नई दिल्ली: काशी का वह श्मशान जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती और जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां चिता पर लेटने वाले को सीधा मोक्ष मिलता है। जहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं थमता, वहीं अगर उसी चिता के करीब कोई महफिल सजा बैठे और शुरू हो जाए श्मशान में डांस तो उसे आप क्या कहेंगे? श्मशान यानी जिंदगी की आखिरी मंजिल और चिता…यानी जिंदगी का आखिरी सच। पर जरा सोचें…। अगर इसी श्मशान में उसी चिता के करीब कोई महफिल सजा बैठे और शुरू हो जाए श्मशान में डांस तो उसे आप क्या कहेंगे? खामोश, ग़मगीन, उदास और बीचबीच में चिताओं की लकड़ियों के चटखने की आवाज अमूमन किसी भी श्मशान का मंज़र या माहौल कुछ ऐसा ही होता है। (जब टिफिन लेकर कैबिनेट की बैठक में पहुंचे सभी मंत्री तो मुख्यमंत्री ने....)
पर एक रात ऐसी जो श्मशान के लिए बेहद खास है। एक ऐसी रात जो श्मशान के लिए रौनक की रात है। क्योंकि ये रात इस श्मशान पर साल में सिर्फ एक बार उतरती है और बस इसीलिए साल के बाकी 364 रातों से ये रात बिलकुल अनोखी बन जाती है। ये एक रात इस श्मशान के लिए जश्न की रात है। इस एक रात में इस श्मशान पर एक साथ चिताएं भी जलती हैं और घुंघरुओं और तेज संगीत के बीच कदम भी थिरकते हैं।
अब सवाल उठता है कि चिता के बीच ये डांस ये मस्ती क्यों? क्यों इंसान को मरने के बाद भी चिता पर सुकून मयस्सर नहीं होने दिया जा रहा? क्यों कुछ लड़कियां श्मशान में चिताओं के करीब नाच रही हैं?
एक साथ चिता और महफिल दोनों का ही गवाह बना है काशी का मणिकर्णिका घाट। वही मणिकर्णिका घाट जो सदियों से मौत और मोक्ष का भी गवाह बनता आया है। आज इसी घाट पर सजी है मस्ती में सराबोर एक चौंका देने वाली महफ़िल। एक ऐसी महफ़िल जो जितना डराती है उससे कहीं ज्यादा हैरान करती है।
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