श्मशान के सन्नाटे के बीच नगरवधुओं के डांस की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। मान्यताओं के मुताबिक आज से सैकड़ों साल पहले राजा मान सिंह द्वारा बनाए गए बाबा मशान नाथ के दरबार में कार्यकम पेश करने के लिए उस समय के जाने-माने नर्तकियों और कलाकारों को बुलाया गया था लेकिन चूंकि ये मंदिर श्मशान घाट के बीचों बीच मौजूद था, लिहाजा तब के चोटी के तमाम कलाकारों ने यहां आकर अपने कला का जौहर दिखाने से इनकार कर दिया था।
लेकिन चूंकि राजा ने डांस के इस कार्यक्रम का ऐलान पूरे शहर में करवा दिया था, लिहाज़ा वो अपनी बात से पीछे नहीं हट सकते थे। लेकिन बात यहीं रुकी पड़ी थी कि श्मशान के बीच डांस करने आखिर आए तो आए कौन? इसी उधेड़बुन में वक्त तेज़ी से गुज़र रहा था। लेकिन किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब किसी को कोई उपाय नहीं सूझा तो फैसला ये लिया गया कि शहर की बदनाम गलियों में रहने वाली नगरवधुओं को इस मंदिर में डांस करने के लिए बुलाया जाए।
उपाय काम कर गया और नगरवधुओं ने यहां आकर इस महाश्मशान के बीच डांस करने का न्योता स्वीकार कर लिया। ये परंपरा बस तभी से चली आ रही है। गुज़रते वक्त के साथ जब नगरवधुओं ने अपना चोला बदला तो एक बार फिर से इस परंपरा के रास्ते में रोड़े आ गए और आज की तारीख में इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए बाकायदा मुंबई की बारगर्ल तक को बुलाया जाता है। यही नहीं परंपरा किसी भी क़ीमत पर छूटने ना पाए, इसका भी ख़ास ख्याल रखा जाता है। और इसके लिए साल के इस बेहद खास दिन तमाम इंतज़ाम किए जाते हैं।
इस आयोजन को ज़्यादा से ज्यादा सफ़ल बनाने के लिए पुलिस-प्रशासन के नुमाइंदे बाकायदा इस महफिल का हिस्सा बनते हैं। इस परंपरा की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बनारस आने वाले कई विदेशी सैलानी भी इस ख़ास मौके को देखने से खुद को नहीं रोक पाते। ये बेहद अनोखी और चौंकाने वाली परंपरा जितनी सच है उतना ही सच है इन नगरवधुओं का वजूद जो हर जमाने में मोक्ष की तलाश में यहां आता रहा है।
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