नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ पहले शख्स नहीं हैं, जिन्होंने रोजगार की बात करते-करते यूपी-बिहार के लोगों को निशाने पर लिया है। रोजमर्रा की जिंदगी में आपको ऐसे तमाम लोग मिल जाएंगे, जो गाहे-बगाहे यूपी, बिहार के लोगों को कोसते मिलेंगे। यह तर्क देते मिलेंगे कि किस तरह इन लोगों ने हमारे हक मार लिए हैं, कैसे ये हमारी नौकरियां खा गए हैं। कमलनाथ के बयान की बात करें तो उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश में ऐसे उद्योगों को छूट दी जाएगी, जिनमें 70 फीसदी नौकरी मध्य प्रदेश के लोगों को दी जाए। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के लोगों के कारण मध्य प्रदेश के स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिल पाती है।
यूपी, बिहार के लोगों पर नौकरियां खाने का इल्जाम सिर्फ कमलनाथ ने ही नहीं लगाया है। उत्तर भारतीयों को लेकर महाराष्ट्र की शिवसेना ने जिस तरह आग उगली थी, वह किसी से छिपी नहीं है। रेलवे की भर्ती परीक्षा में शामिल होने आए यूपी, बिहार के लोगों पर जिस तरह हमला किया गया और उन्हें महाराष्ट्र से खदेड़ने की जो कवायद शिवसेना ने शुरू की थी, उसे बाद में राज ठाकरे की मनसे ने खूब सींचा और उस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी। उन्होंने डंके की चोट पर कहा था कि बिहार तक यह संदेश पहुंचना चाहिए कि मुंबई में उनके लिए जगह नहीं है।
शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे ने लगभग एक दशक पहले अपने मुखपत्र 'सामना' में बिहारियों पर निशाना साधते हुए लिखा था, "बिहारी अपने साथ बीमारी और लड़ाई लेकर आते हैं। एक बिहारी सौ बीमारी, दो बिहारी लड़ाई की तैयारी, तीन बिहारी ट्रेन हमारी, पांच बिहारी सरकार हमारी।"
यूपी, बिहार के लोगों पर लगते आए इन आरोपों की वजह पूछने पर वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने बताया, "इस तरह के बयान पूरी तरह से राजनीतिक उद्देश्य से किए जाते रहे हैं। इन्हें यूपी, बिहार के पलायन से जोड़ना सही नहीं होगा, क्योंकि पलायन देशभर में हो रहा है। यूपी, बिहार के लोग दिल्ली और मध्य प्रदेश में जाकर बसे हैं तो मध्य प्रदेश का मजदूर भी बड़ी संख्या में बिहार में बसा हुआ है।"
वह कमलनाथ के बयान को क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाला बताते हुए कहते हैं, "मैं फिर कहूंगा कि पलायन कहां नहीं हो रहा है। यह सिर्फ राजनीति है कि बार-बार यूपी, बिहार के लोगों को निशाने पर लिया जा रहा है। गुजरात में 14 महीने की बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना के बाद बिहार के लोगों को निशाना बनाय गया, वहां इस पर जमकर राजनीति हुई। असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी इसी तरह उत्तर भारतीयों के साथ राजनीति हुई। कमलनाथ का यह बयान क्षेत्रीयता को बढ़ावा देना वाला बयान है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए।"
राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेश पंत कहते हैं, "इसे थोड़ा अलग ढंग से देखे जाने की जरूरत है। बिहार के ज्यादातर लोग बहुत प्रतिभाशाली होते हैं, सरकारी नौकरियों विशेष रूप से यूपीएससी में इन्हीं का बोलबाला होता है तो दूसरे राज्यों में इन्हें प्रतिस्पर्धा के तौर पर देखा जाता है। ऊपर से एक धारणा यही होती है कि जिस भी राज्य में जाएंगे, वहां बेहतर प्रदर्शन ही करेंगे। इस तरह से भी निशाने पर रहते हैं।"
इसी तर्क को थोड़ा और विस्तार से बताते हुए अवधेश कुमार कहते हैं, "मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में बिहार के लोग सबसे ज्यादा हैं। यह समझने की जरूरत है कि यूपी, बिहार के लोग सिर्फ रोजगार के लिए पलायन नहीं कर रहे हैं। बिहार में भट्ठा मजदूर के पेशे में मध्य प्रदेश के लोगों की संख्या ज्यादा है। 1982 के बाद से 2002 तक मध्य प्रदेश को बिहार के कुशल कामगारों ने खड़ा किया है। मध्य प्रदेश में 1.5 करोड़ युवा मतदाता हैं। इस तरह के बयानों से सीधे-सीधे युवाओं को साधने की कोशिश की गई है।"
दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं शीला दीक्षित ने भी एक बार बयान दिया था कि यूपी, बिहार से होने वाले पलायन के कारण दिल्ली के मूलभूत ढांचे पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।
अगर इस तर्क को मान भी लिया जाए कि यूपी, बिहार में बेरोजगारी की वजह से वहां के लोग पलायन करते आ रहे हैं तो अब तक वहां की सरकारें कर क्या रहीं थीं? अखिलेश यादव, मायावती से लेकर नीतीश कुमार तक जो लोग खुशहाल उत्तर प्रदेश और विकसित बिहार की बातें कर रहे थे। फिर तो वह 'थोथा चना बाजे घना' वाली कहावत साबित हुआ।
वर्ष 2016 से 31 अगस्त, 2018 तक उत्तर प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या नौ लाख तक पहुंच गई है। राज्य श्रम विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में कुल 22 लाख बेरोजगार पंजीकृत हैं, जिनमें से सात लाख से अधिक ग्रैजुएट हैं। कुछ इसी तरह का हाल बिहार का है। ऐसे में मोदी सरकार के रोजगार के दावों का क्या!