रपति शी पर देश का आंतरिक दबाव भी है।
उन्होंने कहा, ‘‘हताहतों की संख्या के बारे में छिपाना, यह संकेत देता है कि उन्हें गंभीर नुकसान हुआ और वह जनता और दुनिया को इस बारे में नहीं बताना चाहते। सैनिकों का सही तरीके से अंतिम संस्कार नहीं होने के कारण भी चीन में आक्रोश है । दुनिया ने देखा कि भारत ने अपने शहीदों को पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अपने दिवंगत शहीदों का सम्मान नहीं करना, चीन के व्यवहार को दिखाता है । दूसरी बात, इसने दिखा दिया कि चीन द्विपक्षीय या अंतरराष्ट्रीय समझौते का सम्मान नहीं करेगा या वह उन्हीं चीजों को मानेगा जो उनको ठीक लगता है। इससे साबित होता है कि चीन के लिए ऐसे समझौते की कोई अहमियत नहीं है। बाकी दुनिया को भी उनकी नीतियों का अंदाजा लग जााएगा।’’