भोपाल: देश के लगभग हर हिस्से में आयकर न देने वालों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। अब सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है। यह लाभ उन लोगों को मिलेगा, जिनकी वार्षिक आय आठ लाख रुपये तक है। अब सवाल उठ रहा है कि आठ लाख रुपये तक कमाने वाले गरीब माने जाएंगे तो क्या आयकर से छूट की सीमा भी बढ़ेगी।
सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण वाला विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है। इसमें प्रावधान है कि सामान्य वर्ग के जिन परिवारों की वार्षिक आय आठ लाख रुपये तक है, उनके बच्चों को इस आरक्षण का लाभ मिलेगा। अभी तक सरकारी सुविधाओं को लेकर आयकर की छूट सीमा अर्थात ढाई लाख रुपये को आधार बनाया जाता था। अब सरकार आठ लाख रुपये की वार्षिक आय तक के लोगों को आरक्षण की सुविधा देने का प्रावधान करने जा रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता मनोज चौबे का कहना है, "आर्थिक तौर पर सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था से देश में गरीबी की परिभाषा ही बदल जाएगी, क्योंकि आयकर विभाग ढाई लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय वालों से कर वसूलता है। अब आठ लाख वार्षिक आय वाले आरक्षण की सीमा में आएंगे। ऐसे में सवाल उठेगा कि क्या सरकार आयकर छूट की सीमा बढ़ाने वाली है।"
चौबे आगे कहते हैं, "नई व्यवस्था से देश में गरीबों के दो वर्ग हो जाएंगे। एक ढाई लाख रुपये तक का, और दूसरा आठ लाख रुपये वाला। सरकार के इस फैसले पर शक भी होता है, क्योंकि अभी सरकारी योजनाओं का लाभ उन लोगों को मिलता है, जिनकी वार्षिक आय ढाई लाख रुपये से कम है। नई व्यवस्था से इस सुविधा पर भी संकट मंडरा सकता है। क्योंकि आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए आय की सीमा तय किए जाने से गरीबी की नई परिभाषा तय करनी होगी।"
आर्थिक मामलों के जानकार निमिष पारिख का कहना है, "आयकर स्लैब बढ़ाना सरकार के लिए आसान नहीं है, क्योंकि पेट्रोल, गैस, खाद आदि पर जो सब्सिडी दी जाती है, वह प्रत्यक्ष कर से आई रकम से ही संभव है। अगर सरकार कुछ हजार की ही आयकर छूट की सीमा बढ़ती है तो राजस्व पर करोड़ों-अरबों करोड़ का असर पड़ता है, लिहाजा आर्थिक आधार पर आरक्षण में कुछ शर्ते भी होंगी, जो आने वाले समय में सामने आएंगी, मगर आयकर का स्लैब बदलना आसान नहीं है।"
सामाजिक कार्यकर्ता रोली शिवहरे का कहना है, "सरकार का यह फैसला समझ से परे है, क्योंकि देश के उच्च मध्यम वर्ग की वार्षिक आय आठ लाख रुपये के आसपास होती है। इसमें तो देश की 85 प्रतिशत से ज्यादा आबादी आ जाएगी। सरकार ने यह फैसला क्यों लिया है, यह समझना आसान नहीं है। सरकार क्या राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, वोट पाने का हथकंडा है, अथवा गरीबी से ध्यान हटाने का प्रयास है। अगर वास्तव में सरकार इस व्यवस्था को लागू करना चाहती है तो उसे योजनाओं में आमूल-चूल बदलाव लाना होगा।"
शिवहरे आगे कहती हैं, "मुझे तो यह सिर्फ ध्यान भटकाने का हथियार नजर आता है, क्योंकि इस फैसले से किसे लाभ होगा, कहा नहीं जा सकता। नौकरियां हैं नहीं, आरक्षण से क्या होगा। सरकार को आरक्षण के लिए आठ लाख रुपये की आय सीमा तय करने पर आयकर छूट की सीमा भी बढ़ानी पड़ सकती है, जो आर्थिक तौर पर खतरे की घंटी हो सकती है।"