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नई दिल्ली: महिला अधिकार कार्यकर्ता और गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपल अगेंस्ट रेप्स इन इंडिया (PARI) की संस्थापक योगिता भयाना ने निर्भया को इंसाफ दिलाने वाले अपने पूरे आंदोलन के लंबे सफर को याद किया है। भयाना ने अपने आंदोलन के बारे में शुरुआत से बताते हुए कहा कि 17 दिसंबर 2012 को जब उन्हें इस घटना के बारे में पता चला था, तो वह रो पड़ी थीं और उसने फैसला किया था कि वह निर्भया को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ेंगी।
‘पैर पर प्लास्टर लगवाकर विरोध करती रही’
योगिता ने कहा, ‘उन दिनों में मेरे बहुत सारे दोस्त थे, जो मैंने अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान बनाए थे। हमने '16 दिसंबर क्रांति' नामक एक टीम बनाई। उस समय मैंने अपनी टीम के साथ इंडिया गेट, रायसीना हिल्स के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। इसी समय मेरा पैर भी टूट गया था, लेकिन मैं रुकी नहीं और अपने पैर पर प्लास्टर लगवाकर भी विरोध करती रही।’ योगिता ने बताया कि उसने इससे पहले भी गुड़िया मामले से लेकर अन्य पीड़ितों को भी न्याय दिलाने के लिए कई लड़ाई लड़ी हैं। उन्होंने कहा, ‘तब मैंने फैसला किया कि मैं दुष्कर्म पीड़ितों के लिए काम करूंगी। मैंने कानूनी लड़ाई के बारे में निर्भया की मां का समय-समय पर मार्गदर्शन किया।’
...और सरकार नाबालिगों से जुड़ा कानून ले आई
योगिता ने कहा कि जब 2015 में मामले का दोषी नाबालिग रिहा हो रहा था तो उसने निर्भया की मां को मजनू का टीला में विरोध करने के लिए मना लिया, लेकिन 2 दिनों तक विरोध करने के बाद भी नाबालिग को छोड़ दिया गया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भविष्य में ऐसी वारदात दोबारा न हो, वह अपनी टीम के साथ मिलकर सांसदों से मिली और उन्हें नाबालिगों से जुड़े बड़े अपराधों में सख्ती बरतने की अपील की। उन्होंने जघन्य अपराधों में नाबालिग की उम्र को भी कम करने का अनुरोध किया। बाद में इस संबंध में सरकार एक कानून भी लेकर आई।
निर्भया के 4 दोषियों को दी गई फांसी
योगिता ने कहा, ‘मैं हमेशा निर्भया की मां के साथ अदालत की सुनवाई में भाग लेती रही और मैंने निर्भया के माता-पिता का मार्गदर्शन करना कभी बंद नहीं किया। इस तरह 7 साल की लंबी यात्रा समाप्त हुई।’ निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के 4 दोषियों मुकेश, पवन, अक्षय और विनय को शुक्रवार की सुबह 05:30 बजे दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।